बीते सप्ताह बिनौला को छोड़कर सभी तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट..
नई दिल्ली, 16 जून। बीते सप्ताह कमजोर मांग और बेपड़ता देशी तेल-तिलहन की पेराई के बाद लागत बढ़ने के बीच कम खपत के कारण देश के तेल-तिलहन बाजारों में बिनौला तेल में आई मामूली तेजी को छोड़कर बाकी सभी तेल-तिलहन के दाम गिरावट के साथ बंद हुए। मूंगफली तेल-तिलहन और कच्चे पामतेल (सीपीओ) के दाम पूर्वस्तर पर बने रहे।
बाजार सूत्रों ने कहा कि सहकारी संस्था हाफेड की ओर से सरसों बिक्री की पहल के बीच बीते सप्ताह सरसों तेल-तिलहन कीमतों पर दबाव रहा और इनके दाम गिरावट के साथ बंद हुए। किसानों के पास सरसों का स्टॉक बचा हुआ है और वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम पर बिकवाली नहीं कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि देश की पेराई मिलों को सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, सूरजमुखी, बिनौला आदि की पेराई करने में नुकसान हो रहा है क्योंकि पहले से बेपड़ता तेल-तिलहन की पेराई के बाद लागत बढ़ने की वजह से इनका खपना मुश्किल है। बाजार में सस्ते आयातित खाद्य तेल के दाम ने बाजार घारणा को खराब कर रखा है जिससे देशी तेल-तिलहनों का बुरा हाल है। इसके कारण किसान तेल मिलें, तेल उद्योग तो परेशान हैं ही उपभोक्ता भी परेशान हैं क्योंकि उन्हें थोक कीमतों में आई गिरावट का लाभ नहीं मिल पा रहा और ऊंचे अधिकतम खुदरा मूल्य निर्धारण के कारण खुदरा बाजार में उन्हें मंहगे दाम पर ही खाद्य तेल खरीदना पड़ रहा है।
सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में ऊंचे दाम पर कम कारोबार के बीच मूंगफली तेल-तिलहन के दाम अपरिवर्तित बने रहे। कच्चा पामतेल भी पूर्व सप्ताह के बंद स्तर पर ही टिका रहा। सोयाबीन डीगम तेल का दाम भी पूर्ववत बना रहा।
सूत्रों ने कहा कि सरकार को देश में तेल-तिलहन उत्पादन की दिशा में आत्मनिर्भर बनने के लिए स्पष्ट नीति बनानी होगी। इसके अलावा तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ने से मुर्गीदाने के लिए डी-आयल्ड केक (डीओसी) और मवेशी आहार के लिए तेल खली की उपलब्धता बढ़ेगी जिससे खाद्य तेल एवं डीओसी आदि के आयात पर देश की विदेशी मुद्रा की बचत हो सकेगी।
सूत्रों ने कहा कि मौजूदा बाजार स्थितियों ने खासकर तिलहन किसानों को बेहाल कर दिया है और इस बात की पूरी संभावना हो सकती है कि वे तिलहन के बजाय किसी और फसल का रुख कर लें जिससे तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ने की जगह आयात पर निर्भरता बढ़ सकती है। विशेषकर पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में कपास बुवाई का रकबा और उत्पादन दोनों ही घटे हैं जो चिंता का विषय है।
बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 30 रुपये की गिरावट के साथ 5,920-5,980 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 50 रुपये घटकर 11,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 15-15 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 1,850-1,950 रुपये और 1,850-1,975 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 20-20 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,710-4,730 रुपये प्रति क्विंटल और 4,510-4,630 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
इसी तरह सोयाबीन दिल्ली और सोयाबीन इंदौर के दाम क्रमश: 25-25 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 10,325 रुपये तथा 10,140 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। सोयाबीन डीगम तेल का भाव 8,850 रुपये प्रति क्विंटल पर अपरिवर्तित रहा।
समीक्षाधीन सप्ताह में ऊंचे भाव की वजह से कम कारोबार के बीच मूंगफली तेल-तिलहन कीमतें अपरिवर्तित रहीं। मूंगफली तिलहन 6,125-6,400 रुपये क्विंटल, मूंगफली गुजरात 14,650 रुपये क्विंटल और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल के भाव भी 2,220-2,520 रुपये प्रति टिन पर स्थिर रहे।
वहीं कच्चा पाम तेल (सीपीओ) 8,775 रुपये प्रति क्विंटल पर अपरिवर्तित रहा। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 25 रुपये की गिरावट के साथ 9,925 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 25 रुपये की गिरावट के साथ 8,925 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
सूत्रों ने कहा कि बिनौला खल का नगण्य स्टॉक रहने के बीच मांग बढ़ने तथा कपास खेती का रकबा घटने की सूचना के बीच अकेले बिनौला तेल के साथ बिनौला खल में तेजी रही। बिनौला तेल का भाव 25 रुपये मजबूत होकर 10,225 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
सियासी मियार की रीपोर्ट