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ब्रह्माण्ड के रहस्यमयी क्रियाकलाप सफलता के लिए सभी घटकों पर विचार करना आवश्यक,..

ब्रह्माण्ड के रहस्यमयी क्रियाकलाप सफलता के लिए सभी घटकों पर विचार करना आवश्यक,..

-ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय-

इंसान के पिछले किए गए कर्म ही उसके आज का सृजन करते हैं तथा आज किए जा रहे कार्य ही उसके भविष्य का निर्माण करेंगे। धर्मशास्त्र में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक इंसान की आत्मा या चेतना विभिन्न जीव योनियों में घूमते हुए एक लंबा सफर तय करती है। इस लंबी यात्रा के दौरान मन, वचन तथा कर्म से किए गए सभी कार्यों के परिणाम, प्रारब्ध ब कि भाग्य के रूप में प्राप्त होते हैं। इस तरह मनुष्य अपने पिछले कर्मों का कर्मफल यानी कि परिणाम इस जन्म में भोगता है। पिछले कर्मों के परिणाम अथवा हिसाब-किताब जो मनुष्य को इस जन्म में मिलता है, उसे ही धर्म, अध्यात्म के संदर्भ में प्रारब्ध कहते हैं। यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक अत्यन्त ही विराट अस्तित्व लिए हुए है, मनुष्य इस विराट विश्‍वत्‍थामा का एक घटक है, इसलिए जब भी कभी मनुष्य के भाग्य, दुर्भाग्य आदि का विचार किया जाता है, तो ब्रह्माण्ड के अन्य घटक का भी विचार करना अति आवश्यक है।

ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के अन्य घटक और उनके क्रियाकलाप भी मुनष्य को प्रभावित करते रहते हैं। ब्रह्माण्ड के क्रियाकलाप अत्यन्त ही रहस्यमय हैं, एक सांप किसी व्यक्ति को डसने के लिए तेजी से आगे बढ़ता है, तभी देवयोग से अचानक एक चील आकाश से उड़ती हुई आती है और उस सांप को उठा ले जाती है जिसके कारण न केवल वह व्यक्ति सांप के काटने से बच जाता है, बल्कि उस पर प्रहार करने वाला शत्रु स्वतः काल का ग्रास बन जाता है। ये सब पहले से ही विधि के विधान के अन्तर्गत अंकित प्रारब्ध है। मनुष्य के साथ जो भी रहस्यमयी घटनाऐं अचानक होती हैं, वे किसी न किसी गुप्त योजना की ओर इशारा करती हैं, बस हमें उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए।

यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे के नियम के अनुसार विश्वात्मा अथवा समष्टि के अन्य घटक कभी हमें प्रवाहित करते हैं और कभी हमसे प्रभावित होते हैं। इसी सिद्धांत पर ज्योतिषीय उपाय आदि कार्य करते हैं। ग्रह मानव के क्रियाकलापों को प्रभावित करते हैं, और उपाय के रूप में मानव द्वारा किया गया यज्ञ, अनुष्ठान, हवन, ग्रहों के फल को प्रभावित करते हैं। प्राचीन काल में हमारे पूर्वज महान ऋषियों ने अपनी तपस्या से ब्रह्माण्ड का ज्ञान, ग्रहों, नक्षत्रों का ज्ञान प्राप्त किया। सूर्य आदि ग्रह एवं निहारिकाओं से आने वाली रश्मियों के प्रभाव का अनुभव कर मानव जीवन को सुख, समृद्धि और स्वस्थ बनाने के लिए ग्रहों की रश्मियों को अपने अनुकूल या स्वयं को ग्रहों की रश्मियों के अनुकूल परिवर्तित करने में जिस शास्त्र का महत्वपूर्ण योगदान है, वह ज्योतिष शास्त्र है।

अखिल ब्रह्माण्ड से पृथ्वी पर आने वाली ग्रह रश्मियों के अनुकूल कार्य, व्यवहार कर मनुष्य सफलता प्राप्त करता है, इसके विपरीत सूर्य आदि ग्रहों की रश्मियों एवं इनके तत्वों के विपरीत कार्य, आचार, विचार, व्यवहार करने से मनुष्य रोग आदि व्याधियों से घिर जाता है। ग्रह रश्मि किस समय आपके अनुकूल हैं किस समय प्रतिकूल इसका बोध ज्योतिष शास्त्र कराता है। यह पूर्णतः वैज्ञानिक तथ्य है कि पिछले कर्मों का इंसान के जीवन पर भाग्य के रूप में अवश्य ही प्रभाव पड़ता है। दूसरा किन्तु अधिक महत्वपूर्ण सत्य यह है कि इंसान ईश्वर या ब्रह्म का ही अंश या भाग है। जिस ईश्वर ने इन ग्रह-नक्षत्रों को बनाया है, उसी का प्रतिनिधि होने के कारण इंसान के पास वह क्षमता या शक्ति भी है कि वह अपना भाग्य अपने अनुसार बना व बदल सके। मेहनत और पुरूषार्थ के दम पर इंसान चाहे जो कर सकता है।

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