कश्मीर से कम नहीं है केरल की खूबसूरती..
केरल हरियाली के मामलों में उत्तर पूर्वी राज्यों से भी एक कदम आगे निकल चुका है। यहां हरियाली के साथ−साथ सागर के नीले जल के सौंदर्य को भी निहारा जा सकता है जो उत्तर पूर्वी राज्यों में उपलब्ध नहीं है। केरल के सौंदर्य का वास्तविक आनंद लेने के लिए वहां की यात्रा रेल अथवा बस से ही करनी चाहिए। हरे नारियल के बगीचों के बीच से निकलती हुई बस जब किसी नदी या नाले को पार करती है तो देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे किसी चित्रकार ने हरे तथा नीले रंगों को मिलाकर कैनवास पर बिखेर दिया हो।
केरल का कालीकट क्षेत्र मालाबार तट के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत ही खूबसूरत बीच है। यहां सैलानियों की भीड़ देखकर इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। केरल में सागर जल से भरी हुई विशेष प्रकार की झीलें भी हैं जिन्हें ‘बैक वाटर’ कहते हैं इसके कारण इस छोटे से प्रदेश की सुंदरता में चार चांद लग गये हैं। बैक वाटर भूमि के निचले हिस्से में सागर का जल भर जाने के कारण बनता है।
केरल की स्थिति कुछ ऐसी है कि पूरे प्रदेश में दक्षिण से उत्तर तक एक सिरे से दूसरे सिरे तक रेल लाइन बिछी है तथा उसी के समानांतर सड़क बनी हुई है। इन्हीं के साथ सड़क के दोनों तरफ एकमंजिले या दोमंजिले मकान बने हैं। इन मकानों के आगे एक सुंदर सा बाग होता है जिसमें नारियल, कटहल, आम, काजू, रबर, सुपारी, काफी, केला आदि के वृक्ष लगे होते हैं। किसी−किसी बाग में विभिन्न प्रकार के मसाले जैसे काली मिर्च, छोटी इलायची, दालचीनी आदि के पेड़ भी देखने को मिलते हैं।
कालीकट से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कापड बीच है। यह वही प्रसिद्ध स्थान है जहां पर 21 मई 1498 को पुर्तगाली नाविक वास्को डि गामा ने भारत की भूमि पर अपना कदम रखा था। यहां पास ही में माहे नामक एक जगह है। माहे में शराब पर प्रतिबंध नहीं है। केवल 9 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाले छोटे से माहे के अंदर आप जब बस या कार में यात्रा कर रहे होंगे तो साथ ही दूसरी तरफ पटरी पर चलती हुई रेल को देखकर आपको काफी अच्छा लगेगा। आपको ऐसा प्रतीत होगा जैसे आप दोनों एक−दूसरे के साथ किसी प्रतियोगिता में भाग ले रहे हों।
तेल्लीचेरी नगर माहे से 10 किलोमीटर दूर है। यह वही प्रसिद्ध नगर है जिसने भारत ही नहीं बल्कि सारे विश्व को सैंकड़ों सर्कस के कलाकार उपलब्ध कराए हैं। यहां के गांव−गांव में सर्कस प्रशिक्षण के अनेक केंद्र हैं, जिनमें कलाकारों को सर्कस के करतब सिखाए जाते हैं। इसलिए इसे सर्कस नगर भी कहा जाता है। वैसे तो तेल्लीचेरी एक छोटा सा कस्बा है। जहां मछुआरों की बस्तियां हैं। शाम को जब मछली पकड़ने वाली नौकाएं वापस लौटती हैं तो तट पर मछली खरीदने वालों का मेला सा लग जाता है।
क.णूर क्षेत्र मालाबार का बड़ा व्यावसायिक नगर माना जाता है। कण्णूर उच्चकोटि के काजू, रबर, नारियल तथा कागज के लिए जाना जाता है। यहां पर एशिया की सबसे मशहूर प्लाईवुड फैक्टरी भी स्थित है। इसके अलावा यहां के निकटवर्ती स्थानों पर फूलों के उत्पादन तथा उनके निर्यात के प्रमुख केंद्र भी स्थित हैं। हस्तकला की वस्तुओं तथा बीड़ी आदि का उत्पादन भी क.णूर में काफी होता है।
सागर तट पर बसे हुए कण्णूर नगर में पयंबलम, मुझापूलंगड तथा मियामी जैसे सुंदर बीच हैं जो सैलानियों की भीड़भाड़ से अछूते हैं। ‘पायथल मलै’ नामक आकर्षक पर्वतीय स्थल भी यहां स्थित हैं, किंतु सबसे रोचक तो यहां का सर्प उद्यान है जहां पर अनेक प्रकार के सांपों का प्रदर्शन किया जाता है। इस स्थान पर सर्पदंश चिकित्सा केंद्र भी बना है।
कण्णूर नगर के निकट मलावलतम नदी के किनारे पर ‘परासनी कडायू’ का प्रसिद्ध मंदिर है, जो केवल हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य सभी जातियों के लिए भी समान रूप से खुला है। यह ‘मुथप्पन’ भगवान का मंदिर माना जाता है जो शिकारियों के देवता हैं। इसीलिए इस मंदिर में कांसे के बने हुए कुत्तों की मूर्तियां हैं। यहां ताड़ी तथा मांस का प्रसाद मिलता है तथा यहां के पुजारी दलित वर्ग के होते हैं।
मालाबार क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति तथा प्रदूषण रहित वातावरण को देख कर मन खुश हो जाता है। वास्को डि गामा की यात्रा के 500 वर्ष पूरे होने के कारण यह स्थान विश्व प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है।
सियासी मियार की रीपोर्ट