लघुकथा : ममता का गणित….
-अमर खनूजा चड्ढा-
कितनी कच्ची और खट्टी कीवी रख दी मां आज मेरे टिफ़िन में, चखकर तो देखना तो था ना। ऑफिस से वापस आते ही अजय ने मां को दो कीवी पकड़ाते हुए कहा, लेकिन दरवाज़ा खोलते हुए मां ने बहू को अजय की तरफ़ इशारा करते देख लिया था।
मां कुछ दिनों के लिए गांव से शहर आई थी। मां ने हैरानी से अपने बेपरवाह बेटे की तरफ़ मुस्कुराते हुए देखा पर कुछ कहा नहीं। गर्भवती बहू के लिए पंद्रह दिन में कुछ फलों के साथ कीवी भी गिनकर एक या दो आती थी। बेटा बहू एक ही ऑफ़िस में काम करते हैं। साथ ही टिफ़िन लेकर जाते थे। उस एक फल की दो फांक वह अपनी बेटे के और दो फांक बहू की टिफ़िन में रख देती थी।
कभी किसी ने पूछने की ज़हमत ही नहीं की और ना इसरार ही किया कि आपने यह नया फल चखा क्या?
वह सोचने लगी पहले भी वह गांव में अपने घर में कुछ भी नया खानपान आने पर पति के पूछने पर कहती थी सब को बराबर दे दिया, जबकि वह अपना हिस्सा ना रख या नाम मात्र चखकर परिवार में बांट देती थी।
इस तरह जीवन में ममता के गणित का कभी गुणा कभी जोड़ करती रहती थी, लेकिन ख़ुद को घटाते-घटाते अब वह कमज़ोर हो गई थी। आज उसके बेटा-बहू इस तरह अपने व्यवहार से भी उपेक्षाओं को गुणा कर बढ़ाते जा रहे हैं।
वह फल लेकर चौके की तरफ़ आगे बढ़ी। कीवी में कांटे नहीं रुएं होते हैं लेकिन आज कीवी में वही रुएं मां के हाथ में कांटे की तरह चुभन दे गए।
सियासी मियार की रीपोर्ट