हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष : भारत देश की भाषा है हिन्दी फिर भी हिन्दी दिवस!
-डॉ. भरत मिश्र प्राची-
अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए विश्व के किसी देश ने भी अंग्रेजी को नहीं अपनाया। हर मुल्क की आज अपनी भाषा है। भारत देश की भी अपनी भाषा हिन्दी है। फिर भी विदेश दौरे पर गये भारतीय प्रतिनिधि द्वारा अपना संबोधन हिन्दी में न देकर अंग्रेजी में देते ही यह सुनना पड़ा कि क्या भारत की अपनी कोई भाषा नहीं? इस अपमान के वावयूद भी हम आज तक नहीं चेत पाये। कितना अच्छा सभी भारतवासियों को लगा था जब देश के तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी विश्व मंच पर अपना वकतव्य हिन्दी में दिये थे। आज जब अपने ही घर में हिन्दी अपने ही लोगों द्वारा उपेक्षित होती है, तो स्वाभिमान को कितना ठेस पहुंचता होगा, सहज अनुमान लगाया जा सकता। काश यह अनुमान उन देशवासियों को होता जो इस देश में जन्म लेकर विदेशी भाषा अंग्रेजी को अहमियत देते है।
भारत देश की भाषा हिन्दी होते हुये भी आज हिन्दी दिवस मनाये जाने की परम्परा जारी है। जब-जब भी हिन्दी दिवस आता है, उसके आसपास का हर पल हिन्दीमय नजर आने लगता है। सरकारी, अर्द्धसरकारी, निजी कार्यालय से लेकर देश की समस्त शिक्षण एवं स्वयंसेवी संस्थएं हिन्दी के विकास की दिशा में जा्रगरूक दिखाई देने लगती है। हिन्दी के प्रचार-प्रसार की दिशा में जगह-जगह देश भर में कविसम्मेलन, विचारगोष्ठी, व्याख्यानमालायें आयोजन की प्रक्रिया शुरू हो जाती। हिन्दी सेवा के लिये विद्वानों को सम्मानित किया जाता। हर समय अपने दैनिक जीवन एवं कार्यशैली में हिन्दी प्रयोग किये जाने के संकल्प लिये जाते। आवेदन पत्रों पर अधिकारियों द्वारा जारी हिन्दी में ही टिप्पणी, आदेश का स्वरुप उजागर होने लगता। इस दौरान लगता कि इस देश की भी अपनी कोई भाषा है, जो हिन्दी है, जिसमें पूरा देश संवाद करता नजर आता है। पर जैसे ही हिन्दी दिवस निकलता है उसके साथ-साथ देश उसी धरे पर चल पड़ता है, जिसपर आज तक चलता रहा है। हिन्दी दिवस के दौरान जबान पर आयी हिन्दी गायब हो जाती है और अंग्रेजी चारो ओर छा जाती है। यहीं करण है कि इस देश की अपनी भाषा हिन्दी होते हुये भी हिन्दी दिवस मनाये जाने की जरूरत महसूस की जा रही हो आखिर कब तकं। आज भी संसद के गलियारों से लेकर सरकारी, अर्द्धसरकारी, निजी कार्यालयों में गुलामी की भाषा अग्रेजी का वजूद इस कदर नजर आने लगता है जहां अपने आप को स्वाधीन भारत का नागरिक समझने का भ्रम हो जाता है। समझ में नहीं आता कि यह वहीं देश है जहां की भाषा हिन्दी है, जहां करोडों लोगों के द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी का वतन भारत है या कोई और जहां संसद से लेकर हर सरकारी, अर्द्धसरकारी, निजी कार्यालयों, विद्यालयों में अंग्रेजी गूंजती है।
भाषा से ही किसी देश की पहचान होती है। भाषा देश की अस्मिता होती है। भाषा ही देश को एक सूत्र में पिरोती है। जिस देश की अपनी भाषा नहीं, वह अपनी पहचान बनाने में सदा ही विफल रहा है। जिस देश पर शासन करना हो, उस देश की भाषा को नष्ट कर दो। इसका इतिहास गवाह है कि विश्व के अनेक देश जो अपनी भाषा कायम नहीं कर पाये है आज भी स्वतंत्र होकर गुलामी की जिंदगी जी रहे है। जिनका अस्तित्व सदा खतरे में रहता है। इस कड़ी में आज अपने देश के हालात को देख सकते है जहां दोहरेपन की जिंदगी ने हमारी अस्मिता को हर ओर से चुनौती दे डाला है।
भाषा देश की आत्मा होती है। जिसमें पूरा देश संवाद करता है। जिससे देश की पहचान होती है। यह तभी संभव है जब सभी भारतवासी दोहरी मानसिकता को छोड़कर राष्ट्रभाषा हिन्दी को अपने जीवन में अपनाने की शपथ मन से लें। तभी सही मायने में हिन्दी का राष्ट्रीय स्वरूप उजागर हो सकेगा। हिन्दी के राष्ट्रीय स्वरुप उजागर होने की आज महत्ती आवश्यकता है। जिसमें देश की एकता अस्मिता समाहित है। आज अपने ही देश में अपने ही लोगों से हिन्दी की अस्मिता को चुनौती मिल रही है। जिससे भारत देश की भाषा हिन्दी होते हुये भी हिन्दी दिवस मनाने की परमपरा आज भी जारी है।
सियासी मियार की रीपोर्ट