हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष : दुनिया की भाषा बन रही है हिंदी...
-श्रीगोपाल नारसन-
विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति डॉ श्रीगोपाल नारसन की माने तो हिंदी आज सबसे अधिक बोली जाने वाली संसार की तीसरी भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। हिंदी भाषा, भारत के साथ साथ मॉरीशस, युगांडा, गुयाना, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, सूरीनाम, त्रिनिदाद, साउथ अफ्रीका में भी अपनाई जा रही है। अमेरिका, यूरोपीय, एशियाई व खाड़ी के देशों में भी हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ी है। रूस के तो कई विश्वविद्यालयो में हिन्दी साहित्य एवं हिंदी भाषा को लेकर शोध कार्य हुआ हैं। हिन्दी साहित्य में जितना अनुवाद रूस ने कराया, उतना किसी अन्य भाषा के साहित्य का नही कराया गया। यह हिंदी के प्रति रूस बढ़ते रुझान का प्रतीक है।
हिंदी के लिए तीन दशकों से कार्य कर रहे देश के प्रसिद्ध कलमकार श्रीगोपाल नारसन एक विशेष साक्षात्कार में कहते है कि भारत मे हिंदी दीर्घकाल से जन–जन के पारस्परिक सम्पर्क, संवाद व लेखन की भाषा रही है। यह केवल उत्तरी भारत की नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के आचार्यों वल्लभाचार्य, रामानुज, रामानंद, शंकराचार्य आदि ने भी हिंदी भाषा के माध्यम से अपने मतों का प्रचार किया था। अहिंदी भाषी राज्यों के भक्त–संत कवियों जैसे—असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर व नामदेव, गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य आदि ने इसी भाषा को अपने धर्म और साहित्य का माध्यम बनाया था। इंटरनेट पर हिंदी भाषा सामग्री लिखने व पढ़ने वालो की संख्या में हर साल 94 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हो रही हैं। अंग्रेजी भाषा में हर साल 17 प्रतिशत की घटत हिंदी के बढ़ने का एक बड़ा कारण है। श्रीगोपाल नारसन का दावा है, इस साल के अंत तक दुनिया मे 25 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी को अपनाने लगेंगे। चूंकि आज संसार के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। हिन्दी भाषा का अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान निरन्तर बढ़ रहा है। फिजी में हिन्दी को राजभाषा का अधिकारिक दर्जा मिला प्राप्त है। जो अवधी, भोजपुरी और क्षेत्रीय बोलियों से मिलकर बनी है। वे बताते है, अमेरिका के तीस से अधिक विश्वविद्यालयो में हिंदी पर काम हो रहा है। जापान में हिंदी के प्रति रुचि और इसे कैरियर व व्यवसाय से जोड़कर हिंदी के पाठ्यक्रम शुरू किए गए है। जो एक शुभ संकेत है। विधि व विज्ञान की उच्च पढ़ाई अब हिंदी में होना एक बड़ी सफलता है। अंग्रेजों को भी हिंदी का आश्रय लेना पड़ा था। अंग्रेजों को जनता व सरकार के बीच संवाद में जब फ़ारसी या अंग्रेज़ी के माध्यम से परेशानी हुई तो अंग्रेजों ने फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में हिंदी विभाग खोलकर अधिकारियों को हिंदी सिखाने की व्यवस्था की थी। यहाँ से हिंदी पढ़े हुए अधिकारियों ने भिन्न–भिन्न क्षेत्रों में उसका प्रत्यक्ष लाभ देकर मुक्त कंठ से हिंदी को सराहा था। सी. टी. मेटकाफ़ ने 1806 ई. में अपने गुरु जॉन गिलक्राइस्ट को लिखा था, भारत के जिस भाग में भी मुझे काम करना पड़ा है, कलकत्ता से लेकर लाहौर तक, कुमाऊँ के पहाड़ों से लेकर नर्मदा नदी तक मैंने हिंदी भाषा का आम व्यवहार देखा है, जिसकी शिक्षा आपने मुझे दी है। मैं कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक या जावा से सिंधु तक इस विश्वास से यात्रा करने की हिम्मत कर सकता हूँ कि मुझे हर जगह ऐसे लोग मिल जाएँगे जो हिंदी बोल लेते है।
वही टॉमस रोबक ने 1807 ई. में कहा था, जैसे इंग्लैण्ड जाने वाले को लैटिन सेक्सन या फ़्रेंच के बदले अंग्रेज़ी सीखनी चाहिए, वैसे ही भारत आने वाले को अरबी–फ़ारसी या संस्कृत के बदले हिंदी सीखनी चाहिए।
विलियम केरी ने सन1816 ई. में माना था कि हिंदी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं, बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है। एच. टी. कोलब्रुक का मानना रहा कि जिस भाषा का व्यवहार भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग करते हैं, जो पढ़े–लिखे तथा अनपढ़ दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है, जिसको प्रत्येक गाँव में थोड़े बहुत लोग अवश्य ही समझ लेते हैं, उसी का यथार्थ नाम हिंदी है।
जार्ज ग्रियर्सन ने हिंदी को आम बोलचाल की महाभाषा मानते थे। हिंदी की व्यावहारिक उपयोगिता, देशव्यापी प्रसार एवं प्रयोगगत लचीलेपन के कारण अंग्रेज़ों ने हिंदी को अपनाया। उस समय हिंदी और उर्दू को एक ही भाषा माना जाता था। अंग्रेज़ों ने हिंदी को प्रयोग में लाकर हिंदी की महती संभावनाओं की ओर राष्ट्रीय नेताओं एवं साहित्यकारों का ध्यान खींचा था। राजा राममोहन राय ने सन 1828 में कहा था, इस समग्र देश की एकता के लिए हिंदी अनिवार्य है। ब्रह्मसमाजी केशव चंद्र सेन ने सन1875 ई. में एक लेख लिखा था, भारतीय एकता कैसे हो, जिसमें उन्होंने लिखा— उपाय है सारे, भारत में एक ही भाषा का व्यवहार। अभी जितनी भाषाएँ भारत में प्रचलित हैं, उनमें हिंदी भाषा लगभग सभी जगह प्रचलित है। यह हिंदी अगर भारतवर्ष की एकमात्र भाषा बन जाए तो यह काम सहज ही और शीघ्र ही सम्पन्न हो सकता है। एक अन्य ब्रह्मसमाजी नवीन चंद्र राय ने पंजाब में हिंदी के विकास के लिए स्तुत्य योगदान दिया।
महर्षि दयानंद सरस्वती गुजराती भाषी थे एवं गुजराती व संस्कृत के अच्छे जानकार थे। हिंदी का उन्हें सिर्फ़ कामचलाऊ ज्ञान था, पर अपनी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए तथा देश की एकता को मज़बूत करने के लिए उन्होंने अपना सारा धार्मिक साहित्य हिंदी में ही लिखा। उनका कहना था कि हिंदी के द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। वे इस आर्यभाषा को सर्वात्मना देशोन्नति का मुख्य आधार मानते थे। उन्होंने हिंदी के प्रयोग को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। वे कहते थे, मेरी आँखें उस दिन को देखना चाहती हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सब भारतीय एक भाषा समझने और बोलने लग जाएँगे। महर्षि अरविन्द घोष की सलाह थी कि लोग अपनी–अपनी मातृभाषा की रक्षा करते हुए सामान्य भाषा के रूप में हिंदी को ग्रहण करें।
एनी बेसेंट ने कहा था, भारतवर्ष के भिन्न–भिन्न भागों में जो अनेक देशी भाषाएँ बोली जाती हैं, उनमें एक भाषा ऐसी है जिसमें शेष सब भाषाओं की अपेक्षा एक भारी विशेषता है, वह यह कि उसका प्रचार सबसे अधिक है। वह भाषा हिंदी है। हिंदी जानने वाला आदमी सम्पूर्ण भारतवर्ष में यात्रा कर सकता है और उसे हर जगह हिंदी बोलने वाले मिल सकते हैं। भारत के सभी स्कूलों में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। उक्त उदाहरणों को रेखांकित करने के साथ ही श्रीगोपाल नारसन विश्वास के साथ कहते है कि विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ व प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय जैसी संस्थाओं के प्रयास से हिंदी आज संसार की भाषा बन सकती है। जिसका कारण, हिंदी का बहुसंख्यक जन की भाषा होना है, एक प्रान्त के लोग दूसरे प्रान्त के लोगों से सिर्फ़ इस भाषा में ही विचारों का आदान–प्रदान कर सकते हैं। भावी राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को बढ़ाने का कार्य समाज सुधारकों ने किया, इन्ही प्रयासों के बलबूते हिंदी निरंतर बढ़ रही है और देश सीमा पार उन गैर हिंदी देशों में भी अपनाई जाने लगी है, जो कभी हिंदी से अनजान थे। हिंदी को दुनिया की भाषा बनाने में भारतीय हिंदी सिनेमा का महत्वपूर्ण योगदान है, आज दुनिया के अनेक देशों में लोग हिंदी फिल्मों के माध्यम से हिंदी को आत्मसात कर रहे है।
सियासी मियार की रीपोर्ट