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कहानी: आ अब लौट चलें…

कहानी: आ अब लौट चलें…

-गीता दुबे-

सूर्यास्त हो चुका था लेकिन अंधेरा होने में अभी आधे एक घंटे की देरी थी। हर रोज की तरह आज प्रेम प्रकाश चैधरी अपने बागीचे में लगाए गए पौधों को निहार नहीं रहे थे वरना यह वक्त तो उनके लिए पौधों से बातें करने का होता है। एक तो दिन की गर्मी से वे ऐसे ही बेहाल थे ऊपर से बेटे के कहे शब्द ने उन्हें बिलकुल अस्तित्व विहीन कर दिया था। बेटे की आवाज अब भी उनकी कानों में गूंज रही थी।

पापा आपने किया ही क्या अपनी लाइफ में, एक क्लर्क बनकर ज्वाइन किया और क्लर्क रहकर ही रिटायर हो गए। एक घर तक नहीं बना पाए.. ये घर तो दादा जी ने ही बनवाया था, हां इसमें थोड़ी बहुत मरम्मत आपने जरुर करवाई। अब प्लीज पापा मुझे मुंबई जाने से मत रोकिए, सिर्फ चार सालों में ही मेरा प्रमोशन क्लर्क से मैनेजर के पद पर हो गया, इस छोटे से कस्बे में रहकर मैं भी आपकी ही तरह क्लर्क ही रह जाऊंगा। मुझे लाइफ में बहुत अचीव करना है।

प्रेम प्रकाश चैधरी गोद में बैठा सात वर्षीय अपने पोते मृदुल को देख रहे थे और साथ में थीं उनकी धर्मपत्नी कमला। मृदुल को अपने दादा जी से विशेष लगाव था। बहू ने घर की नौकरानी के हाथों संध्या की चाय अपने सास- ससुर को भिजवा दिया और खुद अनुराग के साथ उसके कमरे में चाय पीने चली गई इतने में नौकरानी ने आवाज लगाई-

मेमसाहब जी हम रात का खाना बना चुके हैं, मेरा काम खत्म हो चुका है। बस एक कप चाय अपने हाथों की पिला दीजिए।

नंदिनी मन ही मन खीज गई-ये काम वाली.. यहां सभी को मेरे ही हाथों की बनी चाय चाहिए.. काम तो ये जरुर करतीं हैं लेकिन इनके नखरे हमें सहने पड़ते हैं.. लो चाय तैयार है.. नंदिनी उसे चाय देकर स्कूल से लाई हुई कॉपी चेक करने चली गई। नौकरानी ने फिर आवाज लगाई।

अरे मेमसाहब जी, चाय तो मेरी ठंढी हो गई, हम तो मृदुल का जूता पॉलिश करने लगे थे, और हां उसका स्पोर्ट्स शू भी धो दिए हैं.. कल मंडे है न उसका स्पोर्ट्स डे.. अब जरा चाय गर्म कर दीजिए न…

नंदिनी ने फिर खीजते हुए चाय गर्म कर उसे दे दिया और खीजते हुए अनुराग से बोली-

सुना तुमने अनुराग, जरा सा कॉपी लेकर क्या बैठी, महारानी फरमाइश पर फरमाइश करने लगी… जैसे वह मालकिन हो और मैं नौकरानी.. यहां तो मेरा दम घुटता है.. मुबई जाकर टीचिंग छोड़ दूंगी.. वैसे भी कंप्यूटर पढ़ाना मुझे अच्छा नहीं लगता। एमसीए. की डिग्री है.. किसी भी कम्पनी में काम मिल जाएगी।

हां हां यहां हमारा डेवलपमेंट ही रुक जायेगा- अनुराग ने नंदिनी के बातों में हामी भरी।

चाईबासा का एक छोटा सा मोहल्ला है, आमलाटोला, इसी मोहल्ले में प्रेम प्रकाश चैधरी का एक बड़ा सा मकान है, इस मकान को उनके पिता प्रेम सागर चैधरी ने बनवाया था। अनुराग का जन्म इसी घर में हुआ, इसी घर में अनुराग का विवाह भी हुआ और इसी घर में प्रेम प्रकाश चैधरी के पोते का भी जन्म हुआ। इस घर से उन्हें विशेष लगाव था, अनुराग उनका इकलौता बेटा था। अनुराग के मुंबई चले जाने के बाद उस घर की देखभाल कौन करेगा, यह चिंता उन्हें खाए जा रही थी। यकायक सासू मां की आवाज से नंदिनी का ध्यान कॉपी से हटकर उनकी ओर गया,

बहू खाना लगा दिया है.. आ जाओ.. सभी तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं।

नंदिनी झट उठकर वहां चली आई और कहने लगी-

मम्मी जी आपने खाना क्यों लगाया मैं तो आ ही रही थी… ये मम्मी जी भी हैं न कभी चैन से रहने नहीं देतीं.. जरा देर हुई नहीं कि खुद काम सिमटाने लगतीं हैं और बाद में सभी जगह कहते फिरेंगी किसी बहू के आ जाने से मुझे कोई आराम नहीं है। आखिर वह समय भी आ गया जब अनुराग को नंदिनी और बेटे आकाश के साथ उस छोटे से कस्बे को अलविदा कहना पड़ा। छूट गए माता-पिता, छूट गए वो नौकर चाकर, छूट गया बड़े लॉन वाला आठ कमरों का वह बड़ा पुश्तैनी मकान, रह गए सिर्फ प्रेम प्रकाश चैधरी और पत्नी कमला देवी। बार-बार मन को समझाने पर भी प्रेम प्रकाश चैधरी और कमला देवी को उनका जाना काफी खल रहा था। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे और सबकुछ सामान्य होने लगा। वहीं मुंबई पहुंचकर अनुराग और नंदिनी वहां के चकाचैंध में खो गए… उन्हें मुंबई शहर बहुत भा गया था। कहां वह छोटा सा कस्बा, जहां सभी लोग करीब करीब एक- दूसरे को पहचानते थे, और कहां यह न खत्म होने वाला महानगर। कुछ दिन तो वह वहां की भूल-भुलैया में खोए रहे फिर धीरे-धीरे वे सभी चीजें उनकी आदत में शामिल हो गईं। आकाश का एडमीशन वहां के स्कूल में हो गया। नंदिनी को भी मन मुताबिक जॉब मिल गया, फ्लैट की तीन चाबियां बनवा लीं गईं, एक अनुराग, एक नंदिनी और एक आकाश के लिए। तीनों सुबह आठ बजे घर से निकल जाते थे और संध्या समय ही सभी मिलते। आकाश सबसे पहले घर पहुंचता फिर नंदिनी और अंत में अनुराग। जिंदगी की रफ्तार काफी तेज हो गई थी। इस तरह करीब छः माह बीत गए। आकाश के स्कूल में परेंट्स टीचर मीटिंग थी, टीचर ने अनुराग और नंदिनी को आकाश के रिजल्ट दिखाए.. आकाश एक दो को छोड़ कर बाकी सभी विषयों में फेल था। टीचर ने बताया कि वह बिलकुल गम-सुम रहता है, आकाश एक भी दोस्त अब तक नहीं बना पाया है और उसके यूनिफार्म, जुटे सभी चीजें गंदे रहते हैं, यह सुनकर दोनों के होश उड़ गए, दोनों सोचने लगे ऐसा कैसे हो गया? वहां तो पापा जी पढ़ाते थे तो वहां आकाश हमेशा अव्वल आता था। दोनों को वहां के नौकर-चाकर, पापा- मम्मी सभी की कमी खलने लगी, उन्हें यह महसूस होने लगा कि वे कैसे उनसबों पर आश्रित थे और इसलिए उनकी जिंदगी उस छोटे से कस्बे में कितनी सुगम थी। एक दिन ऑफिस से लौटने पर जब नंदिनी ने आकाश को दरवाजे पर सोता हुआ पाया तो उसका हृदय द्रवित हो गया। आकाश से घर की चाबी खो गई थी, इसी वजह से वह बहुत देर तक दरवाजे पर बैठा रहा और फिर उसकी वहीं आंख लग गई। आज नंदिनी को वह अपना छोटा सा कस्बा बहुत याद आ रहा था जब एक खरोंच लगने पर आकाश के लिए लोग दौड़ पड़ते थे, यहां आकाश चार घंटे से दरवाजे पर पड़ा रहा लेकिन पड़ोसियों की नजर उस पर नहीं पड़ी। अनुराग और नंदिनी को उस छोटे से कस्बे और इस महानगर की बुनियादी फर्क अच्छी तरह समझ में आने लगे। नंदिनी ने ऑफिस से एक सप्ताह की छुट्टी ले ली, घर के कुछ काम निपटाने थे और आकाश के साथ भी वक्त बिताना था। अब जब आकाश स्कूल से घर आता तो मम्मी को घर पर देखकर काफी खुश होता। दूसरे सप्ताह नंदिनी के लिए ऑफिस में काम और बढ़ गया, वह घर पर भी ऑफिस के काम निपटने लगी। अनुराग ने बताया कि आगामी रविवार को उसे ऑफिस के काम से फुर्सत नहीं मिलेगी, नया प्रोजेक्ट लॉन्च होने वाला है। नंदिनी भी ऑफिस का काम लेकर बैठ गई। आकाश जिद करने लगा कि मम्मी या तो तुम मेरे साथ खेलो या फिर मुझे बाहर घुमाने ले चलो।

नंदिनी ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माना, शोर मचाने लगा और घर के सामान फेंकने लगा। नंदिनी अपने पर काबू नहीं रख पाई और उसने बेल्ट से आकाश को इतना मारा कि शरीर पर दाग उभर आए। आकाश पलंग के नीचे छुपकर रोता रहा, शाम को घर लौटकर अनुराग ने आकाश के लिए ढेर सारे खिलौने खरीदे थे। घर पहुंचते ही अनुराग ने आवाज लगाई लेकिन आकाश पलंग के नीचे से निकला ही नहीं, नंदिनी ने अनुराग को सारी बातें बता दीं। अनुराग गुस्से से उबल पड़ा, उसने नंदिनी को जबरदस्त डॉट लगाईं। नतीजा दूसरे दीं नंदिनी ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। आकाश को मारने का नंदिनी का यह प्रायश्चित था। उधर अनुराग आकाश के लिए किसी मनोचिकित्सक की सलाह लेने के बारे में सोचने लगा। यह खबर जब दादा जी को दी गई तो वह अनुराग और नंदिनी पर बरस पड़े। अंत में अनुराग और नंदिनी ने यह फैसला लिया कि वे वापस उसी कस्बे में लौट चलें जहां खुशनुमा जिंदगी उनका इन्तजार कर रही है।

अगले दीं अनुराग आकाश को जगा रहा था- बेटा जल्दी उठो वरना ट्रेन छूट जायेगी। आकाश ने आखें खोलीं और पूछ बैठा- पापा हमें कहां जाना है। अनुराग ने उसे बताया कि दृ बेटा हम वापस दादा जी के पास जा रहे हैं… यह सुनते ही आकाश बिस्तर पर खुशी से कूदने लगा और अपने पापा से लिपट गया। अनुराग और नंदिनी खुशी से उसकी ओर देखने लगे।

सियासी मियार की रीपोर्ट