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बीमा कंपनियों की लूट सरकार मौन, इरडा की आंखें बंद..

बीमा कंपनियों की लूट सरकार मौन, इरडा की आंखें बंद..

-सनत जैन-

केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी देश के 87 फ़ीसदी लोगों के पास जीवन बीमा की पॉलिसी नहीं है। 73 फीसदी लोग स्वास्थ्य बीमा से वंचित हैं। राष्ट्रीय बीमा अकादमी की जो रिपोर्ट आई है, वह काफी चौंकाने वाली है। भारत में 26 वर्ष से लेकर 45 वर्ष आयु के 90 फ़ीसदी लोगों को जीवन बीमा का लाभ अभी तक नहीं पहुंचा है। छोटे शहरों में 77 फ़ीसदी लोगों को पर्याप्त कवर वाली जीवन और स्वास्थ्य बीमा की सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी में जमकर लूट हो रही है। स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा पॉलिसी बेचने वाली निजी कंपनियां पाल्सी होल्डर के साथ लूट कर रही हैं। पाल्सी बेचते समय और प्रीमियम जमा करने की शर्ते अलग हैं। उस समय पॉलिसी होल्डर को अपने नियम कायदे-कानून नहीं बताना, उनका स्वास्थ्य परीक्षण नहीं करना और बीमा पॉलिसी बेच देना। निजी कंपनियों के ‎लिये बहुत आसान है। लेकिन जब मुआवजा देने की बात आती है, तब यह कंपनियां मुकर जाती हैं। नियम कायदे कानून और शर्तों की आड़ में बिना ठोस कारण बताए उनके मेडिक्लेम के केस खारिज कर दिए जाते हैं। कुछ इसी तरीके की शिकायतें अब जीवन बीमा पा‎लिसी की भी सामने आने लगी हैं। कई वर्षों तक प्रीमियम जमा करने के बाद जब व्यक्ति की मौत होती हैख् तो तरह-तरह के कारण बताकर उसके परिवार जनों को बीमा राशि का भुगतान नहीं किया जाता है। मेडिक्लेम के 80 फ़ीसदी क्लेम को बीमा कंपनियों ने बिना कारण बताए ठुकरा दिया है। जिन्होंने मेडिक्लेम की बीमा पॉलिसी ली थी, वह अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। कोरोना के बाद स्वास्थ्य बीमा लेने की लोगों में समझ बढ़ी है। लोग अपने परिवार की सुरक्षा के लिए मेडिक्लेम पॉलिसी बड़े पैमाने पर लेने लगे हैं। जब मेडिक्लेम की पॉलिसी बेची जाती है, उस समय पोलसी होल्डर को कुछ नहीं बताया जाता है। लेकिन जब कोई क्लेम आता है तो उसे बिना ठोस कारण बताएं खारिज कर दिया जाता है। पिछले 1 साल में हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी 29153 शिकायतें लोकपाल के पास पहुंची। इनमें लगभग 12348 लोकपाल के पास पहुंची है। जिनमें से 80 फ़ीसदी बिना सुनवाई के लोकपाल महोदय द्वारा खारिज कर दी गई हैं। लोकपाल भी बीमा कंपनियों के एजेंट की तरह काम करते हुए ‎दिख रहे हैं। जब कोई भी शिकायत लोकपाल के यहां पहुंचती है, तो पॉलिसी होल्डर को 18 पेज की नियम और शर्तें थमा दी जाती हैं। शर्तें जो भी थी, यह पॉलिसी देते समय क्यों नहीं थमाई गई। इसका निराकरण भी बीमा लोकपाल नहीं करता है। बीमा कंपनियों की यदि इस तरीके की शर्ते हैं, तो उन्हें पॉलिसी देने के पहले उन्हें अनिवार्य स्वास्थ्य परीक्षण कराना चाहिए। जब पाल्सी का नवीनीकरण करते हैं, तब भी उन्हें स्वास्थ्य परीक्षण कराकर ही पॉलिसी बेचना चाहिए। लोन और एडवांस के समय बैंकों द्वारा जो अनिवार्य पॉलिसी दी जाती हैं, उसमें भी पैसे काटने के पहले स्वास्थ्य परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए। क्लेम की राशि क्यों काटी जा रही है, इसका भी कारण बीमा कंपनियों को बताना चाहिए। बीमा कंपनियां करोड़ों रुपए की लूट बीमा के नाम पर कर रहे हैं। अनिवार्य बीमा के नाम पर जजिया कर की तरह लोगों से प्रीमियम की वसूली की जा रही है। जब क्लेम देने की बारी आती है, तब तरह-तरह के नियम कायदे कानून बताकर क्लेम रिजेक्ट करना अपराधिक कृत्य माना जाना चाहिए। बीमा कंपनियों की कार्यप्रणाली इसी बात से समझी जा सकती है, कि राष्ट्रीय उपभोक्ता निवारण सहित अन्य आयोग में 1.60 लाख बीमा क्लेम पेंडिंग पड़े हुए हैं। बीमा लोकपाल द्वारा पिछले 1 साल में 5972 मामलों में ग्राहक के पक्ष में तथा 3270 मामलों में बीमा कंपनियों के हक में फैसले दिए हैं। बीमा कंपनियों ने सबसे प्रीमियम तो वसूल किया है, लेकिन क्लेम देने के मामले में बहुत पीछे हैं। बीमा कंपनियां ग्राहकों को ठगकर अरबों रुपए की कमाई प्रतिवर्ष कर रहे हैं। सरकार आंख में पट्टी बांधकर बैठी हुई है। बीमा लोकपाल भी बिना सुनवाई किए हुए क्लेम की शिकायतों को खारिज कर रहे हैं। बीमा नियामक आयोग इरडा की चुप्पी से अब लोगों में नाराजी बढ़ने लगी है। बीमा कंप‎नियों की ठगी ‎निर्बाध रुप से जारी है।

सियासी मियार की रीपोर्ट