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यहां अश्वश्थामा करते हैं मां काली की सबसे पहले पूजा..

यहां अश्वश्थामा करते हैं मां काली की सबसे पहले पूजा..

इटावा, 02 अप्रैल । चंबल के बीहड़ों में बसे इटावा में यमुना नदी के तट पर मां काली का प्राचीन मंदिर है, जिसके बारे जनश्रुति है कि इस मंदिर मे महाभारत काल का अमर पात्र अश्वश्थामा अदृश्य रूप मे आकर सबसे पहले पूजा करता है। मंदिर में मां काली के नित्य दर्शन करने वाले कई श्रद्धालुओं और पुजारी का कहना है कि रात को मंदिर पूरी तरह से धुल कर साफ कर दिया जाता है और मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते है। तड़के जब मंदिर का ताला खोला जाता है तो गुलाब के दो खूबसूरत फूल माता के चरणों में अर्पित होते हैं।

इटावा मुख्यालय से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे स्थित मंदिर का नवरात्रि के मौके पर खासा महत्व हो जाता है। इस मंदिर मे अपनी अपनी मनोकामना को पूरा करने के इरादे से दूर दराज से भक्त गण आते है। श्रद्धालुओं का मत है कि कोई तो शक्ति है जो रात के अंधेरे मे पूजा अर्चना करके गुलाब के दो फूल देवी जी के सामने अर्पित करके चला जाता है लेकिन जब वो चला जाता है तो उसका एहसास मात्र होता है।

कालीवाहन मंदिर की महत्ता के बारे मे चौधरी चरण सिंह पोस्ट ग्रेजुएट कालेज हेवरा के प्राचार्य डा.शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इस ऐतिहासिक माने जाने वाले मंदिर से लोगो की आस्था कई तरह से जुडी हुई है। इतिहास में कोई भी घटना तब तक प्रमाणिक नहीं मानी जा सकती, जब तक कि उसके पक्ष में पुरातात्विक, साहित्यिक ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध न हो जाएं मगर जनश्रुतियों के अनुसार कतिपय बातें समाज मे प्रचलित हो जातीं हैं यद्यपि महाभारत ऐतिहासिक ग्रन्थ है किन्तु उसके पात्र अश्वत्थामा का इटावा में काली मंदिर में आकर पूजा करने का कोई प्रत्यक्ष ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैै। फिर भी आस्था के आगे सब कुछ पीछे छूट जाता है।

कभी चंबल के खूखांर डाकुओ की आस्था का केंद्र रहे इस मंदिर से डाकुओ से इतना लगाव रहा है कि वो अपने गैंग के डाकुओ के साथ आकर पूजा अर्चना करने मे पुलिस की चौकसी के बावजूद कामयाब हुये लेकिन इस बात की पुष्टि तब हुई जब मंदिर मे डाकुओ के नाम के घंटे और झंडे चढे हुये देखे गये। मान सिंह,मलखान सिंह,रामआसरे उर्फ फक्कड के अलावा पपोला जैसे खूंखार डाकुओ ने इस मंदिर पर घंटा और झंडा चढाया कर देवी मॉ का आर्शीवाद लिया है।

इटावा के गजेटियर में इसे काली भवन का नाम दिया गया है। यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केन्द्र है। इष्टम अर्थात शैव क्षेत्र होने के कारण इटावा में शिव मंदिरों के साथ दुर्गा के मंदिर भी बड़ी सख्या में हैं। महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की प्रतिमायें है, इस मंदिर में स्थित मूर्ति शिल्प 10 वीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य का है। वर्तमान मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी की देन है। मंदिर में देवी की तीन मूर्तियाँ है- महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती।

महाकाली का पूजन शक्ति धर्म के आरंभिक रूवरूप की देन है। मार्कण्डेय पुराण एवं अन्य पौराणिक कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्भ में काली थी। एक बार वे भगवान शिव के साथ आलिगंनबद्ध थीं, तो शिवजी ने परिहास करते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे श्वेत चंदन वृक्ष में काली नागिन लिपटी हुई हो। पार्वती जी को क्रोध आ गया और उन्होंने तपस्या के द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया। मंदिर परिसर में एक मठिया में शिव दुर्गा एवं उनके परिवार की भी प्रतिष्ठा है।

पूर्व पुलिस अफसर रामनाथ सिंह यादव का कहना है कि कालीवाहन मंदिर काफी पहले से फिल्म निर्देशको के आकर्षण का केंद्र बना रहा है। डाकुओ पर बनी कई फिल्मो की शूटिंग इस मंदिर परिसर मे हो चुकी है। निर्माता निर्देशक कृष्णा मिश्रा की फिल्म बीहड की भी फिल्म का कुछ हिस्सा इस मंदिर मे फिल्माया गया है। बीहड नामक यह फिल्म 1978 से 2005 के मध्य चंबल घाटी मे सक्रिय रहे डाकुओ की जिंदगी पर बनी है।

जिन फिल्मो की शूटिंग इस मंदिर परिसर मे हुई है उन फिल्मो को खासी कामयाबी भी प्रदर्शन के बाद मे मिली है। यही कुछ खास वजह है जो इस मंदिर को बेहद खास बनाती है। इस मंदिर को सरसव्य करने के लिए उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार के अलावा स्थानीय नगर पालिका परिषद की ओर से कई ऐसी योजनाए चलाई गई है जिसके धन के प्रयोग से मंदिर को नया और बेहतर रूप मिला हुआ है। दूरस्थ बैठ मा काली के भक्तो को मंदिर का यह रूप खूब भाता भी है। काली वाहन मंदिर के पास मे ही बाबा भैरव का मंदिर बना हुआ है इसी वजह से इसको वैष्णो देवी का भी सूक्ष्मरूप कहा जाता है।

सियासी मियार की रिपोर्ट