बरस रहा है मेघ…

बरस रहा है मेघ…

आसमान का चूल्हा ये
जलता नहीं है आज क्यों?
इसे भी मंहगाई ने
बुझा दिया है क्या?
सदियों से चल रहा इन्सान
पहुंचा नहीं क्यों मंजिल तक?
उसे भी किसी ने पता,
गलत दिया है क्या?
खिड़की से बाहर चुपचाप
बरस रहा है देखो मेघ
अपनी रचना की दुर्गति में
ईश बहाता है अश्रु क्या?