न्यायपालिका के समक्ष चुनौतियां..
अगर मुकदमों का निपटारा समयबद्ध तरीके से नहीं होता है तो नागरिकों के अदालत का दरवाजा खटखटाने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अब भी लोग न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं। अकेले अक्टूबर के महीने में देश भर की अदालतों में 16 लाख से ज्यादा मामले पहुंचे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के जरिए जजों की बहाली का सुझाव दिया तो उनके सामने ही देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें न्यायालय का दरवाजा खटखटाने से डरना नहीं चाहिए क्योंकि अदालतें आम लोगों के लिए ही हैं। देश की प्रथम नागरिक और चीफ जस्टिस दोनों की बातें सुनने में बहुत अच्छी लग रही हैं। लेकिन क्या सचमुच प्रतियोगिता परीक्षाओं के जरिए जजों की नियुक्ति से न्यायपालिका की समस्याएं या उसकी चुनौतियों का समाधान हो जाएगा? और क्या आम नागरिकों के न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने से उनको न्याय मिलना सुनिश्चित हो जाएगा? इन दोनों पहलुओं पर विचार करने की जरूरत है। महामहिम राष्ट्रपति ने जो कहा उससे पहली नजर में ऐसा लग रहा है कि अगर अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के जरिए जजों की नियुक्ति होगी तो उच्च न्यायपालिका में विविधता सुनिश्चित होगी और ज्यादा प्रतिभाशाली लोग न्यायिक सेवा में आएंगे। लेकिन असल में ऐसा होने की कोई गारंटी नहीं है। उलटे जजों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था से छेड़छाड़ से न्यायिक सेवाओं की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर भी हो सकता है। ध्यान रहे निचली अदालतों में न्यायिक सेवाओं के जरिए मजिस्ट्रेट की बहाली होती है लेकिन उच्च अदालतों में जज बनने के लिए बार से ज्यादा सिफारिशें की जाती हैं। अगर हाई कोर्ट्स में न्यायिक सेवा के जरिए बहाली होगी तो संभव है कि दुनिया के अच्छे संस्थानों से पढ़ कर आए और अच्छी प्रैक्टिस कर रहे वकील परीक्षा में हिस्सा न लें। मौजूदा व्यवस्था में अच्छे वकीलों की सहमति लेकर उनके नाम कॉलेजियम की ओर से नियुक्ति के लिए भेजे जाते हैं। इस व्यवस्था में भी कई कमियां हैं, लेकिन उन्हें सुधार कर इसे बेहतर किया जा सकता है। इसी तरह नागरिकों को न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने की सलाह देना अच्छी बात है लेकिन न्याय सुनिश्चित करना उतना आसान नहीं है। देश भर की अदालतों में करीब साढ़े चार करोड़ मुकदमे लम्बित हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 70 लाख केस ऐसे हैं, जो पांच से 10 साल की अवधि के हैं तो 32 लाख से ज्यादा केस 10 से 20 साल पुराने हैं। पांच लाख केस 20 से 30 साल पुराने हैं और 30 साल से ज्यादा समय से लम्बित मुकदमों की संख्या भी करीब एक लाख है। तभी सवाल है कि अगर मुकदमों का निपटारा समयबद्ध तरीके से नहीं होता है तो नागरिकों के अदालत का दरवाजा खटखटाने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अब भी लोग न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं। अकेले अक्टूबर के महीने में देश भर की अदालतों में 16 लाख से ज्यादा मामले पहुंचे। तभी सर्वोच्च अदालत और सरकार दोनों को मिल कर ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि अदालतों में पहुंचने वाले मुकदमों का समयबद्ध निपटारा हो। इसके लिए जजों की नियुक्ति और बुनियादी ढांचे का विकास दोनों जरूरी है।
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