स्थानीय लोगों के लिए वरदान है पटना का मंगल तालाब..
राजधानी पटना से कुछ ही दूरी पर हैं पटना सिटी। स्थानीय निवासियों के लिए यह मंगल तालाब वरदान हैं। सूर्योदय होने से पहले ही यहां चहल-पहल शुरू हो जाती है। योग और व्यायाम के लिए यहां लोगों की भीड़ सुबह से शाम तक लगी रहती है। दिन भर के शोर-शराबे से दूर इस तालाब के पास लोग ताजी हवा लेने पहुंचते हैं।
मंगल तालाब की बात करें तो इसका इतिहास काफी स्वर्णिम हैं। मंगल तालाब का आकार काजू की तरह है। विश्व के दूसरे बड़े तख्त श्री हरमंदिर जी पटना साहिब के पास होने के कारण इस तालाब की महत्ता हैं। तालाब के आसपास और इसका परिसर कई दशक पुराने इतिहास को अपने आप में समेटे हुए है। इस तालाब के पूरब में बिहार हितैषी पुस्तकालय, पश्चिम में उर्दू लाइब्रेरी एवं सूफी स्थल, उत्तर में नवनिर्मित मुक्ताकाश मंच व कैफेटेरिया और दक्षिण में ऐतिहासिक सिटी स्कूल है।
मंगल तालाब का इतिहास ही इसे प्रसिद्ध बनाता है। मंगल तालाब के बीचोंबीच लगा फव्वारा काफी आकर्षक हैं पर काफी दिनों से आकर्षण का केंद्र यह फव्वारा खराब पड़ा है। इस तालाब से सटा है मनोज कमलिया स्टेडियम जहां बच्चे क्रिकेट खेलते नजर आते हैं। मंगल तालाब में बना कैफेटेरिया यहां आने वाले लोगों के लिए चाय-कॉफी के अलावा नाश्ते की भी सुविधा देता है। मंगल तालाब में वातानुकुलित सभागार है जिसमें पांच सौ फीट की व्यवस्था हैं। इसके अलावा यहां जिम की भी सुविधा है। ठंड के दिनों में भी सेहत के प्रति जागरूक बच्चे, युवा, बुजुर्ग और महिलाएं यहां टहलते-दौड़ते दिख जाते हैं।
1876 में मंगल तालाब को निर्माण हुआ। आज लगभग 200 लोग हर रोज यहां आते हैं। यहां बने मिनी स्टेडियम में सीढ़ियों पर बैठकर नागरिक आराम करते नजर आ जाते हैं। जैसे-जैसे सूरज की किरणें तेज होती हैं, लोगों भी भीड़ बढ़ने लगती है।
इतना खूबसूरत इतिहास समेटे यह तालाब आज गंदगी का ढेर बना हुआ हैं। इस तालाब के पानी में कपड़े धोए जाते हैं। जिससे गंदगी हर समय पानी में तैरती रहती हैं। जागिंग ट्रैक के आसपास सफाई न होने के कारण यहां आने वाले लोगों को गंदगी के साथ बदबू का भी सामना करना पड़ता है। प्लास्टिक फैक्टरी से निकलने वाली दुर्गंध यहां आने वाले लोगों को परेशान करती है।
सियासी मियार की रिपोर्ट