रामनवमी (17 अप्रैल) पर विशेष : राम पर राजनीति नही, राम को अपनाए!
-डॉ. श्रीगोपाल नारसन-
प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन अभिजीत मुहूर्त और कर्क लग्न में प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था। इस पर्व पर अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के लिए लाखों श्रद्धालु की भीड़ लग सकती है। चैत्र मास के इस शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 23 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जो 17 अप्रैल को दोपहर 3 बजकर 15 मिनट तक रहेगी है। इसलिए उदया तिथि के हिसाब से रामनवमी 17 अप्रैल 2024 को ही मनाई जा रही है। इस दिन भगवान राम की पूजा सुबह 11 बजकर 1 मिनट से दोपहर 1 बजकर 36 मिनट तक होगी। यानि कुल 2 घंटे 35 मिनट तक की पूजा का योग है। वही विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 34 मिनट से 03 बजकर 24 मिनट तक रहेगा व गोधूलि मुहूर्त – शाम 06 बजकर 47 मिनट से 07 बजकर 09 मिनट तक बना रहेगा। रामनवमी के दिन आश्लेषा नक्षत्र के साथ रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। इस दिन सुबह 5 बजकर 16 मिनट से 6 बजकर 8 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इसके साथ ही रवि योग पूरे दिन रहने वाला हैं।
राम एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से मन मे शांति, सुख, सन्तुष्टि का बोध होता है। ऐसा किसी अन्य शब्द में नही है। क्योंकि राम केवल दशरथनन्दन श्रीराम ही नही है अपितु राम उस परमात्मा का नाम भी है, जिनकी साधना स्वयं रामचंद्र जी भी करते है। यानि राम परमसत्ता है तो एक आदर्श का प्रतिरूप भी है। तभी तो राम हर किसी के रोम रोम में बसा है। वह भी आज से ही नही, बल्कि युगों युगों से। सबुरी राममय हुई तो राम, सबुरी के हो गए और सबुरी के झूठे बेर तक खा लिए। आज सबुरी जैसी आस्था तो कम ही देखने को मिलती है। राम का मंदिर बन गया है, यह उत्साह हर उस व्यक्ति में है जिसके घट में राम है। राम मंदिर मुद्दा कानून की चौखट से होते हुए कानून की ही बदौलत निर्माण के लक्ष्य तक आ गया है। राम मंदिर जितना बड़ा और भव्य बना है, उतना ही राम के भक्तो में हर्ष की अनुभूति हो रही है। बशर्ते इसे राजनीतिक रंग देने से बचाया जा सके। आवश्यक यह है कि हम राम को आत्मसात करे। राम मर्यादा पुरुषोत्तम है तो हम भी राम का आदर्श स्थापित करे। राम के उच्च चरित्र को दर्शाती रामायण हिंदू धर्म की एक प्रमुख आध्यात्मिक धरोहर है परंतु रामायण को बार बार पढ़ने के बावजूद भी उसमें लिखे आध्यात्मिक मूल्यों की धारणा नहीं हो पा रही है। हम राम के नाम रूप पर तो बहस करते रहते हैं लेकिन राम को अपनाने की कभी कौशिश नही करते। दशरथ नन्दन की कथा में, रावण का वध करने के बाद लंका से अयोध्या लौटते समय राम, लक्ष्मण, सीता एवं हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या के पास नंदीग्राम नामक स्थान पर उतरे थे, जहां पर राम की खड़ाऊं रखकर राजा भरत अपना राजपाट चलाते थे। नंदीग्राम में एक दिन रुकने के बाद वे दूसरे दिन अयोध्या पहुंचे थे। जबकि रावण वध यदि दशमी के दिन हुआ था तो उसके दूसरे दिन सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद अर्थात उन्हें अग्निदेव से वापस मांगने के बाद श्रीराम अयोध्या लौटे थे। यानि वे एकादशी के दिन अयोध्या की ओर चले थे और रास्ते में वह निषादराज गुह केवट के यहां रुके भी थे। श्रीराम का नंदीग्राम में भव्य स्वागत किया गया था। उस दौरान अयोध्या के सभी आठों मंत्री और राजा दशरथ की तीनों रानियां हाथियों पर सवार होकर नंदीग्राम पहुंचे थे। उनके साथ अयोध्या के आम नागरिक भी नंदीग्रम पहुंचे थे। वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड सर्ग 127 के अनुसार अयोध्या के नागरिकों, मंत्रियों और रानियों ने देखा कि श्रीराम पुष्पक विमान से धरती पर उतरे है। उन सबने विमान पर विराजमान श्रीराम के दर्शन किए और वे उन्हें लेकर अयोध्या गए।
श्रीराम का जन्म इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज के शोधानुसार श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। जबकि श्रीराम ने रावण का वध 4 दिसंबर 5076 ईसा पूर्व किया था। वे 29वें दिन 2 जनवरी 5075 ईसा पूर्व वापस अयोध्या लौटे थे। अयोध्या लौटने के खुशी में अयोध्यावासियों ने दीपावली मनाई थी। रुकने के दिनों को छोड़कर इस सफर में उन्हें करीब 24 दिन लगे थे। इस दौरान वे 8 से 9 जगहों पर रुके थे। यह निष्कर्ष वाल्मीकि रामायण में लिखे उस दौर के ग्रहों, नक्षत्रों, तारामंडलों की स्थिति के आधार पर नासा के वेद स्पेशल प्लेटिनम गोल्ड सॉफ्टवेयर से निकाला गया है। श्रीराम की खड़ाऊ ले जाते समय भरत ने कहा था कि
चर्तुर्दशे ही संपूर्ण वर्षेदद्व निरघुतम।
नद्रक्ष्यामि यदि त्वां तु प्रवेक्ष्यामि हुताशन। ।
अर्थात: हे रघुकुल श्रेष्ठ। जिस दिन चौदह वर्ष पूरे होंगे उस दिन यदि आपको अयोध्या में नहीं देखूंगा तो अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा। भरत के मुख से ऐसे प्रतिज्ञापूर्ण शब्द सुनकर रामजी ने भरत को आश्वस्त करते हुए कहा था- तथेति प्रतिज्ञाय- अर्थात ऐसा ही होगा। इसी प्राकार महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ से राम के राज्याभिषेक के संदर्भ में कहा था-चैत्र:श्रीमानय मास:पुण्य पुष्पितकानन:।
यौव राज्याय रामस्य सर्व मेवोयकल्प्यताम्। ।
अर्थात: जिसमें वन पुष्पित हो गए। ऐसी शोभा कांति से युक्त यह पवित्र चैत्र मास है। श्रीराम का राज्याभिषेक पुष्प नक्षत्र चैत्र शुक्ल पक्ष में करने का विचार निश्चित किया गया है। षष्ठी तिथि को पुष्य नक्षत्र था। श्रीराम लंका विजय के पश्चात अपने 14 वर्ष पूर्ण करके पंचमी तिथि को भारद्वाज ऋषि के आश्रम में आए थे। वहां एक दिन ठहरे और अगले दिन उन्होंने अयोध्या के लिए प्रस्थान किया, उससे पहले उन्होंने अपने भाई भरत से पंचमी के दिन हनुमानजी के द्वारा कहलवाया-
अविघ्न पुष्यो गेन श्वों राम दृष्टिमर्हसि।
अर्थात: हे भरत! कल पुष्य नक्षत्र में आप राम को यहां देखेंगे। इस प्रकार राम चैत्र के माह में षष्ठी के दिन ही ठीक समय पर अयोध्या में पुन: लौटकर आए। वाल्मीकि रामायण के अनुसार सीताजी का हरण बसंत ऋतु में हुआ था। अपहरण के पश्चात रावण ने उन्हें बारह मास का समय देते हुए कहा कि हे सीते! यदि इस अवधि के भीतर तुमने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मेरे याचक तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे।
यह बाद हनुमान ने जब श्रीराम से कही तो उन्होंने भली प्रकार चिंतन करके सुग्रीव को आदेश दिया कि
उत्तरा फाल्गुनी हयघ श्वस्तु हस्तेन योक्ष्यते।
अभिप्रयास सुग्रिव सर्वानीक समावृता:। ।
अर्थात आज उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र है। कल हस्त नक्षत्र से इसका योग होगा। हे सुग्रीव इस समय पर सेना लेकर लंका पर चढ़ाई कर दो। इस प्रकार फाल्गुन मास में श्री लंका पर चढ़ाई का आदेश श्रीराम ने दिया था। यह जानकर रावण ने भी अपने मंत्री से सलाह लेकर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को युद्धारंभ करके अमावस्या के दिन सेना से युक्त होकर विजय के लिए निकला और चैत्र मास की अमावस्या को रावण मारा गया था। तब रावण की अंत्येष्टि क्रिया तथा विभीषण के राजतिलक के पश्चात रामचंद्र यथाशीघ्र अयोध्या के लिए निकल पड़े। इससे सिद्ध होता है कि श्रीराम चैत्र के माह में ही अयोध्या लौटे थे। महर्षि बाल्मीकी ने त्रेता युग के बाद समाज में आध्यात्मिक क्रांति लाने हेतु राम व सीता का नाम व चरित्र समाज के सामने प्रस्तुत किया। तभी तो वे संसार के प्रेरक बन गए। हम रामायण के सभी पात्रों को उसी तरह से स्वीकार करते हैं जैसे रामायण को पढ़ने पर जान पडता है। परन्तु इस तरह से तो रामायण में दर्शाए गए पूर्णतः अहिंसक पात्र भी हिंसक नज़र आते हैं जैसे राम के द्वारा रावण का वध करना, भगवान की परिभाषा को खंडित करता है, राम यदि भगवान हैं तो वह हिंसक हो ही नहीं सकते और राम यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर है तो उनकी सीता को एक दैत्य रावण कैसे उठाकर ले जा सकता है? इसलिए कहीं न कहीं रामायण को किसी और परिपेक्ष में देखने की आवश्यकता है। रामायण का वास्तविक़ अर्थ जानने के लिए रामायण के विभिन्न पात्रों को निम्नलिखित रूप में समझ कर पढ़ें तो आपको उसमें लिखा एक एक आध्यात्मिक बिंदु समझ आ आएगा। राम वास्तव में परमात्मा ही है जो संगम युग में धरा पर अवतरित हो कर अपनी बिछड़ी हुई सीता यानि सतयुगी आत्मा को रावण यानि विकारों के चंगुल से छुड़ाने आते है। सीता, हर वह आत्मा जो वास्तव में पवित्र है परंतु आज रावण के चंगुल में फँसी होने के कारण संताप झेल रही है। रावण, पतित व विकार युक्त सोच व धारणा ही रावण है जिसमें फँसी हर आत्मा आज विकर्मों के बोझ तले दबती जा रही है। पाँच मुख्य विकार पुरुष के व पाँच विकार स्त्री के ही रावण के दस शीश हैं। हनुमान, वास्तव में धरा पर अवतरित हुए परमात्मा को सर्वप्रथम पहचानने वाली आत्मा ही हनुमान हैं परंतु हर वह आत्मा जो ईश्वर को पहचान दूसरी आत्माओं (सीता) को धरा पर आए ईश्वर (राम) का संदेश देने के निमित बनती है, वह भी हनुमान की तरह ही है।
वानर सेना, साधारण दिखने वाली मनुष्य आत्माएँ ईश्वर (राम) को पहचान कर, संस्कार परिवर्तन द्वारा पूरानी दुनिया या रावण राज्य (पतित सोच पर आधारित दुनिया) को समाप्त करने में राम का साथ देने वाली संसार की 33 करोड़ आत्माएँ ही वानर सेना है।
लंका, पुरानी पतित दुनिया जहां हर कार्य देहभान में किया जाता है, वही रावण नगरी लंका है। आज हमें इसी सत्यता को आत्मसात कर विकर्मों को त्याग कर राम की तरह पवित्र बनना है।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)
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