शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) पर विशेष : शिक्षक की दशा दिशा बदली शिक्षा हुई व्यापार!.
प्राचीन काल की गुरुकुल पद्धति पर एक नजर डाले जहां शिक्षा सेवा के रूप में अपना स्वरूप उजागर किये हुये थी, जहां गुरु का स्थान समाज में अपने आदर्श के चलते सर्वोपरि बना हुआ था, विद्या अर्जन का कोई मूल्य नहीं होता, गुरु का आदर एवं सम्मान हीं गुरु की गुरु दक्षिणा हुआ करती। गुरु शिष्य का संबंध पिता पुत्र की तरह होता था। गुरु अपने शिष्य को निःस्वार्थ सेवा देकर हर क्षेत्र में गुणवान बनाने का अथक प्रयास करता और शिष्य भी अपने गुरु की सेवा हर प्रकार से करने के लिये संकल्पित होता। वर्तमान आधुनिक युग में गुरु का स्वरूप शिक्षक की दशा व दिशा दोनों बदल गई है, जहां शिक्षा सेवा की जगह व्यापार का रूप ले चुकी है। आज हर तरह की शिक्षा का मूल्य चुकाना पड़ता है। शिक्षा दिन पर दिन महंगी होती जा रही है। शिक्षा के लिये शिक्षको को शिक्षण संस्थानों एवं सरकार की ओर से अच्छा वेतन, सुविधाएं, अन्य भत्ते मिले मिले हुये है फिर भी शिक्षक शिक्षा के नाम छात्रों से अलग शिक्षण शुल्क की वसूली करते है। जो अवैध है। इस गोरखधंधे के बीच आज की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से उलझ गई है जिसका प्रतिकूल असर छात्रों के जनजीवन पर पड़ रहा है जहां वे लाचार, होकर आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाते नजर आ रहे है। महंगी शिक्षा लेकर जब बेराजगारी का सामना करना पड़ता, शिक्षा का सारा उदेश्य निरुद्धेश्य लगने लगता।
शिक्षा जगत के परिवेश आज हर तरह से उपेक्षित हो रहे हैं। जहां सर्वोपरि गुणवत्ता होनी चाहिए वहां बची-खुची योग्यता व टैलेंट का प्रयोग हो रहा है। जिसका कहीं प्रयोग नहीं हो सका वह शिक्षा जगत में आ रहा है। जहां शिक्षा का धड़ल्ले से व्यापार हो रहा है। आज शिक्षा देने के नाम पर गली-गली निजी, सरकारी शिक्षा केन्द्र खुले तो मिल जायेंगे पर इनमें से अधिकांश के पास कुशल योग्य स्टाफ नहीं होने से शिक्षा के साथ जो खुला मजाक हो रहा है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारी-भरकम रकम का खुला खेल शिक्षा केन्द्र स्थापना से लेकर संचालित होने तक यहां आसानी से देखा जा सकता है। जगह-जगह इस क्षेत्र में खुली दुकानदारियां इसका साक्षात उदाहरण दे रही हैं, जहां शिक्षा के वास्तविक मूल्य का कोई अर्थ नहीं। इस तरह की भूमिका में सरकार भी कहीं पीछे नहीं है जो बिना वास्तविक जांच किये ही शिक्षा का पट्टा गले में टांग कर वाहवाही लूट लेती है। एक सरकार मान्यता देती है तथा दूसरी सरकार उसे रद्द कर देती है। इस तरह के परिवेश में अर्थ कमाने की साफ-साफ प्रवृत्ति हावी देखी जा सकती है। जहां इस तरह के परिवेश के चलते आज यहां लाखों नौजवान प्रकाश पाने के मार्ग में अंधकारमय भविष्य के प्रति चिंतित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त इस तरह की घिनौनी विकृतियों के आज लाखों शिकार हो रहे हैं जो स्थायित्व के लिये घातक है। जहां शिक्षा का वास्तविक स्वरूप निरूद्देश्य होता साफ-साफ दिखाई दे रहा है। जिसके कारण आज शिक्षा एवं शिक्षकों के बीच दूरियां बढ़ती ही दिखाई दे रही है। इस तरह के परिवेश जीवन की सार्थकता को मिटा रहे हैं। शिक्षा के बदलते व्यवसायिकरण स्वरुप ने शिक्षा के उदेश्य को ही मिटा डाला है।
आज शिक्षा के व्यवसायिकरण से शिक्षा, शिक्षार्थी एवं शिक्षक में काफी दूरी बढ़ चली है। शिक्षक अपने वास्तविक स्वरुप को भूल चुके हैं। शिक्षक जब तक अपनी अवधारणा को धारण करने के प्रति कृृतसंकल्प नहीं होगे, शिक्षा का वास्तविक स्वरुप उजागर नहीं हो सकेगा। शिक्षा सेवा है, इसे व्यवसाय से जोड़ना, इसके मूल्य उदेश्य पर प्रहार है। इस तथ्य को समझना हितकारी हो सकता है। शिक्षा प्रणाली का व्यवसायिक रूप तो लाभदायी हो सकता है पर शिक्षा देने की प्रक्रिया का व्यवसायिकरण अहितकारी परिणाम दे सकता है।
(स्वतंत्र पत्रकार)
सियासी मीयार की रिपोर्ट