महाराज और शिवराज पर भरोसे का मतलब..
-राकेश अचल-
केंद्रीय हिन्दू मंत्रिमंडल में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व केंद्रीय मंत्रीय ज्योतिरादित्य सिंधिया को शामिल करने के पीछे क्या वजह ये जानने में लोगों की बड़ी दिलचस्पी है। भाजपा के इन दो हंसों की जोड़ी 2018 के विधान सभा चुनाव में आमने-सामने थी । तब महाराज यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में हुआ करते थे और चौहान मप्र के मुख्यमंत्री थे। इस चुनाव में भाजपा ने माफ़ करो महाराज, हमारे नेता शिवराज का नारा दिया था और कांग्रेस की और से माफ़ करो शिवराज, हमारे नेता महाराज का नारा उछला और कामयाब भी हुआ था। शिवराज सत्ताच्युत हो गए थे, लेकिन महाराज अपनी पार्टी के सत्ता में आने के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे।
मप्र की इस जोड़ी ने ही 2020 में फिर कमाल किया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत कर कांग्रेस की सरकार गिरा दी। मुख्यमंत्री कमलनाथ को पदच्युत कराकर अपने अपमान का बदला लिया और एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवा दी थी। 2020 से ही ये जोड़ी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की नजरों में चढ़ी हुई थी। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी इस जोड़ी ने हाड़तोड़ मेहनत कर मप्र में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाकर भाजपा की सरकार बनवाई। ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो 2020 के करतब के लिए पुरस्कार के रूप में राज्य सभा की सदस्य्ता और केंद्रीय मंत्री मंडल में स्थान मिल गया था, किन्तु शिवराज सिंह को कोई इनाम-इकराम नहीं मिला था। उलटे उनके स्थान पर मोहन यादव को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर चौहान को अपमानित जरूर किया गया था भाजपा की और से।
शिवराज सिंह मंजे हुए खिलाडी निकले। उन्होंने अपमान का कड़वा घूँट बिना ना-नुकुर के पी लिया। नतीजा ये हुआ कि 2024 के आम चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ चौहान को भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गयी। ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो मंत्री बनना ही था क्योंकि वे प्रधानमंत्री के गांव-गौड़े के नाते दामाद लगते हैं, लेकिन शिवराज सिंह चौहान को उनकी योग्यता और मौन साधना की वजह से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। एक समय उनका नाम मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में भी सुर्ख़ियों में आया, लेकिन वे शायद अभी इस लायक नहीं बन पाए हैं।
प्रधानमंत्री ने केंद्र में बैशाखी सरकार का गठन करने के फौरन बाद अपने मंत्रिमंडल में सिंधिया और चौहान को एक खास मकसद से जगह दी है। इन दोनों को मंत्रिमंडल में लिए जाने से जातीय संतुलन बना या नहीं ये भी हम नहीं जानते। हम ये जानते हैं कि मोदी जी के पूर्व मंत्रिमंडल के नाकाम कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की वजह से मोदी जी और उनकी पार्टी को किसान आंदोलन के दौरान जो फजीहत झेलना पड़ी उसे देखते हुए ही शिवराज सिंह चौहान को नया कृषि मंत्री बनाया गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी मध्य्प्रदेश से ही थे। वे किसान आंदोलन को ढंग से हैंडिल नहीं कर पाए थे। दरअसल तोमर यानि ग्वालियर के मुन्ना भैया, मौन सिंह साबित हुए थे। वे न किसानों को मना पाए और न किसान यूनियनों को। उन्हें किसान संगठनों से संवाद स्थापित करने में भी कोई कामयाबी नहीं मिली। उलटे सरकार के माथे पर 700 किसानों की हत्या का दाग और लग गया था। विवादास्पद क़ानून वापस लेने पड़े थे सो अलग।
देश के किसान अभी भी आंदोलित है। किसान आंदोलन किसी भी समय भड़क सकता है। किसान आंदोलन का खमियाजा भाजपा ने आम चुनावों में भी उठाया। ऐसे में वाचाल, मिलनसार और किसानों से सीधा रिश्ता कायम करने में समर्थ शिवराज सिंह चौहान को चुना गया। हालाँकि मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान के ऊपर भी मंदसौर गोलीकांड का दाग लगा हुआ है। बहरहाल अब शिवराज सिंह को आपने आपको एक बार फिर प्रमाणित करना है। उनके पास एक मुख्यमंत्री के रूप में 18 साल से जयादा समय का अनुभव है, जो प्रधामंत्री जी के अनुभव से भी कहीं ज्यादा है।
अब आइये महाराज यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात करते हैं। सिंधिया के डीएनए में संघ, भाजपा और कांग्रेस के गुण समाहित हैं। सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहले कांग्रेसी, फिर जनसंघी और अंत में भाजपा में रहीं। सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया पहले जनसंघ में फिर कांग्रेस में रहे। खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति में अहला कदम कांग्रेस के माध्यम से रखा और 20 साल तक कनग्रेस में मान-सम्मान पाने के बाद अपमान मिलते ही कांग्रेस से किनारा कार भाजपा की सदस्य्ता ले ली। सिंधिया को मंत्रिमंडल में शामिल करने के पीछे उनका गुजरात से रिश्ता होने के साथ ही उनकी कर्मठता और ईमानदारी भी मानी जाती है।
मेरे अपने सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने बहुत सोच-विचार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को संचार मंत्रालय के साथ ही पूर्वोत्तर के विकास की जिम्मेदारी दी है। सिंधिया को संचार मंत्रालय देने के पीछे मकसद आने वाले दिनों में होने वाले 5जी इसप्रेक्टम की नीलामी भी है। आपको याद होगा कि इसी देश में कांग्रेस की सरकार के जमाने में अब तक का सबसे बड़ा 2 जी घोटाला हुआ था। इस घोटले में कांग्रेस के सहयोगी द्रमुक के नेता और मंत्री शामिल होने के आरोप लगे थे। तत्कालीन संचार मंत्री ऐ राजा को तो पंद्रह महीने जेल में भी काटना पड़े थे। हालाँकि राजा बाद में बरी हो गए थे। मोदी जी नहीं चाहते की 5 जी स्प्रेकटुम के आवंटन में कोई घोटाला हो इसलिए सिंधिया को इसकी जिम्मेदारी दी गयी।
केंद्रीय मंत्री मंडल में फिलहाल सिंधिया अकेले ऐसे मंत्रीं हैं जिनका दामन पाक-साफ़ दिखाई देता है। उनके पिता के साथ तो नैतिकता का भी तमगा जुड़ा था। उन्होंने एक मामूली सी हवाई दुर्घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिम्हाराव को अपना त्यागपत्र सौंप दिया था। हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से भी निकाल दिया था, लेकिन उन्होंने उफ़ तक नहीं की और एक निर्दलीय के रूप में लोकसभा चुनाव जितने के बाद वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वे चाहते तो भाजपा में भी जा सकते थे, लेकिन उन्होंने फिर भी ऐसा नहीं किया।
मौजूदा सरकार को पूर्वोत्तर में जड़ें जमाने के लिए एक उत्साहीलाल की जरूरत थी। इस कसौटी पर ज्योतिरादित्य सिंधिया खरे उतरे इसीलिए उन्हें संचार मंत्रालय के साथ पूर्वोत्तर मामलों की भी जिम्मेदारी दी गयी। पूर्वोत्तर में मणिपुर सबसे ज्वलंत मुद्दा है। मणिपुर के मामले में संघ और भाजपा ही नहीं खुद मोदी जी नाकाम साबित हुए हैं। मणिपुर अभी भी जल रहा है। संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत ने ने भी फिर एक बार मणिपुर को लेकर नयी सरकार को आगाह किया है। पूर्वोत्तर में हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली है। अब देखना ये है कि नए कृषि मंत्री और नए संचार मंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया कितने कामयाब हो पाते हैं? इन दोनों नेताओं की कामयाबी ही इनके बच्चों की कामयाबी कि लिए दरवाजे खोलेगी। चौहान और सिंधिया कि बेटे राजनीयति में पदार्पण कि लिए कमर कसकर तैयार हैं।
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