कविता : मां समान है प्रकृति…
-महिमा जोशी-
कपकोट, उत्तराखंड
माँ समान है प्रकृति,
सबका पालन पोषण करती,
मानव हानि इसको पहुँचाते,
फिर भी ये सहन कर जाती,
हरियाली इसकी बहुत लुभाये,
मन करता इसकी चोटियों तक जाये,
अंग्रेज़ी दवाइयां ले लेती है जान,
जड़ी बूटियाँ मानो है भगवान,
साइड इफेक्ट न इसका होता,
ना पहुंचाती कोई नुकसान,
प्रकृति हमें सब कुछ देती है,
वस्त्र, भोजन या कहो मकान,
इस पर उम्मीद सबने बांधी,
पशु पक्षी हो या हो इंसान,
अन्न उगाने के लिए धरती चाहिए,
सांस लेने के लिये ऑक्सीजन चाहिए,
जीवित रहने के लिए पानी चाहिए,
सुरक्षित रहने के लिए मकान चाहिए,
पर इन सबको पूरा करने के लिए,
प्रकृति को जिंदा रहना चाहिए॥
सियासी मियार की रीपोर्ट