मध्य प्रदेश: खातिरदारी का सुख जंगल में..
प्रकृति के शांत वातावरण को चीरती टाइगर की दहाड़ और साल व सागौन के घने जंगलों के बीच कौफी की खुशबू कान्हा में आए मेहमानों का स्वागत करती है। सोलासिया रिजौर्ट कान्हा टाइगर रिजर्व के पास किसली मेन रोड पर खटिया गेट से करीब 600 मीटर की दूरी पर है। 12 एकड़ ईको सैंसटिव जोन में पाम वृक्षों से घिरे रिजौर्ट में पर्यटकों के लिए हर आवश्यक सुविधा मुहैया है। ग्रासरूट कौफी हाउस, नौलेज हब, लक्जरी टैंट के साथ डबल बैडरूम अपार्टमैंट की सुविधा से संपन्न इस रिजौर्ट में पर्यटकों को वाइल्डलाइफ की नाॅलेज भी दी जाती है। इस तरह के कई और रिजौर्ट भी इस क्षेत्र में हैं।
सोलासिया रिजौर्ट के डायरेक्टर पराग भटनागर बताते हैं, यहां पाई जाने वाली 2 मुख्य जनजातियों बैंगा और गौड़ के प्रति हमारी जवाबदेही बनती है। क्योंकि इतने सालों के बाद भी आधुनिकता से वे कोसों दूर हैं। जंगल को पास से देखनेसमझने एवं पक्षी निहारण के लिए पैदल जंगलभ्रमण किया जा सकता हैं। कान्हा के प्राकृतिक परिवेश और शांत वातावरण में साधारण स्वस्थ भोजन के साथ स्वास्थ्य पर्यटन का आनंद भी लिया जा सकता है। वन्यजीवों की फोटो चित्रकारी, जंगली जानवरों के व्यवहार और जीवन की बेहतर समझ में मदद करती है तथा वन्यजीवों के प्रति सद्भाव का वातावरण बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाती है, इस के लिए पूरी दुनिया के वन्यजीव फोटो चित्रकार यहां आते हैं।
कान्हा टाइगर रिजर्व
मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में मैकल पर्वत शृंखलाओं की गोद में स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व देश के सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय उद्यानों में एक है। यह एक पर्यटन केंद्र ही नहीं, बल्कि भारतीय वन्यजीवन के प्रबंधन और संरक्षण की सफलता का प्रतीक भी है। हृष्टपुष्ट जंगली जानवरों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर कान्हा में प्रतिवर्ष 1 लाख से अधिक सैलानी आते हैं। यह अभयारण्य 15 अक्तूबर से खुल जाता है और 30 जून को मानसून के आगमन के साथ बंद हो जाता हैं। लोग बाघ और जंगल के अन्य जीवजंतुओं को देखने व प्रकृति का आनंद लेने के लिए यहां आते हैं। इस के लिए सब से अच्छा तरीका है जिप्सी सफारी। एक जिप्सी में 6 लोगों को भ्रमण की अनुमति दी जाती है जिस से वे प्रकृति का आनंद ले सकें और उन के प्राकृतिक घर में जंगली जानवरों को देख सकें।
वन्यजंतुओं की सघनता की दृष्टि से यह उद्यान काफी समृद्ध है। 940 वर्ग किलोमीटर के दायरे में सदाबहार साल वनों से आच्छादित कान्हा अद्भुत स्थल है। प्रबंधन की दृष्टि से यह कान्हा, किसली, मुक्की, सुपरवार और मैसानघाट नामक 5 वन परिक्षेत्रों में बंटा हुआ है। पार्क में पर्यटकों के प्रवेश के लिए खटिया (किसली रेंज) और मुक्की में 2 प्रवेशद्वार (बैरियर) हैं। यहां से पार्क के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र कान्हा की दूरी क्रमशः 10 और 30 किलोमीटर है। अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए दुनियाभर में मशहूर इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1955 में हुई और वर्ष 1974 में इसे प्रोजैक्ट टाइगर के अधीन ले लिया गया। बाघ के शौकीनों के लिए कान्हा सर्वोत्तम विकल्प है। कान्हा में बाघ दर्शन ने पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया है। बाघ के अतिरिक्त कान्हा में बारहसिंघा की एक दुर्लभ प्रजाति पंकमृग (सेर्वुस बांडेरी) भी पाई जाती है।
बाघ और बारहसिंघा के अतिरिक्त यहां भालू, जंगली कुत्ते, काला हिरण, चीतल, काकड़, नीलगाय, गौर, चैसिंगा, जंगली बिल्ली और सूअर भी पाए जाते हैं। इन वन्यप्राणियों को हाथी की सवारी अथवा सफारी जीप के जरिए देखा जा सकता है। वन्यप्राणियों के दर्शन के अतिरिक्त पर्यटकों को पार्क में स्थित ब्राह्मणी दादर भी जरूर जाना चाहिए। किसली से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस जगह से सूर्यास्त का मनोरम दृश्य दर्शकों को मुग्ध कर देता है। कान्हा के जंगलों का स्थानीय लोकगाथामें कई जगह, मुख्यतया शिकार एवं शिकारियों की कहानियों में उल्लेख आता है। लपसी कब्र नामक स्थान में लपसी नामक शिकारी का स्मारक है। कहा जाता है कि वह बहुत महान शिकारी था। कान्हा का इलाका आदिवासियों का गढ़ है। पर्यटक पार्क के निकटवर्ती भीलवानी, मुक्की, छपरी, सोनिया, असेली आदि वनग्रामों में जा कर यहां की प्रमुख बैंगा जनजाति के लोगों से मिल सकते हैं। उन की अनूठी जीवनशैली और परिवेश का पर्यवेक्षण निसंदेह आप की यात्रा की एक और स्मरणीय सौगात हगी।
पन्ना नैशनल पार्क
बाघ देखने के शौकीन पर्यटकों के लिए पन्ना नैशनल पार्क सब से अच्छी जगह है। छतरपुर और पन्ना जिलों में फैला यह नैशनल पार्क 5 साल पहले उस समय काफी चर्चा में रहा जब यह बाघविहीन हो गया था। पर लोगों की जागरूकता और प्रशासन के संयोग से आज जंगल फिर बाघ की दहाड़ से गूंजने लगा है। 543 स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस पार्क में 32 से भी ज्यादा वनराज शान से चहलकदमी करते दिखाई देंगे।
मेहमाननवाजी
केन नदी के किनारे का सुरम्य वातावरण और पेड़ के ऊपर बने मचाननुमा रैस्टोरैंट में बैठ कर पहाड़ियों के पीछे डूबते सूरज के मनोरम दृश्य को देखने के साथ गरमागरम कौफी के घूंट का एहसास आप को किसी दूसरी ही दुनिया में ले जाता है। नैशनल पार्क के मंडला गेट से थोड़ी ही दूरी पर स्थित केन नदी के मुहाने पर बना केन रिवर लौज शाही मेहमान-नवाजी के लिए जाना जाता है।
लौज के मालिक श्यामेंद्र सिंह उर्फ बिन्नी राजा बताते हैं, हमारा केन रिवर लौज सब से पुराना है। यह ट्री हाउस के नाम से भी जाना जाता है। हम अपने यहां आने वाले पर्यटकों को वाइल्डलाइफ के अलावा यहां के बुंदेलखंडी कल्चर से भी परिचित कराते हैं और सब से खास इस पार्क में यह है कि दुनिया में पाए जाने वाले कुल 8 प्रजाति के वल्चरों यानी गिद्दों में से 7 यहां पाए जाते हैं। इसके अलावा पर्यटकों को नैशनल पार्क के पास ही झिन्ना नाम की जगह में ले जा कर टैंट में ही नाइट स्टे कराते हैं। इस दौरान हमारी यहां कोशिश रहती है कि लोकल व्यंजनों के स्वाद से उन्हें जरूर परिचित कराएं। लौज में पर्यटकों के लिए एक मल्टीकुजीन रेस्तरां के अलावा 6 ग्रामीणशैली में बनी हुई वातानुकूलित हट्स हैं। इस के साथ कैन बोटिंग, फिशिंग के अलावा हर उस सुविधा का खयाल रखा जाता है जिस से आने वाला पर्यटक इस जगह को हमेशा याद रखे।
पन्ना नैशनल पार्क को और भी करीब से जानना है तो इन रिजौर्ट्स से ही टैक्सी बुक करें और अन्य जगहों का करीब से मजा ले सकते हैं। 1980 के पहले इसे वाइल्डलाइफ सैंचुरी घोषित किया गया था। 1981 में इसे नैशनल पार्क का दरजा दिया गया। पन्ना नैशनल पार्क आने के लिए नवबंर से अप्रैल माह के बीच का समय उपयुक्त होता है। पार्क में टाइगर के अलावा चैसिंगा हिरण, चिंकारा, सांभर, जंगली बिल्ली, घड़ियाल, मगरमच्छ, नीलगाय से भी रूबरू हुआ जा सकता है। सब से नजदीक यहां से खजुराहो है जहां रेलमार्ग और हवाईमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। अब तो रेलवे ने भी अपनी लक्जरी ट्रैन महाराजा का रूट खजुराहो से हो कर वाराणसी कर दिया है। खजुराहो से 30 मिनट में पन्ना नैशनल पार्क पहुंचा जा सकता है।
पन्ना नैशनल पार्क के अलावा हीरों के लिए भी प्रसिद्ध है। पार्क से थोड़ी ही दूरी पर एनएमडीसी की मझगंवा डायमंड माइंस है, जहां हीरों की खुदाई से ले कर उन की अन्य सफाई प्रक्रिया देखी जा सकती है। अगर समय मिले तो रिजर्ट से 8 किलोमीटर की दूरी पर पन्ना नगर है जिस के यूरोपीय शैली में बने मंदिर जरूर देखें। पार्क से हो कर गुजरने वाली केन नदी पार्क की खूबसूरती में चारचांद लगाती है। यहां नाव में बैठ कर जंगली जीवों को करीब से देखने का आनंद ही कुछ अलग होता है। केन नदी को घड़ियाल अभयारण्य भी घोषित किया हुआ है। पार्क के मुख्य आकर्षणों में एक आकर्षण खूबसूरत पांडव फौल है जो झील में गिरता है। मानसून के दिनों में इस झरने का विहंगम दृश्य बड़ा ही रोमांचकारी लगता हैं।
कला के पारखियों के लिए काम और वास्तुकला के अद्भुत मेल वाली पाषाण प्रतिमाओं के लिए विश्वप्रसिद्ध खजुराहो यहां से 66 किलोमीटर की दूरी पर है। खजुराहो के मंदिर भारतीय कला शिल्प की नायाब धरोहर हैं। खजुराहो मंदिरों को 950-1050 ई. के बीच मध्य भारत पर शासन करने वाले चंदेल वंश के शासकों के द्वारा निर्मित करवाया गया था। खजुराहों में कुल 85 मंदिरों को बनवाया गया था, जिन में से आज केवल 22 ही बचे हैं। पूरी दुनिया का ध्यान यहां के मंदिरों में स्थित मूर्तियों ने आकर्षित किया है जो कामुकता से भरी हुई हैं। मंदिर को 1986 में यूनैस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। खजुराहो के पास ही अंगरेजों के समय में बनाया गया गंगऊ डैम स्थित है। इस डैम की वास्तुकला और इंजीनियरिंग देखने लायक है। पास ही रनेह फौल है जिस का वास्तविक रूप मानसून में ही देखने लायक होता है। अगर सही माने में आप को अपनी यात्रा रोमांचकारी और यादगार बनानी है तो पन्ना नैशनल पार्क की जंगल सफारी का मजा जरूर लें।
धुबेला
बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल की बेटी मस्तानी का जन्म और बचपन धुबेला के महलों में बीता। निर्देशक संजयलीला भंसाली भी मस्तानी को ले कर बाजीराव मस्तानी फिल्म बना चुके हैं। यहां मौजूद महलों के अवशेष और छत्रसाल का मकबरा आज भी यह याद दिलाने के लिए काफी है कि उस वक्त का इतिहास क्या होगा। धुबेला, खजुराहो-झांसी मार्ग पर स्थित है। धुबेला चारों तरफ से खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है। पहाड़ियों के बीच में बड़ी झील के किनारे बनी लाल रंग की हट्स और हरेभरे गार्डन वाला धुबेला रिजौर्ट दूर से ही सब को आकर्षित करते हैं। झांसी-खजुराहो राष्ट्रीय राजमार्ग 75 पर स्थित इस रिजौर्ट में मल्टीकुजीन रेस्तरां के साथ, लक्जरी रूम्स, स्विमिंग पूल की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
रिजौर्ट से धुबेला संग्रहालय मात्र 5 मिनट की दूरी पर स्थित है। संग्रहालय एक पुराने किले के अंदर है। इस में प्राचीन और आधुनिक युग की कलाकृतियां और अवशेषों का समृद्ध कलैक्शन है। यहां मुख्य रूप से खजुराहो के प्रसिद्ध बुंदेला वंश के इतिहास, उत्थान और पतन को दर्शाया गया है। संग्रहालय में रखी हुई मूर्तियां शक्ति पंथ से हैं। यहां बुंदेला शासकों के हथियारों, पोशाकों और चित्रों का अनूठा कलैक्शन है। पर्यटन के लिए यह संग्रहालय एक एक दिलचस्प जगह है। राज्य सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए धुबेला महोत्सव शुरू किया है जिस में लोकनृत्यों के अलावा कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अगर खजुराहो जा रहे हैं तो यहां जरूर आना चाहिए। यहां आने पर बुंदेला वंश के शासकों की अद्भुत सांस्कृतिक विरासत के बारे में जान सकते हैं। शासकों की भव्य जीवनशैली और उन के विभिन्न कार्यों को धुबेला संग्रहालय में दर्शाया गया है।
सियासी मियार की रीपोर्ट