आस्था के सैलाब में डूबा पूर्वांचल, चहुंओर शक्ति की देवी की आराधना…
जौनपुर, 02 अप्रैल। ऋतु परिवर्तन के द्योतक चैत्र नवरात्र के पहले दिन शनिवार से ही समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश में आस्था का समंदर हिलोंरे मारने लगा है। जौनपुर, वाराणसी और विंध्याचल समेत पूर्वांचल के कई जिलों में मां के दर पर शीश नवाने के लिये श्रद्धालुओं का रेला बढ़ता ही जा रहा है। नवरात्रि के नौ दिन आस्था और श्रद्धा से परिपूर्ण होते हैं, जिसमें लोग मां के नौ स्वरूपों के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं। भक्त महानवमी के दिन खासतौर पर मंदिर जाते हैं और माता के दर्शन करते हैं।
तीन लोक से न्यारी काशी में मां आद्य शक्ति अदृश्य रूप में दुर्गाकुंड मंदिर में विराजमान हैं। माता कूष्मांडा का यह सिद्ध मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यह मंदिर आदिकालीन है। वैसे तो हर समय दर्शनार्थियों का आना लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के चौथे दिन यहां मां कुष्मांडा के दर्शन और पूजा के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर का उल्लेख ‘काशी खंड’ में भी मिलता है।
यह मंदिर वाराणसी कैंट स्टेशन से करीब पांच किमी की दूरी पर है। देवी मां के नौ स्वरूपों में से एक माता शैलपुत्री के दर्शन करना चाहते हैं, तो पवित्र नगरी वाराणसी के अलईपुर क्षेत्र में मां शैलपुत्री का मंदिर है। यहां हर साल काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि यहां मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
मिर्जापुर जिले में स्थित आदिशक्ति जगत जननी मां विंध्यासिनी की चौखट पर श्रद्धा, विश्वास और आस्था का समागम दिखता है। 51 शक्तिपीठो में से एक विंध्याचल धार्मिक पर्यटन स्थल है जहां आपको माता दुर्गा के कई मंदिर देखने को मिल जाएंगे। गंगा किनारे शक्तिपीठ के अलावा अष्टभुजा देवी मंदिर , कालीखोह मंदिर, सीता कुंड इत्यादि स्थानों पर नवरात्र में खासी भीड़ जुटती है।
सोनभद्र के शक्तिनगर स्थित ज्वालामुखी मंदिर की अपनी एक विशेष मान्यता है। पूर्वजों की मानें तो शिव तांडव के दौरान माता पार्वती के शरीर के जो टुकड़े हुए थे, उस दौरान इस मंदिर के स्थान पर उनकी जि’’ा कट कर गिरी थी। इसके बाद ज्वाला देवी का उदय हुआ था। मान्यता है कि भक्तों के नारियल बांध कर मत्था टेकने से उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं। यहां पर वासंतिक और शारदीय नवरात्र में भक्तों का रेला लगा रहता है। शक्तिनगर स्थित ज्वाला देवी मंदिर का बहुत पुराना पौराणिक इतिहास रहा है।
जौनपुर में मां शीतला धाम चौकिया आस्था और विश्वास का केंद्र है। यहां पूर्वांचल के कोने-कोने से लोग मां के दर्शन करने को आते हैं। मान्यता है कि यहां दर्शन करने के बाद मां विंध्यासिनी का दर्शन करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूर्वांचल खासकर आजमगढ़, गोरखपुर, गाजीपुर, मऊ के अलावा छपरा (बिहार) तक से लोग चौकियां माता का दर्शन करने के बाद विंध्यासिनी का दर्शन करने जाते हैं। माता के मंदिर को लेकर इतिहास काफी पुराना है। इस सिद्धपीठ से संबंधित कुछ किवदंतियां हैं, जो ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती हैं।
मऊ जिले के दोहरीघाट ब्लॉक क्षेत्र के कोरौली गांव के उत्तर तरफ व मां सरयू नदी के दक्षिण तरफ स्थित मां दुर्गा सिद्धिदात्री मंदिर क्षेत्र के लोगों के आस्था का केंद्र है। यहां नवरात्र में श्रद्धालुओं का रेला लगता है। मान्यता है कि विधि विधान से पूजन अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यहां तंत्र विद्या की सिद्धि प्राप्त करने वाले लोग बराबर यहां आते रहते हैं।
चंदौली जिले में महर्षि याज्ञवल्क्य की तपोभूमि पर अवस्थित इलाके का प्रमुख शक्ति केन्द्र जागेश्वरनाथ धाम में मां दुर्गा का विशाल मंदिर हैं। जो चन्द्रप्रभा नदी के कछार पर विद्यमान हैं। जो शक्ति का प्रमुख केंद्र है। मंदिर का निर्माण 2006 में क्षेत्र के मुड़हुआ दक्षिणी गांव के राजपूत परिवार में विंध्याचल दर्शन के लिए जाते वक्त रास्ते में मिली स्वप्न पर कराया था। मंदिर बाबा स्वयंभू शिवंिलग जागेश्वरनाथ के ठीक सामने पूरब दिशा में है। मां दुर्गा की प्रतिमा जयपुर से लाकर प्राण प्रतिष्ठा कराई गई है।
सियासी मियार की रिपोर्ट