Monday , December 30 2024

कहानी : चयन..

कहानी : चयन..

-रूचिप जैन-

मनुष्य के जीवन में उसका चयन ही निर्धारित करता है कि उसका आगे का सफ़र कैसा होगा। ऐसा ही कुछ रामप्यारी के साथ हुआ जो गाँव में अपने पति और चार बच्चों के साथ रहती थी। रामप्यारी का पति गोवर्धन एक परिश्रमी व समझदार किसान था। क़िस्मत भी उसका साथ देती, हर साल फ़सल अच्छी होती थी। उसने पचास बीघा ज़मीन और ख़रीद ली। रामप्यारी भी खेती में उसकी मदद करती और बच्चों का लालन पालन करती। बुआई और कटाई के समय गोवर्धन कुछ मज़दूरों को काम पर रख लेता था। पड़ोस में उसका चचेरा भाई रघु रहता था, रघु के पास भी पचास बीघा ज़मीन थी। उसकी फ़सल भी अच्छी होती थी, लेकिन शराब की लत के कारण उसे अकसर ऋण लेना पड़ता था। इस ऋण की किस्त चुकाने में ही आधी से ज़्यादा आमदनी ख़त्म हो जाती थी।

रघु गोवर्धन से बहुत जलता था, वह अपनी बुरी आदत छोड़ नहीं सका पर गोवर्धन के विनाश की प्रार्थना रोज़ करता। गोवर्धन के तीनों पुत्र शिक्षा ग्रहण करने पाठशाला जाते और ख़ाली समय में अपने पिता का हाथ बटाते। लेकिन रघु का पुत्र दिन भर आवारागर्दी करता रहता, वह ना तो पाठशाला जाता और न ही पिता के साथ खेत। समय अपनी रफ़्तार से चल रहा था गोवर्धन उन्नति के पथ पर चल रहा था और रघु विनाश के। वर्षा ऋतु थी, चारों ओर हरियाली छाई हुई थी, किसान भी बहुत प्रसन्न थे। अच्छी वर्षा के कारण सभी अच्छी फ़सल की उम्मीद लगाए बैठे थे। खेत से लौटते हुए गोवर्धन बारिश में भीग गया और यह कोई नई बात नहीं थी वर्षा ऋतु में अक्सर ऐसा होता था। पर इस बार बारिश में भीगने के कारण गोवर्धन बीमार पड़ गया।

गाँव में अस्पताल न था बस एक दवाखाना था, वहाँ का डॉक्टर भी महीने भर की छुट्टी गया हुआ था। इस बार घरेलू इलाज का भी गोवर्धन पर कोई असर न हुआ ओर बुखार ने निमोनिया का रुप ले लिया। इलाज के अभाव में गोवर्धन को बचाया ना जा सका। गोवर्धन के देहांत के बाद परिवार की सारी ज़िम्मेदारी रामप्यारी के कंधों पर आ गई, पर उसने हिम्मत नहीं हारी। वो अब खेत और धर दोनों संभालती, इसमें बड़े बेटे ने उसका पूरा साथ दिया। वह स्कूल भी जाता और माँ के साथ खेतों में काम भी करता, ज़रूरत पड़ने पर वह अपने छोटे भाई बहनों को भी संभालता। लेकिन रधू को गोवर्धन का परिवार फूटी आँख न सुहाता, वह रामप्यारी के बच्चों को मारने के अलग-अलग हथकंडे अपनाता रहता था। जादू टोकने करवाता, कभी उनके घर में साँप छुडवाता। एक बार तो उसने हद ही कर दी, रामप्यारी का मँझला बेटा मोहन माँ के पास खेत जा रहा था, तब रधू ने मोहन को रास्ते में पड़ने वाले तालाब में धकेल दिया और वहाँ से भाग खड़ा हुआ।

मोहन को तैरना नहीं आता था वह डर के मारे बेहोश हो गया। पर उसकी क़िस्मत अच्छी थी, उसी समय गाँव के पण्डित उधर से निकले। किसी को डुबता देख पण्डित जी तालाब में कूद पड़े और मोहन को बचा लिया। इस तरह मोहन उस दिन मोहन के प्राण बच गए। रामप्यारी को अब अपने बच्चों पर मौत का ख़तरा मँडराता दिख रहा था। गाँव में कोई उसकी मदद् करने को तैयार न था, रघु से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था क्योंकि रघु मुखिया का चमचा था। अब रामप्यारी को ज़मीन और बच्चों के जीवन में चयन करना था। उसने निश्चय किया कि बच्चों को लेकर वो आधी रात को गाँव छोड़कर अपने भाई के पास शहर चली जाएगी। और उसने ऐसा किया भी, उसने बच्चों को समझाया कि रात में बिना आवाज़ किए घर से निकलना है, हम मामा के घर जाएँगे पर ये बात किसी को नहीं बताना है। प्रकाश और मोहन तो माँ की बात समझ गए पर छोटे दोनों राजू और शान्ति को कुछ समझ में नहीं आया वे बोले, “माँ रात में सोने दो दिन में चलेंगे”। रामप्यारी को डर था कि कहीं दोनों छोटे बच्चों को जब आधी रात को उठाए तो कहीं वे रोने न लगे या आपस में लड़ने न लगे। उसने दोनों छोटों को ढेर सारी मिठाई और कपड़ों का लालच देकर समझाया कि अगर हम मामा के घर रात को चुप चाप के घर जाएँगे तभी मामा हमें मिठाई और कपड़े देंगे। आधी रात को रामप्यारी ने अपने साथ पैसे, ज़ेवर और चारों बच्चों को लिया, एक हाथ में हँसिया और डंडा लेकर घर से निकल पड़ी।

खेतों की पगडंडियों से होती हुई दूसरे गाँव पहुँच गई। वहाँ से उसने शहर के लिए बस पकड़ी और अपने भाई के घर पहुँच गई। भाई, भाभी रामप्यारी को देख बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने बड़े प्यार से रामप्यारी का स्वागत किया। भाई, भाभी के अपनी कोई औलाद नहीं थी, वे रामप्यारी के बच्चों को ही अपनी औलाद के समान प्यार करते थे। भाई एक फ़ैक्टरी में काम करता था, धन से अमीर न था पर मन का अमीर था। यहाँ भी उसे दो मार्ग में से एक मार्ग का चयन करना था वो था कि या तो वह अपने दोनों बड़े बेटों अपने भाई के साथ फ़ैक्टरी में काम पर लगवा दे। या ख़ुद काम कर बच्चों को शिक्षित करती और उनका भरण -पोषण करती। रामप्यारी ने ख़ुद काम करने का निर्णय लिया, उसने भाई से काम करने की इच्छा प्रकट की, पहले भाई ने मना कर दिया पर उसके ज़ोर देने परमान गया।

भाई जिस सेठ की फ़ैक्टरी में काम करता था उनके घर पर एक मिसरानी (रसोईया) की ज़रूरत थी। रामप्यारी पाक-कला में निपुण थी इसलिए भाई ने रामप्यारी को अपने सेठ के यहाँ काम पर रखवा दिया। रामप्यारी मेहनती, ईमानदार तो थी ही वह भोजन भी बहुत स्वादिष्ट बनाती थी, उसके इन्हीं गुणों के कारण जल्दी ही वो सेठानी की प्रिय बन गई। वह सुबह से शाम तक सेठ के घर में मन लगा कर काम करती, सेठ के बच्चे भी उससे हिल-मिल गए थे। भूख लगती तो उसी के पास दौड़े -दौड़े आते , उसके पास बैठ बात सुनते। ऐसे ही दिन बीतने लगे, सेठ सेठानी दयालु थे उन्होंने रामप्यारी के दोनों बेटों को पढ़ाने का ज़िम्मा ले लिया। प्रकाश और मोहन का जब कॉलेज में दाख़िला हुआ तो उन्होंने निर्णय लिया कि वो अपने कॉलेज की फ़ीस ख़ुद कमा कर भरेंगे। यह बात उन्होंने रामप्यारी से कही जिसे सुनकर उसे अपने बेटों की ख़ुद्दारी पर गर्व हुआ। रामप्यारी ने यह बात जब अपने सेठ को बताई तब सेठ ने प्रकाश और मोहन को अपने यहाँ हिसाब देखने के काम पर रख लिया। रामप्यारी सेठ के यहाँ काम करने के साथ-साथ अचार पापड़ बना कर बेचने लगी, क्योंकि बच्चे बड़े हो रहे थे और ख़र्चे भी बढ़ रहे थे।

समय अपनी गति से चल रहा था और रामप्यारी अपने भाई, भाभी और बच्चों के साथ अपने सपने और उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रही थी। रामप्यारी की मेहनत रंग लायी प्रकाश की नियुक्ति एक सरकारी बैंक में हो गई और मोहन विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर नियुक्त हुआ। राजू कॉलेज में आ गया, शान्ति भी बारहवीं में आ गई। प्रकाश और मोहन का विवाह तय हो गया, अब घर में और कमरों की ज़रूरत महसूस होने लगी। यह निर्णय किया गया कि घर में जो दो कच्चे कमरे है, उन्हें पक्का करवा दिया जाए। कमरा बनवाने के लिए मज़दूरों को बुलवाया गया। पर जैसे ही एक कमरे की खुदाई शुरू हुई, मज़दूरों का फावड़ा किसी भारी लोहे की वस्तु से टकराया। एक भयंकर आवाज़ से पूरा घर गूँज उठा, सब थोड़ा घबरा गए। शाम हो चुकी थी, उस दिन का कार्य समाप्त हुआ और मज़दूर अपने घर चले गए। घर में सभी थोड़े विचलित थे, तभी प्रकाश बोल पड़ा पता नहीं मज़दूरों का फावड़ा किस चीज़ से टकराया अब इसका पता कल ही चलेगा। सब ने सिर हिला दिया और अपने ही विचारों में खो गए। तभी सन्ध्या आरती की आवाज़ शान्ति के कानों से टकराई और वह झटके से उठकर रसोई की ओर चल दी। क्योंकि रामप्यारी सन्ध्या पूजा के बाद सब के साथ रात का भोजन करती थी इसलिए शान्ति खाना परोसने रसोई की ओर चली गई। खाना खाते समय सब अपना अपना अनुमान लगा रहे थे कि आवाज़ क्यों और कैसे आई, भोजन समाप्त कर सब सोने चले गए। आधी रात को सब रामप्यारी की चीख़ सुन कर जाग गए, दौड़ कर उसके पास आए, देखा रामप्यारी पीने से तर थी। भाई-भाभी, मोहन और प्रकाश रामप्यारी के पास बैठ गए, शान्ति पानी ले कर आई, रामप्यारी को पिलाया।

फिर जो रामप्यारी ने बताया उसे सुनकर सबके होश उड़ गए। हुआ यह कि रामप्यारी ने एक सपना देखा जिसमें एक काला नाग उसे ख़ज़ाना दिखा रहा था, कई बड़े लोहे के बक्सों में सोने के सिक्के, ज़ेवर आदि थे। वह नाग बोला “तुम्हारे कमरे के नीचे ख़ज़ाना है, तुम उसे ले सकती हो पर बदले में तुम्हें मुझे अपना बड़ा बेटा देना होगा। इस पर रामप्यारी नहीं नहीं चिल्ला उठी, भाई ने बहन को सांत्वना देते हुए कहा, “बहन तू न घबरा यह तो एक सपना था प्रकाश को कुछ नहीं होगा और मन में कोई आशंका हो तो नाग देवता से प्रार्थना कर कि तुझे ख़ज़ाना नहीं चाहिए मेरे बेटे को कुछ न करे। उस कमरे का काम भी बन्द करवा देते है, दूसरा कमरा ऊपर बनवा लेंगे। रामप्यारी को भाई की बात ठीक लगी, उसने नाग देवता से प्रार्थना की और सब को हिदायत दी कि उस कमरे में कोई न जाए। माँ की ख़ुशी के लिए सबने उसकी बात मान ली, पर राजू को यह फ़ैसला पसन्द नहीं आया।

उसे ख़ज़ाना चाहिए था वह जल्दी अमीर बनना चाहता था। एक दिन रात को जब सब सो गए राजू उस कच्चे कमरे में घुस गया और ज़मीन खोदने लगा। उसका फावड़ा किसी भारी वस्तु से टकराया तब उसने हाथ से मिट्टी हटा कर उस वस्तु को पकड़ने की कोशिश की पर यह क्या, उसे महसूस हुआ कि वो वस्तु आगे खिसक गई। पहले तो उसे यह अपना भ्रम लगा और उसने फिर खोदना शुरु कर दिया पर इस बार भी पहले जैसा ही घटित हुआ। उसने पंद्रह -बीस बार कोशिश की पर नतीजा एक सा रहा। हार कर वो कमरे से बाहर आ गया, रामप्यारी ने उसे निकलते देख लिया। उसका कलेजा मुँह को आ गया वो भाग कर कमरे में गई, वहाँ का नज़ारा देखकर वो आवाज़ रह गई। घुटने के बल बैठ कर नाग देवता से क्षमा माँगने लगी ओर नाग देवता को वचन दिया कि वो इस कमरे में ताला लगवा देगी, किसी को भी कमरे में नहीं घुसने देगी।

उसकी आवाज़ सुन कर सारा परिवार वहाँ आ गया। सारा माजरा समझ कर रामप्यारी के भाई -भाभी ने राजू को फटकार लगाई और उससे नाग देवता से क्षमा माँगने को कहा। राजू के साथ जो घटित हुआ उसके बाद वो भी घबराया हुआ था, उसने नाग देवता से क्षमा -याचना की फिर रात की घटना का वर्णन विस्तार से किया। उसकी बात सुनकर सब घबरा गए और प्रार्थना करने लगे कि परिवार के किसी सदस्य के साथ कोई अनिष्ट न हो। यहाँ भी रामप्यारी ने अपने परिवार का ही चयन किया, धन दौलत का नहीं और शायद आगे भी ऐसा ही करती रही।

सियासी मियार की रेपोर्ट