क्रॉस-बॉर्डर सहयोग: फिक्की और स्टडी क्वींसलैंड का संयुक्त कार्यक्रम…
नई दिल्ली, 11 मार्च । भारत और ऑस्ट्रेलिया अगले कुछ महीनों में दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते की संभावना के साथ एक रोमांचक दौर से गुजर रहे हैं। दोनों देशों की सरकारों ने हाल में अंतर्राष्ट्रीयकरण का समर्थन करने के लिये कई शिक्षा और वित्त पोषण संबंधी पहलों की घोषणा की है।
इसी पृष्ठभूमि में फिक्की और क्वींसलैंड सरकार (ऑस्ट्रेलिया) ने भारतीय और क्वींसलैंड संस्थानों के बीच सार्थक सहयोग के महत्व को महसूस किया। इन साझेदारियों को सुविधाजनक बनाने के लिये क्वींसलैंड की व्यापार और निवेश की विशेषज्ञ अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा एवं प्रशिक्षण इकाई स्टडी क्वींसलैंड ने फिक्की के साथ संयुक्त रूप से शुक्रवार को भारत-क्वींसलैंड शिक्षा भागीदारी कार्यक्रम 2022 का आयोजन किया।
इस तरह की पहल के उद्देश्य के बारे में बताते हुये अभिनव भाटिया, वरिष्ठ व्यापार और निवेश आयुक्त (दक्षिण एशिया) क्वींसलैंड ने कहा, शिक्षा भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों के लिये प्रमुख प्राथमिकता का क्षेत्र है। दोनों पक्षों की सरकारें शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रति प्रतिबद्ध और सहायक हैं। समग्र और वैश्विक अनुभव की तलाश में छात्रों के साथ, सार्थक सीमा पार सहयोग अब शैक्षिक संस्थानों के लिये सिर्फ अच्छा ही नहीं बल्कि जरूरी है। इसके अलावा, ऐसी भागीदारी (योग्यता की पारस्परिक मान्यता और ग्रीन हाइड्रोजन, क्लिनिकल परीक्षण, क्रिटिकल मिनरल्स जैसे क्षेत्रों में शोध तथा स्टूडेंट एक्सचेंज) दोनों क्षेत्रों के बीच पहले से ही मजबूत संबंधों को और गहरा करेंगे। फिक्की की उच्च शिक्षा समिति भारतीय शिक्षा उद्योग की प्रतिनिधि है, जो प्रमुख नीतिगत सुधारों, ज्ञान साझा करने और अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक सहयोग और अन्य प्रकार के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
कार्यक्रम में सीमा पार सहयोग: सफलता के लिये साझेदारी विषय पर केंद्रित एक पैनल चर्चा को प्रमुख व्यक्तियों द्वारा संबोधित किया गया। सत्र का संचालन और नेतृत्व अभिनव भाटिया ने किया। इस पैनल में प्रोफेसर सारा टॉड, वाइस प्रेसिडेंट (ग्लोबल), ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी, प्रोफेसर रेन यी, प्रो-वाइस चांसलर (इंटरनेशनल) यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न क्वींसलैंड, डॉ. विद्या येरवडेकर, प्रो-चांसलर, सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी और प्रोफेसर एन वी वर्गीज, कुलपति, राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान भी शामिल थे। इन सबने चर्चा के दौरान इस तरह के सहयोग की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
फिक्की उच्च शिक्षा समिति की अध्यक्ष और सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की प्रो-चांसलर डॉ विद्या येरवडेकर ने फिक्की और क्वींसलैंड सरकार के बीच इस सहयोग पर अपना ²ष्टिकोण साझा किया। उन्होंने कहा, अंतर्राष्ट्रीयकरण छात्रों के आवागमन से परे है और कोरोना महामारी अंतर्राष्ट्रीयकरण के नये पहलुओं को सामने लेकर आयी है। भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों देशों के संस्थानों में सहयोग करने और दोनों के फायदे की इच्छा है। साझेदारी के बीच एक सहजीवी संबंध होना चाहिये। फिक्की को एक मंच के रूप में इस्तेमाल करके क्वींसलैंड और भारत के संस्थान एकसाथ विविध अवसर प्रदान कर सकते हैं क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, संयुक्त डिग्री, संयुक्त अनुसंधान आदि का भी समर्थन करती है। क्वींसलैंड और भारतीय विश्वविद्यालयों के बीच साझेदारी न केवल संयुक्त अनुसंधान को बढ़ावा देगी, बल्कि यह ऑस्ट्रेलिया के विदेशी छात्रों को समृद्ध भारतीय उद्योग का अनुभव भी प्रदान करता है।
क्वींसलैंड और भारतीय विश्वविद्यालयों के बीच सहयोग बढ़ाने की संभावना पर बल देते हुये ग्रिफिथ विश्वविद्यालय की वाइस प्रेसीडेंट प्रोफेसर सारा टॉड ने उल्लेख किया कि राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन ने उच्च शिक्षा संस्थानों के महत्व, सामाजिक प्रभाव के साथ अनुसंधान की आवश्यकता और भारतीय द्वारा अनुसंधान साझेदारी विकसित करने में भूमिका निभाने पर जोर दिया है।
उन्होंने कहा, सहयोगी अनुसंधान गतिविधियाँ व्यक्तिगत स्तर पर सह-लेखक अनुसंधान प्रकाशनों से लेकर संयुक्त पीएचडी पर्यवेक्षण की व्यवस्था और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान अनुदान निधि तक पहुँचने के लिये एक साथ काम करने तक हो सकती हैं। व्यक्तिगत संपर्क और नेटवर्क के आधार पर कई शोध सहयोग नीचे से ऊपर तक संचालित होते हैं लेकिन संस्थानों को अपनी भागीदारी को रणनीतिक रूप से देखने और यह निर्धारित करने की भी आवश्यकता है कि वे क्वींसलैंड और भारतीय विश्वविद्यालयों के बीच संबंधों को गहरा और व्यापक बनाने के लिये उन कनेक्शन और विविधता का बेहतर लाभ कैसे उठा सकते हैं। पहले से ही बहुत सारी गतिविधियां चल रही हैं लेकिन पारस्परिक लाभ के लिये कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की अपार संभावनायें हैं।
पारस्परिक मान्यता योग्यता और क्रेडिट सिस्टम पर दर्शकों को संबोधित करते हुये प्रोफेसर एन वी वर्गीस ने कहा, छात्र अक्सर पारस्परिक मान्यता के साथ क्रेडिट ट्रांसफर को लेकर भ्रमित होते हैं और संस्थानों के बीच आपसी साझेदारी इसे दूर कर सकती है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि क्रेडिट ट्रांसफर उच्च शिक्षा के रास्ते के आसान करता है, जो यूजीसी द्वारा शुरू किये गये अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट , राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क तथा डिग्री की पारस्परिक मान्यता द्वारा समर्थित है। मैं इसका समर्थन करता हूं कि अंतर्राष्ट्रीयकरण छात्रों के दूसरी जगह जाने के बराबर नहीं है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा समर्थित यह उच्च शिक्षा ढांचा उच्च शिक्षा के साथ साझेदारी को भी सुविधाजनक और समृद्ध करेगा।
शिक्षा और अनुसंधान के माध्यम से भारत-क्वींसलैंड साझेदारी की आवश्यकता पर जोर देते हुये प्रोफेसर रेन यी ने कहा, भले ही भारत और ऑस्ट्रेलिया में जनसंख्या के पैमाने और उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में बहुत अंतर है लेकिन ऑस्ट्रेलिया भारत का एक ईमानदार भागीदार है वह सहयोग के माध्यम से गुणवत्ता वाली परियोजनायें लायेगा, जिसका वास्तविक प्रभाव होगा। बेहतर शोध करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक संयुक्त प्रारूप में विषय का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।
दक्षिणी क्वींसलैंड विश्वविद्यालय ने पहले से ही भारत के साथ साझा हित के क्षेत्रों में भागीदारी की है, जैसे इसरो के साथ अंतरिक्ष संबंधी अनुसंधान कार्यक्रम, भारत में कृषि इंजीनियरिंग और भारत में कृषि अनुसंधान संस्थानों के साथ जलवायु परिवर्तन और बेहतर औद्योगिक सहयोग के लिये इंडिगो एयरलाइंस के साथ विमानन प्रबंधन कार्यक्रम आदि। हम इंटर्नशिप के लिये भारत के एनईपी के बारे में भी उत्साहित हैं, जो शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा की बढ़ती मांग के साथ, क्वींसलैंड के 9 विश्व स्तरीय संस्थानों और 17 शीर्ष भारतीय विश्वविद्यालयों ने मजबूत सीमा पार भागीदारी के लिये इस कार्यक्रम में भाग लिया। भारतीय संस्थान जैसे आईआईटी- रुड़की, आईआईटी-आईएसएम- धनबाद, बीआईटी पिलानी, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, वेल्लूर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, सत्यभामा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज , पर्ल एकेडमी आदि ने क्वींसलैंड के कई शीर्ष संस्थानों जैसे क्वींसलैंड विश्वविद्यालय, ग्रिफिथ विश्वविद्यालय, जेम्स कुक विश्वविद्यालय, बॉन्ड विश्वविद्यालय, दक्षिणी क्वींसलैंड विश्वविद्यालय, सनशाइन कोस्ट विश्वविद्यालय, टॉरेंस विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलियाई कैथोलिक विश्वविद्यालय और आउटसोर्स संस्थान ने दोनों क्षेत्रों के बीच शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिये पारस्परिक हित के क्षेत्रों पर चर्चा की।
भाटिया ने कार्यक्रम समापन पर कहा, यह देखते हुये कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्विक मानकों पर जोर देती है, भारतीय विश्वविद्यालयों में सीमा पार सहयोग के लिए बड़े पैमाने पर हलचल मची है। क्वींसलैंड के संस्थानों के पास कई क्षेत्रों में इस तरह की साझेदारी के प्रबंधन का दशकों का अनुभव है। हम ऐसे मॉडल और अच्छी शिक्षण पद्धतियों को भारत में ला सकते हैं। इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को अधिक सुलभ, समावेशी और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये नये ऑनलाइन मॉडल देखने की आवश्यकता है जो वास्तव में अंतर ला सकते हैं।
सियासी मीयार की रिपोर्ट