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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) पर विशेष: आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का रूप है योग

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) पर विशेष: आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का रूप है योग

-संजय गोस्वामी-

21 जून, 2024 को स्वयं और समाज के लिए योग थीम के साथ 10वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में भारत सरकार अभ्यास के योग के प्रति आपकी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने के लिए एक विशेष अवसर प्रदान कर रही है वेदों के अनुसार, भारत में योग की उत्पत्ति वैदिक काल में हुई है। सबसे प्राचीन योगिक शिक्षाएँ वैदिक योग या प्राचीन योग के नाम से मशहूर हैं और इसे चार वेदों दृ ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में देखा जा सकता है। वैदिक योग से जुड़े अनुष्ठान और समारोह मन को तरोताजा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, उस समय लोगों ने वैदिक योग को जीवन के बहुत ही महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में अपनाया था। योग को अदृश्य दुनिया से जुड़ने और अपने आप को किसी के प्रति समर्पित करने का एक तरीक़ा माना जाता है। योग आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का ही रूप है योग विज्ञान और उसकी क्रियाओं की वैज्ञानिक महत्ता आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी स्वीकार करता है। भारत सरकार का आयुष मंत्रालय, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों, के रूप में खासकर योग को बढ़ावा दे रहा है। सरकार की इस पहल से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य केंद्रों में योग प्रशिक्षकों के लिए रोजगार के मौके हैं। योग कला के साथ विज्ञान भी है और यह मानवता की भलाई की शक्तियाँ रखता है। योग तनावों एवं परेशानियों की रोकथाम और उनसे बचाने में मदद कर सकता है। माना जाता है कि वर्ष 1893 में शिकागो में आयोजित धर्मों की संसद में आधुनिक योग की उत्पत्ति हुई थी। स्वामी विवेकानंद ने धर्मों की संसद में, अमेरिकी जनता पर स्थायित्व से परिपूर्ण प्रभाव डाला था। उसके फलस्वरूप वह योग और वेदांत की ओर छात्रों को आकर्षित करने में काफ़ी सफल हुए। उसके बाद, दूसरे योगगुरू परमहंस योगानन्द को माना जाता है। वर्तमान समय में, पतंजली योग पीठ ट्रस्ट के स्वामी रामदेव ने भारत के प्रत्येक घर में और यहाँ तक विदेशों में भी योग का प्रसार करने में कामयाबी हासिल की है। योग से तनाव में राहत, भावनाओं पर अधिक नियंत्रण रहाध्यान बढ़ा देने के साथ, एकाग्रता शक्ति में वृद्धि होती है पूर्व शास्त्रीय योग में सब कुछ कठोर एकाग्रता पर केंद्रित होता है। इस अवधि के दौरान योग ने एक दिलचस्प मोड़ ले लिया था, क्योंकि इस अवधि के योग शरीर के अंदर छिपी क्षमता की जाँच करने में सक्षम थे। इसलिए, शरीर का नवीनीकरण करने के लिए योग गुरुओं द्वारा साधनाओं की एक प्रणाली का निर्माण किया गया था। इससे परिणामस्वरूप वर्तमान योग के एक शौकिया प्रारूप हठ-योग की रचना हुई। शारीरिक लाभरूशरीर का संतुलन, वसा घटाने और लचीलापन से चुस्त शरीरहृदय गति में लाभ समग्र ऊर्जा स्तर में वृद्धि, बेहतर मांसपेशियों की शक्ति, हतर प्रतिरक्षा प्रणाली, पाचन शक्ति में वृद्धिउचित मांसपेशी शरीर के वज़न का नियंत्रण होता है नियमित योग अभ्यास से शरीर के विभिन्न मांसपेशी और मन का नियंत्रणयोग और ध्यानयोग में योगसन स्वच्छता, स्नानादि से शरीर पुष्ट एवं शुद्ध होता है। यद्यपि उनका ध्यान-क्रिया से कोई सीधा सम्बंध नहीं है, तथापि उनका एक महत्त्व है। यम, नियम का पालन करने पर आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार को अभ्यास करने पर धारणा की अवस्था प्राप्त होती है। धारणा ध्यान की पूर्वावस्था है और ध्यान का परिपाक समाधि है। योग की विभिन्न प्रक्रियाएँ, ध्यान का प्रक्षेपण इत्यादि, सिद्ध गुरु के निर्देशन में ही करना चाहिए, अन्यथा वे प्राणघातक भी हो जाती हैं। वास्तव में पतञ्ञलि-प्रणीत अष्टांग योग के अंग परस्पर सम्बंध हैं तथा सभी का एक साथ अभ्यास होना संभव तथा उचित है। क्रमशः यम, नियम, आसन, प्रामायाम इत्यादि का अभ्यास करना साधना को कठिन बना देता है। ध्यान अष्टांग-योग का मध्य बिन्दु है। (यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार को, विशेषतः आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार को श्हठयोगश् भी कहते हैं) ध्यान के द्वारा हम समस्त चेतना को स्थूल बहिर्जगत् से समेटकर भीतर सूक्ष्म चेतना की ओर उन्मुख करते हैं। साधक को साध्य प्राप्त हो जाता है, मंज़िल मिल जाती है। योग वास्तव में भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और इतिहास के साथ-साथ योग में भी परिवर्तन देखने को मिले हैं। योगः सार्वभौमा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड योगमय है एवं ब्रह्माण्ड की प्रत्येक क्रिया योगमय है। प्रत्येक सौर मण्डलों के ग्रहों की निष्चित गति एवं उनकी निष्चित परस्पर दिषा एवं दूरी, उनके निष्चित सामंजस्य से प्रतीत होता है कि सब अपने-अपने कर्मयोग में बंधे हुए हैं। चराचर जगत व्यवहार योगमय प्रतीत होता है। जड़-चेतन की अधिक व्याख्या न करते हुए यहाँ पर यदि प्राणियों विषेशकर मानव जगत के ही विस्तृत व्यवहारों में से थोड़े से पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कुछ तथ्यों पर ही विचार करने मात्र से योग की सार्वभौमिकता ज्ञात हो जाती है। योग का सामान्य अर्थ जोड़ है, चाहे आत्मा का परमात्मा से हो, मन का षरीर अथवा व्यक्ति का लक्ष्य से हो। संसार में प्रत्येक समय यौगिक क्रियाएँ होती रहती हैं। उदाहरणार्थ, कभी-कभी दो व्यक्तियों के मुंह से एक साथ एक ही वाक्य अक्षरषः निकल जाता है, जबकि दोनों में से किसी को भी नहीं पता होता है कि दूसरा व्यक्ति कब और क्या बोलेगा? ये मन से मन का योग है। जन्म से लेकर मृत्यु तक, यहाँ तक कि निशेचन क्रिया से लेकर पंचतत्त्वों में विलीन होने तक की सभी घटनाएँ योगमय हैं। इस प्रकार सामान्यतः योग का वर्गीकरण स्वतःचालित तथा यत्नपूर्वक किये गये योगाभ्यास में किया जा सकता है। स्वतःचालित क्रियाओं में जीवन में होने वाली आकस्मिक घटनाओं (अच्छी या बुरी) को सम्मिलित किया जा सकता है। जिनके पीछे व्यक्ति का कोई पूर्व निष्चित ध्येय नहीं होता और यत्नपूर्वक किये गये योग में व्यक्ति का कोई पूर्व निष्चित उद्देष्य होता है। यहाँ ये आवष्यक नहीं कि व्यक्ति को पूर्णरूपेण व उद्देष्य प्राप्ति हेतु योग करने का ज्ञान हो। सभ्य समाज में वर्जित आतंकवादी भी योग का ग्राही हो जाता है, चाहे उसने योगाभ्यास के लिए प्रयत्न किया हो या उसे योग के विशय में कुछ भी ज्ञान न हो। उदाहरणार्थ-आत्मघाती आतंकवादी की सुशुम्ना नाड़ी चलने लगती है। 31 जो क्रिया करने के लिए हठयोगी को अनेक प्रयास करने होते हैं। वह क्रिया आत्मघाती में बिना प्रयास स्वतः होने लगती है। संसार में प्रत्येक घटना एवं प्रयास योग से ही संचालित है। कहीं संतुलित योग है, कहीं असन्तुलित अर्थात् योग से अलग कुछ भी नहीं। ये प्रत्येक संस्कृति, व्यक्ति का अपना-अपना दृश्टिकोण हो सकता है कि यौगिक सन्तुलन क्या है और यौगिक असंतुलन क्या? इसी प्रकार प्रत्येक समय शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं में यौगिक संतुलन और असन्तुलन घटित होता रहता है। यौगिक सन्तुलन अथवा असंतुलन का वर्गीकरण उनके भावी परिणामों के आधार पर भी किया जा सकता है। यदि उच्चतम कोटि की योग साधना अलावा व्यक्ति यौगिक सन्तुलन के लिए भी कोई प्रयास करते हैं, चाहे वह आसन, प्राणायाम, व्यायाम, लेखन, साहित्य रचना हो अथवा औशधि सेवन। संगीत नृत्य में रत हो जाना हो अथवा किसी भी विद्या का अभ्यास करना, ये सब योग क्रियाएँ हैं। विष्व की प्रत्येक कला, प्रत्येक विद्या योग का अंष, भेद, या अंग होती है। अभिनय, लेखन, संगीत, नृृत्य, युद्धकला, चित्रकला आदि सभी विद्याओं में षास्त्रीय दृश्टि से अनुभव करें अथवा सामान्य शारीरिक व मानसिक क्रियाओं की दृश्टि से, सभी कुछ योग के अन्तर्गत है। षरीर में उपस्थित ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण होता है। निरन्तर चलने वाले जीवनचक्र में इन्द्रियों के माध्यम से ही अच्छे अथवा बुरे अनुभव होते रहते हैं। यदि लगातार ही इच्छा के विपरीत अनुभव व्यक्ति को होते हैं तो ये स्थिति व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक स्थिति में यौगिक असंतुलन उत्पन्न करके रोगों का कारण बन जाती है। यदि प्रयास अथवा किसी भी साधन से ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से व्यक्ति को अच्छे मधुर अनुभव उपलब्ध कराये जायें तो व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक असंतुलन दूर किया जा सकता है।