भागवत उवाच: संघ बड़ा या मोदी
-मुस्ताअली बोहरा-
- आरएसएस चीफ को रास नहीं आई नड्डा की बात
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में इशारों ही इशारों में नसीहतें दे दी हैं। उनका इशारा किस ओर था ये टिप्पणियों या नसीहत से ही पता चल जाता है। आरएसएस के एक कार्यक्रम में भागवत ने लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव प्रचार की तरीके, हिन्दु-मुस्लिम कर धार्मिक उन्माद भड़काने या वोटों के धु्रर्वीकरण, जातिगत भेदभाव, चुनाव के दौरान अमर्यादित आचरण सहित कई मसलों पर बेबाक तरीके से अपनी बात रखी। जिस तरीके से उन्होंने बार बार मर्यादित व्यवहार और अहंकार का उल्लेख किया उससे जाहिर है उन्हें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का वो बयान भी नागवार गुजरा जो उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था।
आरएसएस चीफ डाॅ मोहन मधुकरराव भागवत ने संगठन के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय’ के समापन कार्यक्रम में आरएसएस प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए ये तक कह दिया कि जो सच्चा सेवक होता है वह मर्यादित होता है और मर्यादा में अहंकार नहीं आता। भागवत ने लोकसभा चुनाव को लेकर कहा कि समाज ने अपना मत दे दिया और उसके अनुसार काम हो रहा है। संघ के लोग इसमें नहीं पड़ते, हम अपना कर्तव्य करते रहते हैं। दरअसल, भागवत की ये तल्ख टिप्पणी उस क्रिया की प्रतिक्रिया थी जो भाजपा अध्यक्ष जेपी नडडा की ओर से आई थी। कुछ दिनों पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने एक साक्षात्कार में आरएसएस को पार्टी का वैचारिक मोर्चा करार दिया था। नड्डा ने ये भी कहा था कि पार्टी की संरचना मजबूत हो गई है, भाजपा अब अपने भरोसे ही चलती है। अटल बिहारी वाजपेयी के वक्त और वर्तमान की तुलना से जुड़े एक सवाल के जवाब में नड्डा ने कहा था कि वाजपेयी के समय पार्टी को खुद को चलाने के लिए आरएसएस की जरूरत थी क्योंकि उस समय बीजेपी कम सक्षम और छोटी पार्टी हुआ करती थी। लेकिन आज हम बढ़ गए हैं, पहले से अधिक सक्षम हैं। बीजेपी अब अपने आप को चलाती है। जेपी नड्डा ने कहा था कि आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन हैं जबकि भाजपा एक राजनीतिक दल है। हम अपने मामलों को अपने तरीके से संभालते हैं। संभवतः नड्डा का ये बयान भागवत को रास नहीं आया और उन्होंने अपने तरीके से इसका जवाब दिया। भागवत ने कहा कि चुनाव में स्पर्धा रहती है लेकिन इसमें भी मर्यादा रहती है। असत्य का उपयोग नहीं करना चाहिए। भागवत ने दुखती रग पर हाथ रखते हुए कहा कि एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है। प्राथमिकता देकर उस पर विचार करना चाहिए। आरएसएस के एक कार्यक्रम में भागवत ने इस्लाम और ईसाई धर्म का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस्लाम और ईसाई जैसे धर्मों की अच्छाई और मानवता को अपनाया जाना चाहिए। सभी धर्मों के अनुयायियों को एक-दूसरे का भाई-बहन के रूप में सम्मान करना चाहिए। भारतीय समाज विविधतापूर्ण है, लेकिन सभी जानते हैं कि यह एक समाज है और वे इसकी विविधता को स्वीकार भी करते हैं, सभी को एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहिए और एक-दूसरे की उपासना पद्धति का सम्मान करना चाहिए। नागपुर में डॉ. हेडगेवार स्मृति भवन परिसर में संगठन के कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय के समापन कार्यक्रम में आरएसएस प्रशिक्षुओं की सभा को संबोधित करते हुए आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि विभिन्न स्थानों और समाज में संघर्ष अच्छा नहीं है। रक्षा, खेल, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, तकनीक में सरकार के काम की तारीफ करते हुए भागवत ये कहने से नहीं चूके कि हमने पिछले वर्षों में कई क्षेत्रों मंे प्रगति की है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हमने चुनौतियों पर काबू पा लिया है। जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में अयोध्या सहित अन्य धार्मिक स्थलों और देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में इस तरह के नतीजांे की उम्मीद आरएसएस को भी नहीं थी। भागवत ने जिस तरह से कहा कि यह देश हमारा है और इस भूमि पर जन्म लेने वाले सभी लोग हमारे अपने हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अतीत को भूल जाना चाहिए और सभी को अपना मानना चाहिए। भागवत ने आगे कहा कि जातिवाद को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए। इसका सीधा मतलब है कि वो भाजपा से मुसलमानों और दलितों को जोड़ने का इशारा कर रहे हैं। खैर, ये जाहिर है कि मोदी और आरएसएस की पटरी नहीं बैठती है। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही मोदी ने कभी आरएसएस को ज्यादा तव्वजांे नहीं दी। प्रधानमंत्री बनने के बाद तो मोदी ही वन मेन आर्मी हैं फिर चाहे वह सत्ता की बात हो या संगठन की। गुजरात दंगों के बाद मोदी तेजी से ताकतवर होकर उभरे। सन 2002 के बाद तो सियासी गलियारों में ये कहा जाने लगा था कि संघ और भाजपा को मोदी की जरूरत है, मोदी को उनकी नहीं। ये वो दौर था जब गुजरात में कद्दावर नेता केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री थे और उन्हें हटाकर नरेन्द्र मोदी को सीएम बनाया गया था। गुजरात में दंगों के बाद उन्होंने तमाम विपरीत हालातों के बाद भी मोदी कमजोर नहीं हुए। तब संघ भी ये मान रहा था कि मोदी को उनकी जरूरत पड़ेगी लेकिन दंगों के बाद वे हिन्दुवादी नेता के रूप में लोकप्रिय हो गए थे। कई मौकों पर मोदी ने संघ को ये अहसास करा दिया कि मुख्यमंत्री वे हैं और सरकार भी वो ही चलाएंगे, इसमें संघ की दखलंदाजी नहीं होगी। संजय जोशी से लेकर प्रवीण भाई तोगड़िया तक नेताओं को मोदी ने किनारे लगा दिया। बावजूद इसके मोदी मजबूरी बन गए भाजपा और संघ दोनों के लिए। मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए ही तब सरसंघचालक मोहन भागवत और संघ से जुड़े शीर्ष पदाधिकारियों ने लालकृष्ण आडवाणी, जसवंत सिंह और मुरली मनोहर जोशी और इनके समकक्ष नेताओं की बजाए मोदी को तरजीह देकर राजनीति के शिखर तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया। इतना ही अटलबिहारी वाजपेयी के बाद यदि कोई दूसरा नेता इतना लोकप्रिय है तो वह मोदी हीं हैं और कहीं ना कहीं इसके पीछे संघ का योगदान है। संघ को एक ऐसे कटटरपंथी नेता की जरूरत थी जो उसके एजेंडे को आगे बढ़ा सके और तब ये तलाश गुजरात पर जाकर खत्म हुईं। जहां एक ऐसा सीएम था जिसने लगातार तीन चुनाव जीते था, जो कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय था, जिसकी कारपोरेट में पकड़ थी और जो संघ का प्रचारक रह चुका था। इसके बाद संघ ने मोदी को गुजरात से आगे लाकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दीं। जो लोग आरएसएस को करीब से जानते हैं उन्हें ये मालूम है कि भाजपा की पहुंच यदि गली-मोहल्ले और घर-घर तक हैं तो इसके पीछे आरएसएस का कार्यकर्ता ही है। भले ही मोदी की अगुआई में तीसरी बार सरकार बनीं हो लेकिन यदि संघ का सपोर्ट ना हो तो सीटों की संख्या सिमट सकती है। फिर चाहे वो सिख विरोधी दंगों के बाद हुए लोस चुनाव हों या रामजन्मभूमि में भव्य श्रीराम मंदिर बन जाने के बाद हाल ही में हुए आम चुनाव हों।
बहरहाल, मोदी ये अच्छे से जानते हैं कि चाहे भाजपा हो अथवा उसके अनुशांगिक संगठन सभी आरएसएस के प्रति प्रतिबद्ध हैं। जहां तक मोदी और संघ के बीच मतभेदों का सवाल है तो इस पर कई कयास लगाए जा सकते हैं। इतना जरूर है कि भले ही अभी भाजपा सक्षम हो और उसे संघ की ज्यादा जरूरत ना हो लेकिन भविष्य में भाजपा को संघ की जरूरत नहीं पड़ेगी ऐसा नहीं है। भागवत की टीस इसलिए भी गहरी है क्योंकि जो कभी संघ का प्रचारक था वो ही प्रधानमंत्री है और उससे ऐसे आचरण की उम्मीद नहीं थी। भले ही उन्होंने मोदी का नाम ना लिया हो लेकिन बिना नाम लिए ही काफी कुछ कह दिया। फिलहाल, नड्डा के बयान और फिर भागवत की नसीहत के बाद यही कयास लगाया जा रहा है कि संघ बड़ा या मोदी……..।
सियासी मियार की रीपोर्ट