कंगना को थप्पड़, खूनी दौर का संकेत..
(थप्पड़ उतना मारक नहीं है जितना कि इस थप्पड़ को लेकर खुश होने वाले बुद्धिजीवियों की हंसी। इस तरह की विचारधारा को सिर उठाने के पहले कुचल देने की जरूरत है। देश का हर नेता किसी न किसी के बारे में आए दिन जहर उगलता रहता है। अगर हर नेता की बात पर सुरक्षा बलों के जवान इसी तरह रिएक्ट करना शुरू कर दें तो देश की व्यवस्था का क्या होगा? अपनी ड्यूटी निभाते हुए यह करना क्या उचित है? वो देश की ऐसी सुरक्षा एजेंसी का हिस्सा हैं। क्या इसको बढ़ावा देना उचित है? क्या.. कल को और कोई नहीं ऐसे किसी नेता या पब्लिक फिगर पर हाथ उठेगा? क्या गारंटी है कि कल को यही घूम कर सभी के पास आएगा। महिला कॉन्स्टेबल कुलविंदर कौर का थप्पड़ उतना मारक नहीं है जितना कि इस थप्पड़ को लेकर खुश होने वाले बुद्धिजीवियों की हंसी।)
-प्रियंका सौरभ-
वैचारिक मतभेदों को व्यक्त करने का घृणित तरीका, खासकर जब आप वर्दी पहने हों।’ शर्मिंदगी और हैरानी इस बात की है कि ये काम सीआईएसएफ की सुरक्षाकर्मी ने किया है जो लोगों की सुरक्षा के लिए होते हैं। क्या ये कंगना के खिलाफ चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर प्लान अटैक है। सांसद पर चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर हुआ हमला बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, खासकर एक सुरक्षाकर्मी द्वारा, जिन पर सुरक्षा का जिम्मा होता है। अपनी शिकायत को रखने का और भी सभ्य तरीका होता है।’’ भारतीय राजनीति और सामाजिक जीवन में हम अक्सर इस तरह की घटनाओं के बारे में सुनते हैं। ‘थप्पड़’ कहने से हिंसा की गंभीरता कम होती है और हिंसा के शिकार की कमज़ोरी ज़्यादा उजागर होती है। थप्पड़ से किसी की जान नहीं जाती, उसकी निष्कवचता अधिक प्रकट होती है। उसमें किसी योजना की जगह एक प्रकार की स्वतःस्फूर्तता का तत्व होता है। कहा जा सकता है कि थप्पड़ मारने वाले की मंशा सिर्फ नाराजगी का इजहार होता है। राजनीति और सिस्टम (लोकतंत्र या तानाशाही) में विरोध जायज है और यही विरोध तरह तरह के स्वरूपों में हमारे सामने आता रहता है। थप्पड़ या स्याही हमला भारतीय राजनीति में कोई नया किस्सा नहीं है। पहले भी हमारे नेता इन हमलों का दंश झेलते रहे हैं। इतना ही नहीं कई नेताओं पर जूता उछाले जाने की घटनाएं भी हुई हैं। लोकतंत्र लोगों को विरोध प्रदर्शन की आजादी देता है और लोग विरोध के नए-नए तरीके खोज लाते हैं। कभी विरोध में अंडे, टमाटर फेंके जाते हैं, तो कभी जूते-चप्पल।
“कंगना ने किसान आंदोलन के खिलाफ में कुछ बोला तो सीआईएसफ की कांस्टेबल ने आज कंगना पर हमला कर दिया। ये कहाँ तक उचित है? जो लोग इसे सही ठहरा रहे हैं वे ये समझ लें कि रक्षक को भक्षक नहीं बनना होता है। आपकी व्यक्तिगत सोच और विचारधारा आपकी ड्यूटी के बीच में नहीं आनी चाहिए। देशभर में दर्जनों नेता हैं जो सेना के खिलाफ बोलते आये हैं। कभी सिक्युरिटी के दौरान किसी सैनिक की भावना उसकी ड्यूटी के बीच आ गई तो ऐसे नेताओं का वहीं हिसाब हो जाएगा। धारा ३७०, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर कई नेताओ और सेलिब्रिटीज़ के घटिया और भद्दे बयान सबके सामने हैं।ऐसे लोगों के खिलाफ अगर हर सुरक्षाकर्मी सिक्युरिटी के दौरान अपनी भवनाएँ दिखाने लगा तो बहुत बड़ी दिक्कत हो जायेगी। मुझे तो ये समझ नहीं आ रहा है कि लोग कैसे इस महिला के एक्ट को जस्टिफाय कर सकते हैं। क्या लोग ये भूल गए कि ऐसे ही दो सुरक्षाकर्मचारियों की भावनाएँ उनकी ड्यूटी के बीच आ गई थी जिसकी वजह से इंदिरा गांधी की हत्या हुई। हिंसा की भर्त्सना बिना शर्त जब तक न की जाएगी, जब तक उसके लिए कोई औचित्य तलाशा जाता रहेगा और जब तक वह विचारधारा के आधार पर सही या गलत मानी जाएगी, उसकी पुनरावृत्ति होती रहेगी। संचार माध्यमों द्वारा हिंसा को नयनाभिराम बनाकर अगर उपभोग्य बना दिया गया तो वह फिर बार-बार ‘अदा’ की जाएगी और अपनी भयावहता भी खो बैठेगी। वह लोकतंत्र का सबसे सबसे खतरनाक क्षण होगा।देश का हर नेता किसी न किसी के बारे में आए दिन जहर उगलता रहता है। अगर हर नेता की बात पर सुरक्षा बलों के जवान इसी तरह रिएक्ट करना शुरू कर दें तो देश की व्यवस्था का क्या होगा?
अपनी ड्यूटी निभाते हुए यह करना क्या उचित है? क्या इसको बढ़ावा देना उचित है? क्या कल को और कोई नहीं ऐसे किसी नेता या पब्लिक फिगर पर हाथ उठेगा? क्या गारंटी है कि कल को यही घूम कर सभी के पास आएगा। थप्पड़ मारने को उचित नहीं कहा जा सकता, साथ ही ऐसे ग़ुस्से को भी सुनना तो पड़ेगा, सुनना चाहिए। राजनेताओें को समझना चाहिए कि पीड़ित जनता की भावनाओं के प्रति यदि वे न केवल संवेदनहीन बल्कि क्रूर व अमानवीय रवैया अपनायेंगे तो जनता अपनी हताशा किसी रूप में तो व्यक्त करेगी। किसी को थप्पड़ मारना अपराध है। इस तरह के मामलों में पुलिस इंडियन पीनल कोड (IPC) के सेक्शन 323 के तहत केस दर्ज करती है। उन्होंने आगे कहा कि आईपीसी के सेक्शन 323 के तहत अगर कोई अपनी इच्छा से किसी को चोट या नुकसान पहुंचाता है, तो ऐसा करने पर उसे 1 साल की जेल हो सकती है। साथ ही 1 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। लेकिन अगर ये बात सामने आती है कि किसी ने बदसलूकी की और फिर ये घटना हुई तो अदालत सजा को बदल भी सकती है या मामले को ही खारिज कर सकती है।
देश का हर नेता किसी न किसी के बारे में आए दिन जहर उगलता रहता है। अगर हर नेता की बात पर सुरक्षा बलों के जवान इसी तरह रिएक्ट करना शुरू कर दें तो देश की व्यवस्था का क्या होगा? अपनी ड्यूटी निभाते हुए यह करना क्या उचित है? वो देश की ऐसी सुरक्षा एजेंसी का हिस्सा हैं जहां पर इस तरह के गुस्से को जगह नहीं दी जा सकती है। सीआईएसएफ देश के सभी एयरपोर्ट और मेट्रो जैसी संवेदनशील जगहों की सुरक्षा देखती है।गुस्से को वैधता प्रदान करने वाले आग से खेल रहे हैं। इस प्रकार का अतिवाद ही आतंकवाद के लिए जगह बनाता है। शायद यही कारण है कि एक वर्ग यह बात कर रहा है कि इस तरह की विचारधारा को सिर उठाने के पहले कुचल देने की जरूरत है। इस बात में जरा भी संदेह नहीं हो सकता कि पंजाब के हालत बेहद नाजुक हैं। एक बार फिर से इस राज्य में जिस तरह अलगाववाद फन फैला रहा है वो कभी भी पंजाब को उसके खूनी दौर में वापस पहुंचा सकता है।
सियासी मियार की रीपोर्ट