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दशहरा (12 अक्तूबर) पर विशेष : हमारे अंदर का रावण मरते ही बाहरी दुनिया का रावण स्वतः समाप्त हो जाएगा!…

दशहरा (12 अक्तूबर) पर विशेष : हमारे अंदर का रावण मरते ही बाहरी दुनिया का रावण स्वतः समाप्त हो जाएगा!…

-डॉ. श्रीगोपाल नारसन-

मां दुर्गा की आराधना के नौ दिन बीत जाने के बाद 10वां दिन यानी दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर असत्य पर सत्य की विजय का संदेश दिया था।इसीलिए हर साल बुराई के प्रतीक रावण का दहन किया जाता है। इस साल दशहरा 12 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। दशहरा के दिन श्रवण नक्षत्र लगना बेहद शुभ माना जाता है। इस साल श्रवण नक्षत्र का शुभारंभ 12 अक्टूबर की सुबह 05:25 बजे से होगा जो अगले दिन यानी 13 अक्टूबर की सुबह 04:27 बजे समाप्त होगा।दशहरा पर पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 02:2 बजे से दोपहर 02:48 बजे तक रहेगा। ये अवधि कुल 46 मिनट तक की रहेगी।इस दिन कईं परंपराएं निभाई जाती हैं जैसे रावण का पुतलों का दहन, जवारे अर्थात नोरतो का विसर्जन, शमी पूजा और शस्त्र पूजा की जाती है। दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। इस दिन पुलिस और सेना द्वारा भी शस्त्र की पूजा की जाती है।शस्त्र पूजा के लिए भी सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त दोपहर 02:03 से 02:49 तक है। शस्त्र पूजा करते समय ये मंत्र बोलें,
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये॥
कहते है प्राचीन समय में महिषासुर नाम का एक दैत्य था। उसने देवताओं का भी पराजित कर दिया था। तब त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ने अपनी शक्तियों से एक शक्ति उत्पन्न की। इस शक्ति का नाम देवी दुर्गा रखा गया। देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र देकर उन्हें शक्तिशाली बनाया। इन्हीं दिव्य अस्त्र-शस्त्र की सहायता से देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। जिस दिन देवी ने महिषासुर का वध किया, उस दिन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। अस्त्रों के महत्व को समझते हुए तभी से विजयादशमी पर शस्त्र पूजा की परंपरा शुरू हुई।दशहरा ही एक ऐसा पर्व है जब हम राम की जय जयकार कर रावण को उसमे व्याप्त बुराइयों के कारण उसे जलाने का जश्न मनाते है।वर्षों से चली आ रही यह परम्परा आगे भी जारी रहेगी।लेकिन बार बार रावण को जला देने पर भी आज तक रावण रूपी बुराई ख़तम नहीं हो पाई।सच यह है कि रावण तो हम सबके अंदर विकार रूप में बैठा है।जिसे हम हटाना ही नहीं चाहते।अलबत्ता राम रावण से जुड़े किस्सों को रामायण या फिर राम चरित मानस के माध्यम से उनको मंचित कर उन्हें याद करते है। रामायण के मुख्य पात्र राम, सीता , हनुमान व रावण हैं। रामायण हिंदू धर्म की एक प्रमुख आध्यात्मिक पुस्तक है परंतु रामायण को बार बार पढ़ने व मंचित करने के वावजूद भी उसमें लिखे आध्यात्मिक मूल्यों की धारणा नहीं हो पाती और हम राम के नाम रूप पर बहस करते रहते हैं, जिससे रामायण रचना की सार्थकता कभी भी सिद्ध नहीं हो सकती है।
रामायण महर्षि बाल्मीकी के द्वारा लिखित एक आध्यात्मिक पुस्तक है। हम यह जानते हैं कि महर्षि बाल्मीकी आध्यात्मिक जागृति के एक प्रेरक नायक थे।ईश्वरीय अनुभूति के द्वारा उनका जीवन दिव्य व महान हो गया था। जो भी ईश्वर की अनुभूति कर लेता है वह दूसरों का शुभचिंतक हो जाता है व स्वयं की अनुभूतियों को समाज कल्याण हेतु प्रयोग कर लोगों में एक नई सोच फैलाने का कार्य करता है स्वयं का जीवन आध्यात्मिक होने पर ही महर्षि बाल्मीकी ने समाज में आध्यात्मिक जागृति लाने का बीड़ा उठाया। मोह माया में फँसें लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान रोचक लग सके इसके लिए उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान को एक रोचक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया। जिसमें मुख्य नायक व नायिका राम और सीता को रखा। जैसे आजकल सरकार या कोई भी समाज सुधारक यदि लोगों को किसी भी बुराई के बारे में जागरूक करना चाहतें है तो वह एक डॉक्युमेंट्री फ़िल्म या विज्ञापन के ज़रिए इस संदेश को जन – जन में पहुँचाते हैं। लघु फ़िल्म या विज्ञापन में वह किसी ऐसे चेहरे को प्रयोग करेगें जो लोग़ों में प्रसिद्ध हो ताकि लोग उसको आत्मसात करें। महर्षि बाल्मीकी ने द्वापर युग व आने वाले समय में समाज में आध्यात्मिक क्रांति लाने हेतु राम व सीता का नाम व चरित्र प्रयोग किया जो त्रेता युग में विश्व में राज्य करके गए थे। विडम्बना इस बात की है कि हम रामायण में लिखित सब पात्रों को उसी तरह से स्वीकार करते हैं जैसे रामायण को पढ़ने पर जान पढ़ता है परन्तु इस तरह से तो रामायण में दर्शाए गए पूर्णतः अहिंसक पात्र भी हिंसक नज़र आते हैं, जैसे राम के द्वारा रावण का वध होना भगवान की परिभाषा को खंडित करता है राम यदि भगवान हैं तो वह हिंसक हो ही नहीं सकते और राम यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर है तो उनकी सीता को एक दैत्य (रावण) कैसे उठाकर ले जा सकता है ? इसलिए कहीं न कहीं रामायण को किसी और परिपेक्ष में देखने की आवश्यकता है। रामायण का वास्तविक़ अर्थ जानने के लिए रामायण के विभिन्न पात्रों को निम्नलिखित रूप में समझ कर पढ़ें तो आपको उसमें लिखा एक एक आध्यात्मिक बिंदु समझ आ जाएगा ……..

  1. राम : राम वास्तव में निराकार शिव है जो संगम युग पर धरा पर अवतरित हो कर अपनी बिछड़ी हुई सीता (सतयुगी आत्मा) को रावण (विकारों) के चंगुल से छुड़ाने आया है।
  2. सीता : हर वह आत्मा जो वास्तव में पवित्र है परंतु आज रावण के चंगुल में फँसने के कारण दुखी और अपवित्र हो गई है।
  3. रावण : पतित व विकार युक्त सोच व धारणा ही रावण है जिसमें फँसी हर आत्मा आज विकर्मों के बोझ तले दबती जा रही है। पाँच मुख्य विकार पुरुष के व पाँच विकार स्त्री के ही रावण के दस शीश हैं।
  4. हनुमान : वास्तव में धरा पर अवतरित हुए परमात्मा को सर्वप्रथम पहचानने वाली आत्मा (ब्रह्मा बाबा) ही हनुमान हैं परंतु हर वह आत्मा जो ईश्वर को पहचान दूसरी आत्माओं (सीता) को धरा पर आए ईश्वर (राम) का संदेश देने के निमित बनती है वह भी हनुमान की तरह ही है।
  5. वानर सेना : साधारण दिखने वाली मनुष्य आत्माएँ ईश्वर (राम) को पहचान कर, संस्कार परिवर्तन द्वारा पूरानी दुनियाँ या रावण राज्य (पतित सोच पर आधारित दुनिया) को समाप्त करने में राम का साथ देने वाली संसार की ३३ करोड़ आत्माएँ ही वानर सेना है।
  6. लंका : पुरानी पतित दुनियाँ जहाँ हर कार्य देहभान में व विकार ग्रसित होकर किया जाता है वहीं रावण नगरी लंका है।
    इसलिए आवश्यक है कि हम सबसे पहले अपने अंदर के रावण का खात्मा करने के लिए विकारों का त्याग करे और राम सरीखे गुण धारण कर राम अनुगामी बने ,तभी विजय दशमी का पर्व मनाया जाना सार्थक हो सकता है और बार बार रावण को जलाने की भी फिर जरूरत नहीं रहेगी।क्योंकि हमारे अंदर का रावण मरते ही बाहरी दुनिया का रावण ही स्वतः समाप्त हो जाएगा।यही इस पर्व का उद्देश्य भी है।(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)

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