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मुफ्त की रेवड़ी और बढ़ता कर्ज का बोझ..

मुफ्त की रेवड़ी और बढ़ता कर्ज का बोझ..

-अजय दीक्षित-

स्वयं प्रधानमंत्री ने विभिन्न राज्यों द्वारा जनकल्याण की बात कह कर लोगों को टैक्स व अन्य सेवाओं के लिए लिया जाने वाला प्रभार माफ करके जरूर वाहवाही लूटी होगी। परन्तु इससे उन राज्यों पर कर्ज का जो बोझ बढ़ गया है, वह चिन्तनीय है। स्वयं रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया चेता चुका है कि राज्यों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी चुनाव आयोग को निर्देश दे चुका है कि इन राजनैतिक दलों से पूछें कि मुफ़्त की घोषणा के लिए वित्तीय विधान कैसे किया जायेगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविन्द केजरीवाल ने सबसे पहले इस मुफ्त की रेवड़ी की बात शुरू की थी कि दिल्ली के किसी निवासी को बिजली का बिल नहीं देना है। फिर फ्री पानी, फ्री राशन, फ्री चिकित्सा सेवा आदि की घोषणा की गई। बाद में मुख्यत: कांग्रेस ने कम दाम पर गैस सिलेण्डर आदि की घोषणा की। मोदी जी की स्वयं की आलोचना के बाद अब भाजपा शासित राज्य भी फ्री की रेवड़ी बांटने में पीछे नहीं है। अब तो शायद ही कोई राजनैतिक दल होगा जिसने फ्री की बात नहीं की है। मध्य प्रदेश में चुनाव से कुछ पहले महिलाओं को हर माह 1200/- की सहायता ने मध्य प्रदेश में भाजपा को प्रचण्ड बहुमत दिलवाया। कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने पिछले साल जितना कर्ज लिया था उतना अब तीन राज्य तीन महीने में ही ले लेंगे। तेलंगाना में कांग्रेस ज्यादा कर्ज नहीं ले पायेगी, क्योंकि के.सी.आर. की सरकार 87 फीसदी कर्ज पहले से ही ले चुकी है। पूरे साल जितना कर्ज रिजर्व बैंक से ले सकते हैं उसका 80 फीसदी राजस्थान सरकार को एक माह में ही ले लेना पड़ेगा ताकि गैस सिलेण्डर में रियायत, बिजली बिल में माफी आदि के वादे पूरे कर सकें। सन् 2023 के चुनाव में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ दल ने जो वादे किये हैं वे इस प्रकार हैं:- • मध्य प्रदेश: 1.31 करोड़ महिलाओं को लाड़ली बहना और गैस सिलेण्डर पर 1708 रु./माह देना है। 44.13 लाख बिजली उपभोक्ताओं को 388 रु./माह सब्सिडी देना है। इन दोनों योजनाओं के लिए सालाना खर्च 21,696 करोड़ रुपये है। • राजस्थान: 450 रु. में सिलेण्डर देने के लिए हर साल 3,720 करोड़ चाहिये। रियायती बिजली योजना चालू है। खर्च हर माह 595. करोड़। पुरानी सरकार की स्मार्टफोन योजना के लिए 3700 करोड़ चाहिए। कुल सालाना खर्च 14,560 करोड़। • छत्तीसगढ़: मौजूदा सरकारकी महतारी योजना में 60लाख महिलाओं को 1 हजार रु/माह दिये जा रहे हैं। सालाना बोझ 7,200 करोड़ रु.। पुरानी सरकार की 13,400 करोड़ की सीधे कैश ट्रांसफर की योजनाएं भी जारी हैं। रिजर्व बैंक से कर्ज लेकर यह राज्य अपने लोक लुभावन वादे पूरे करेंगे। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने राज्यों का जनवरी-मार्च तिमाही में उधारी का कैलेंडर जारी कर दिया है। इसके असार सभी राज्य इस अवधि में 4.13 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बाजार से लेंगे। जारी वर्ष 2023-24 में अप्रैल से अक्टूबर के बीच 7 महीने में कुल 2.58 लाख करोड़ रुपये बाजार से उठाए थे। यानि अगले तीन माह में वे 7 माह में जुटाई राशि से 60 फीसदी ज्यादा कर्ज ले रहे हैं। राशि उठाने वाले राज्यों में कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ टॉप टेन में शुमार हैं। इन राज्यों के विधानसभा चुनाव 2023 में हुये हैं। मध्य प्रदेश, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ तो इन तीन महीनों में जो कर्ज ले रहे हैं, वह 2022-23 के 12 महीनों से भी ज्यादा है। मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ की उधारी इस प्रकार है–मध्यप्रदेश अगले तीन माह में कुल 37.5 हजार करोड़ कर्ज लेगा। पिछले सात माह में यह कर्ज केवल 15 हजार करोड़ था। इसे मिलाकर 31 मार्च तक उस का सालाना कर्ज 50 हजार करोड़ से ज्यादा हो सकता है। यह अपने आप में रिकॉर्ड होगा। राज्य ने 2022-23 में केवल 26,849 करोड़ रुपए कर्ज लिया था। यानि अगले तीन माह में वह पिछले पूरे साल के कर्ज से भी 39.68 फीसदी ज्यादा कर्ज ले रही है। कर्नाटक तो पिछले पूरे साल से 127 फीसदी राशि केवल तीन माह में उठा लेगी। छत्तीसगढ़ ने तो पिछले साल कर्ज ही नहीं लिया था। अलबत्ता पुराना कर्ज ही 2,227 करोड़ रुपए चुकाया था। इस बार वह तीन माह में 11,000 करोड़ की बड़ी राशि बतौर कर्ज लेने जा रही है। असल में शुद्ध राजनीति में फ्री नहीं लोगों का सशक्त बनायें। हनुमान चालीसा में हम मांगते हैं –बल, बुद्धि, विद्या देऊ मोई यानि विद्या सीखकर बुद्धि का प्रयोग कर हम आर्थिक रूप से बल प्राप्त करते हैं। हिन्दुत्व की दुदुंभी बजाने वाले जरा ध्यान दें।

सियासी मियार की रीपोर्ट