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नालंदा में जदयू सांसद और भाकपा माले विधायक के बीच होगी चुनावी जंग.,.

नालंदा में जदयू सांसद और भाकपा माले विधायक के बीच होगी चुनावी जंग.,.

पटना, 24 मई । बिहार में इस बार के लोकसभा चुनाव में सातवें और अंतिम चरण में जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के वर्तमान सांसद कौशलेन्द्र कुमार और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) के पालीगंज के विधायक संदीप सौरभ के बीच चुनावी जंग देखने को मिलेगी।
नालंदा जितना ऐतिहासिक रूप से वैभवशाली रहा है, उतना ही राजनीतिक रूप से समृद्ध भी है। तक्षशिला के बाद नालं

दा विश्वविद्यालय की चर्चा होती है। बिहार के नालंदा में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आते थे।बताया जाता है कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फ्रांस और तुर्की से छात्र इस विश्वविद्यालय आते थे।ऐसा कहा जाता है कि यहां पर 10,000 छात्रों के पठन-पाठन की व्यवस्था थी। आज यह विश्वविद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है।प्राचीन काल में वृहत अखंड भारत के 16 जनपदों में सबसे शक्तिशाली मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह नगरी (राजगीर) थी। कहा जाता है कि यह साम्राज्य पूर्वी भारत से लेकर पश्चिम तक और उतरी भारत तथा काबुल, बलूचिस्तान, गांधार तक फैला था। यह क्षेत्र चन्द्रगुप्त मौर्य की मातृभूमि तो राजनीति एवं अर्थशास्त्र के ज्ञाता चाणक्य की कर्मभूमि रही है। पांच चट्टानी पहाड़ियों से घिरा राजगीर पवित्र यज्ञ भूमि तथा जैन तीर्थकर महावीर और भगवान बुद्ध की साधना भूमि भी रहा है। राजगीर में 22 एकड़ जमीन में बना पांडु पोखर महाभारत कालीन बताया जाता है। पावापुरी जल मंदिर यहां है, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा संसदीय सीट पर पूरे देश की नजरें टिकी हुयी है। इस बार सियासी लडाई काफी रोचक होगी।नालंदा संसदीय सीट से इस बार के चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दल जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के वर्तमान सांसद कौशलेन्द्र कुमार जबकि इंडिया गठबंधन के घटक दल भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) के पालीगंज के विधायक संदीप सौरभ चुनावी अखाड़े में उतरे हैं। जदयू प्रत्याशी जहां चुनावी चौका जमाने के प्रयास में है, वहीं भाकपा माले पहली बार जीत की तलाश में हैं। इंडिया गठबंधन ने नीतीश के गढ़ नालंदा को ढ़ाहने की जिम्मेवारी भाकपा माले के संदीप सौरभ को सौंपी है। कभी कांग्रेस के किले को तीन बार वामदल के ही घटक भाकपा ने ध्वस्त कर बाजी अपने नाम की तो वहीं कई बार रनर भी रही है।
पटना से अलग होकर नालंदा वर्ष 1972 में एक अलग जिला बना। इसके पहले के लोकसभा चुनावों में नालंदा पटना जिले का ही हिस्सा बना रहा। वर्ष 1957 के आम चुनाव में पटना से अलग होकर नालंदा लोकसभा को अपना नाम मिला। वर्ष 1957 से अस्तित्व में आने के बाद लंबे समय तक नालंदा सीट कांग्रेसियों का गढ़ रहा। वर्ष 1957 के आम चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर कैलाशपति सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद 1962,1967 और वर्ष 1971 में
लगातार तीन बार कांग्रेस की टिकट पर सिद्देश्वर प्रसाद निर्वाचित हुये। राजनीति में आने से पहले वह बिहार के नालंदा कॉलेज में प्रोफेसर थे। वह त्रिपुरा के राज्यपाल भी रहे। वह बिहार सरकार में मंत्री के साथ केन्द्र सरकार में भी मंत्री रहे।वह एक लेखक भी हैं, उनकी हिंदी भाषा में 22 पुस्तकें प्रकाशित हुयी हैं। महाकवि जयशंकर प्रसाद की महान काव्य-कृति ‘कामायनी’ पर लिखी गई, उनकी समालोचना को हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। नागपुर में वर्ष 1975 में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजक भी थे।
देश का राजनीतिक समीकरण बदला तो नालंदा पर भी इसका असर पड़ा और कांग्रेस की पकड़ से नालंदा का किला निकल गया। 1977 में बीरेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रीय लोकदल से जीत हासिल कर कांग्रेस की जड़ें हिला दीं। इसके बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के विजय कुमार यादव तीन बार यहां चुनाव जीतने के बाद इस क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य ऐसा बना कि कांग्रेस उबर नहीं पायी। अंतिम बार 1989 में कांग्रेस के सांसद रामस्वरूप प्रसाद रहे। वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद बीरेंद्र प्रसाद ने भारतीय लोक दल (बीएलडी) के टिकट पर जीत हासिल की। इसके बाद वाम दल सशक्त हुआ। वर्ष 1980,1984, 1991 में भाकपा प्रत्याशी विजय कुमार यादव ने जीत हासिल की। वर्ष 1989 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और राम स्वरूप प्रसाद ने सफलता हासिल की।
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का उभार हुआ तो इसके बाद नालंदा ने नीतीश की राह पकड़ी। वर्ष 1996 से लेकर अब तक नालंदा पर समता पार्टी और जदयू के प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं। नीतीश कुमार के आमंत्रण पर वर्ष 1996 में जॉर्ज फर्नांडीस समता पार्टी के प्रत्याशी बने। वह 1998 में समता पार्टी और 1999 में जदयू प्रत्याशी के रूप में जीते। 2004 में नीतीश कुमार खुद मैदान में उतरे। उन्होंने सिर्फ एक बार इस सीट का संसद में प्रतिनिधत्व किया। पिछले 28 वर्षों में नीतीश कुमार के इस मजबूत दुर्ग को भेदने की कई दलों ने कोशिश की, लेकिन कोई कामयाब नहीं हुआ।
वर्ष 1996 और 1998 में जार्ज फर्नांडीस समता पार्टी के टिकट पर और वर्ष 1999 में जदयू के टिकट पर चुनाव जीते। 2004 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू के टिकट पर इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे। हालांकि 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने सांसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वर्ष 2006 के उपचुनाव में जदयू के टिकट पर रामस्वरूप प्रसाद सासंद चुने गये।वर्ष 2009,2014 और 2019 में लगातार तीन बार जदयू से कौशलेंद्र कुमार सासंद चुने गए। वर्ष 1999 से लेकर 2019 तक के लोकसभा चुनाव में जदयू ही यहां से जीत हासिल करती रही है। इस कारण नालंदा संसदीय क्षेत्र को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सुरक्षित दुर्ग माना जाता है।जॉर्ज फर्नाीडीस केन्द्र में रक्षामंत्री जबकि नीतीश कुमार को केन्द्र सरकार में कृषि राज्य मंत्री, रेल मंत्री, भूतल एवं परिवहन मंत्री बनाया गया था। रक्षा मंत्री रहते जॉर्ज फर्नांडीस ने नालंदा को आयुध कारखाना एवं सैनिक स्कूल की सौगात दी थी। रेल मंत्री रहते नीतीश कुमार ने हरनौत में सवारी रेल डिब्बा मरम्मत कारखाना की स्थापना की। जमींदारी बांध, चंडी में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल्स की स्थापना लोगों के लिए वरदान साबित हुई। वहीं, मुख्यमंत्री बनने के बाद नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी, खेल विवि, पावापुरी मेडिकल कॉलेज, रहुई डेंटल कॉलेज, नूरसराय उद्यान महाविद्यालय, बिहार पुलिस अकादमी, क्रिकेट स्टेडियम, कन्वेंशन हॉल, पावापुरी आयुर्वेद शोध संस्थान, कल्याणबिगहा में शूटिंग रेंज की स्थापना की। राजगीर में सीआरपीएफ कैम्प बना। कई पर्यटक स्थलों का विकास हुआ।
पिछले कई लोकसभा चुनावों से नालंदा में नीतीश कुमार का ही सिक्का चल रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नालंदा लोकसभा सीट पर पकड़ इतनी मजबूत है कि लोकसभा चुनाव 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर थी, उस समय भी यहां जदयू उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी। जदयू वर्ष 2014 में भाजपा से अलग थी। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू केवल दो सीट पूर्णिया और नालंदा में जीत हासिल कर पायी थी।
इस बार के चुनाव में जदयू ने अपने वर्तमान सांसद कौशलेन्द्र कुमार पर फिर भरोसा जताया है, वहीं इंडिया गठबंधन के घटक भाकपा माले के पालीगंज के विधयक संदीप सौरभ उम्मीदवार हैं।संदीप सौरभ जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिर्टी (जेएनयू( छात्र संघ के महासचिव रह चुके हैं।इस बार के चुनावी रण में वाम दल, इंडिया गठबंधन के साथ उतरी है, ऐसे में राजद का एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण चुनावी जंग को रोचक और संघर्षपूर्ण बना सकता है।संदीप सौरव के लिए यह लोकसभा चुनाव बड़ी अग्निपरीक्षा है।
जदयू प्रत्याशी कौशलेंद्र कुमार का कहना है कि इस बार भी नालंदा का विकास ही उनका चुनावी मुद्दा होगा। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने सत्ता संभालने के बाद न्याय के साथ हर क्षेत्र में विकास का काम किया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी दुनिया में भारत का मान सम्मान को बढ़ाने का काम किया है। वहीं दूसरी ओर भाकपा माले प्रत्याशी संदीप सौरभ का कहना है कि इस बार नालंदा की जनता बदलाव देख रही है। देश में बेरोजगारी और महंगाई से जनता परेशान है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनी तो देश में महंगाई और बेरोजगारी को दूर करने का करेंगे। इस बार भी नालंदा लोकसभा क्षेत्र में मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद जताई जा रही है। जदयू को एक ओर जहां जातीय समीकरण में सेंधमारी का डर सता रहा है वही भाकपा माले प्रत्याशी को बाहरी उम्मीदवार की बाते सुननी पड़ रही है। बहरहाल दोनों प्रत्याशी ने अपना अपना जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है।
नालंदा लोकसभा क्षेत्र में सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं। यहां छह पर राजग और एक पर राजद का कब्जा है। नालंदा लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत बिहारशरीफ विधानसभा से भाजपा, राजगीर, हिलसा, नालंदा, अस्थावां एवं हरनौत से जदयू और इस्लामपुर विधानसभा सीट पर राजद का कब्जा है। नालंदा लोकसभा में कुल 22 लाख 77 हजार 790 मतदाता हैं, जिसमे 11 लाख 90 हजार 941 पुरुष, 10 लाख 86 हजार 779 महिला, 70 थर्ड जेंडर मतदाता है। नालंदा कुर्मी बाहुल्य जिला माना जाता है, हर चुनाव में यहां सर्वण वोटर्स भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं।
नालंदा संसदीय सीट से जदयू,भाकपा माले बहुजन समाज पार्टी, 12 निर्दलीय समेत 29 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। (इंडिया गठबंधन) के घटक भाकपा माले अपनी सियासी जमीं पर फिर से पार्टी का ‘लाल झंडा’ लहराने के लिये प्रयासरत है, वहीं जदयू प्रत्याशी यहां चौथी बार जीतने को बेताब हैं। देखना दिलचस्प होगा कि नालंदा के किले में कौन प्रत्याशी सही निशाने पर ‘तीर’ चलाकार अपनी पार्टी का झंडा लहराने में कामयाब हो पाता है।

सियासी मियार की रेपोर्ट