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भक्ति की रसधार राधारानी सरकार..

भक्ति की रसधार राधारानी सरकार..

-मुकेश कबीर-

राधारानी सरकार के विषय में कई तरह की धारणाएं हैं।कई लोग उन्हें काल्पनिक भी मानते हैं लेकिन राधा जी को सिर्फ भक्तिभाव से ही समझा जा सकता है। राधारानी का अस्तित्व था या नहीं,उनकी शादी कृष्ण जी से हुई या किसी और से यह सारे प्रश्न निरर्थक हैं क्योंकि भक्ति भाव में तर्क सदैव महत्वहीन हो जाता हैं।उद्धव और गोपी संवाद ऐसा ही है जहां उद्धव जी कृष्ण की वैज्ञानिक व्याख्या करना चाहते हैं लेकिन गोपियों के भक्तिभाव के आगे उन्हें नतमस्तक ही होना पड़ा।राधाजी की जिन्होंने भक्ति की है वे मानते और जानते हैं कि राधा जी ही कृष्ण की अल्हादिनी शक्ति हैं,बिना राधा के कृष्ण का गोपेश्वर बनना संभव नहीं था और कृष्ण युग के महानायक भी नहीं बन पाते क्योंकि बृज की मान्यताओं के अनुसार राधाजी ने श्रीकृष्ण से पहले जन्म इसलिए लिया ताकि वे कान्हा को सामाजिक संरक्षण प्रदान कर सकें।कन्हैया को जो संरक्षण माता यशोदा ने घर में दिया वैसा ही संरक्षण राधा जी ने गोप गोपियों के बीच दिया। राधा जी राजकुमारी थीं इसलिए सब उनकी बात मानते थे। राधा जी के कारण ही गोपियां श्रीकृष्ण को घेरे रहती थीं और कई अनहोनियों को टालती थीं। हमारे भक्ति साहित्य में तो राधा एक महानायिका बनकर उभरी हैं । राधा जी के बिना कृष्ण की कोई भी लीला पूर्ण नहीं होती।बरसाने की विश्व प्रसिद्ध होली का तो आधार ही राधा रानी हैं,यदि राधा रानी नहीं होती तो बृज की लट्ठमार होली का नाम ही नहीं होता। असल में राधा के अस्तित्व पर सवाल इसलिए भी ज्यादा उठाए गए क्योंकि जयदेव के गीत गोविंद से पहले राधाजी का उल्लेख ज्यादा नहीं मिलता लेकिन शास्त्रों में ज्यादा और कम उल्लेख से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है। निंबार्क सम्प्रदाय राधारानी को ही इष्ट मानते हैं इसलिए उन्होंने राधा जी की विस्तार से चर्चा की है और जयदेव पर भी इसी संप्रदाय का प्रभाव था इसलिए उन्होंने राधा को केंद्र में रखकर गीत गोविंद की रचना की। विस्तार से राधारानी का महिमा मंडन गीतगोविन्द से पहले कभी नहीं हुआ इसलिए आम धारणा बन गई कि राधा जी जयदेव की ही कल्पना हैं। वस्तुतः राधा जी सिर्फ कल्पना नहीं इसकी पुष्टि रामकृष्ण परमहंस ने भी की है, उन्होंने तो यहां तक कहा है कि यदि किसी को राधा के अस्तित्व पर संदेह है तो उनकी एकनिष्ठ आराधना और साधना करके देख ले,राधा जी साक्षात प्रकट होने में विलंब नहीं करेंगी और फिर उनका प्रतिप्रश्न है कि यदि राधा जी का अस्तित्व नहीं था तो उनका साक्षात्कार कैसे हो सकता है ? मनोवैज्ञानिक रूप से यह तर्क सारे तर्कों पर भारी है। वहीं भक्ति मार्ग का एक और उदाहरण लें तो वर्तमान में प्रेमानंद जी महाराज भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन्होंने राधा रानी के दर्शन किए हैं।यदि इन सबकी बात नहीं भी मानें तो हम स्वयं बृज में जाकर देख सकते हैं जहां हर जगह राधे राधे ही हैं। गीता में कहा गया है कि असत्य की सत्ता नहीं रहती और सत्य को कोई मिटा नहीं सकता, यदि पिछले पांच हजार साल का इतिहास देखें तो राधा का उल्लेख हमें मिलता है और पिछले पांच सौ साल की बात करें तो पूरा बृज ही राधामय मिलेगा। जब मुगल आक्रांता बृज में बैठे हुए थे तब भी कोई राधारानी के अस्तित्व को कोई नकार नहीं पाया और मजे की बात यह है कि जो लोग आज राधारानी के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं वे ही यह भी कहते हैं कि राधा की शादी अयन घोष से हुई है,जब अस्तित्व ही नहीं तो फिर शादी कैसी ? इसलिए ज्यादा तर्क वितर्क में न पड़ते हुए भक्ति भाव से राधा जी को स्वीकार करें । राधा जी भक्ति की रसधार हैं,जिनकी कृपा से गोविंद भी प्रेमरस से सराबोर हो जाते हैं। राधारानी तो साक्षात् भक्ति स्वरूपा हैं और भक्ति को विज्ञान कभी नहीं प्राप्त कर सकता यह बात उद्धव और शंकराचार्य जी भी मान चुके थे और आज भी ऐसे भक्तों की कमी नहीं जिन पर राधा रानी ने कृपा बरसाई है, इसलिए तो उनके धाम का नाम ही बरसाना है। जय हो राधारानी सरकार की, राधे राधे…(लेखक गीतकार हैं)

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