प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है..
प्रार्थना में बड़ा बल होता है अगर वह सच्चे दिल से की जाए। ईश्वर के साथ एकाकर होने की उसमें क्षमता होती है। व्यक्ति प्रार्थना करने से स्वयं को पवित्र और शुध्द बनाता ही है, देखने वाले को भी प्रेरित करता है। ऐसी प्रार्थना में जितना आनन्द व आत्मा को जितनी शांति मिलती है उतनी कहीं नहीं मिलती।
प्रार्थना भी दो प्रकार की होती है बाहरी और आंतरिक। कौन किस विधि से किसकी प्रार्थना करता है यह उस उसकी आस्था व श्रध्दा का विषय है। छोटे-छोटे रूप में यह भी याचना का एक रूप ही है। बाहरी प्रार्थना दुनिया को दिखाने के लिए शिष्टाचारवश होती है जबकि अन्तर प्रार्थना हृदय से निकलती है और वही सबसे अधिक फलदायक भी होती है। मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे में हम ध्यान योग व प्रार्थना करते हैं और बाहर निकलते ही संसार में अगर न्याय संगत व्यवहार न करें तो हमारी प्रार्थना बेकार सिध्द हो जाती है। विश्व में हर व्यक्ति भगवान को याद करता है। दुःख आने पर एवं मात्र पर्वों के दिन भगवान का दर्शन करते हैं। प्रायः कष्ट पड़ने पर ही लोग राम का नाम लेते हैं अन्यथा सांसारिक कार्यकलापों में संलग्न रहते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि-
दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन कर, तो दुःख काहे की होय।।
प्रार्थना में जितनी शक्ति होती है वह और कहीं नहीं मिलती है। जो स्वार्थवश प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर। मेरा काम निकल-निबट गया या गुम हुई वस्तु मिल गयी तो मैं आपको 5 या 10 रुपए का प्रसाद चढ़ाऊंगा। ऐसी प्रार्थना कारगर नहीं होती है। यह तो एक तरह से ईश्वर को रिश्वत देने जैसा है। निष्काम भाव से कोई काम करे वही सेवा सच्ची गिनी जाती है। गीता में लिखा है- मैं भगवान के पास से अष्टसिध्दि या मोक्ष की कामना नहीं करता हूं। मेरी तो एक ही प्रार्थना है कि सभी प्राणियों का हृदय स्थिर रहे और मैं सब दुःखों को सहन करूं।
महाभारत – परमात्मा की प्रार्थना आत्मा में निहित अंतः शक्त को जगा देने का दैविक बल है।
महात्मा गांधी – प्रार्थना अथवा भजन मुंह से नहीं हृदय से होते हैं। स्वयं की अयोग्यता, कुपात्रता या कमजोरी स्वीकार कर लेना ही प्रार्थना होती है, प्रार्थना पश्चाताप का चिह्न व प्रतीक है। यह हमें, अच्छा और पवित्र बनने के लिये प्रेरणा देती है। प्रार्थना धर्म का सार है। प्रार्थना याचना नहीं बल्कि आत्मा की पुकार है। प्रार्थना हमारी दुर्बलताओं की स्वीकृति नहीं, पर हमारे हृदय में सतत् चलने वाला अनुसंधान है। प्रार्थना नम्रता की पुकार है। आत्मशुध्दि व आत्म निरीक्षण का आह्वान है। प्रार्थना आत्मा की खुराक भी है। अपनी गन्दगी या बुराई प्रार्थना द्वारा बाहर नहीं निकले तब तक प्रार्थना करते रहना चाहिए।
होर्न – प्रार्थना विश्वास की आवाज या प्रतिफल है।
ब्रूक्स – यदि हृदय मूक है तो ईश्वर भी बहरा ही होगा।
सुकरात – हे भगवान। मेरी तो यही प्रार्थना है कि मैं हृदय और अन्तरात्मा से सुन्दर बनूं। प्रार्थना सदा सर्व सामान्य भलाई के लिए होनी चाहिए, क्योंकि तुम ही जानते हो कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है।
स्वामी विवेकानन्द – प्रार्थना से कुछ मांगना है तो यही मांगना चाहिए कि किसी का बुरा न हो। विध्वंसकारी फल मत मांगना।
विनोबा भावे – वर्षा का असर शरीर से मन पर पड़ता है, प्रार्थना का असर हृदय द्वारा आत्मा पर होता है।
रामकृष्ण परमहंस – प्रार्थना का क्या असर है? जब मन और वाणी का एक बनकर ईश्वर से कुछ मांगा जाता है तो प्रार्थना जरूर फलती है। प्रार्थना एक प्रकार का भावात्मक ध्यान होता है।
जयशंकर प्रसाद – निःसहाय स्थिति में प्रार्थना के सिवाय कोई उपाय नहीं होता। प्रार्थनाप्रातःकाल की चाबी व सांध्यकाल की सांकल है।
तुर्गनेव – मनुष्य जब प्रार्थना करता है तो यही विचार करता है कि कुछ चमत्कार हो जाए जिससे उसका भला हो।
लूथर – जिस प्रार्थना में बहुत ही अल्प शब्द हों वही सर्वोत्तम प्रार्थना है।
संत मैकेरियस – जिसकी आत्मा शुध्द व पवित्र होती है वही प्रार्थना कर सकता है।
हितोपदेश – स्वयं के दुर्गुणों का चिंतन व परमात्मा के उपकारों का स्मरण ही सच्ची प्रार्थना होती है। सत्य, क्षमा, संतोष, ज्ञान धारण, शुध्द मन और मधुर वचन श्रेष्ठ प्रार्थना है।
जैनेन्द्र कुमार – प्रार्थना स्वयं को अज्ञानी मानकर करने से ही हमें बल प्राप्त होगा।
टेनिसन – विश्व में जितना ज्ञान या समझ है उससे अधिक ज्ञान प्रार्थना में होता है।
कालरिज – जिसका प्रेम सर्वोत्तम है उसकी प्रार्थना बी सर्वोत्तम होती है।
होमर – जो ईश्वर की बात मानता है ईश्वर भी उनकी ही सुनता है।
हजरत मोहम्मद पैगम्बर – प्रार्थना (नमाज) धर्म का आधार व जन्नत की चाबी है।
दयानन्द सरस्वती – प्रार्थना अर्थात् आत्मा की आवाज परमात्मा तक पहुंचाने की संदेशवाहक है।
संत बेनेडिक्ट – कोई सत्कार्य, शुभकार्य करने से पहले प्रारम्भ में ही अन्तःकरण से प्रार्थना करो ताकि शुरू किया हुआ कार्य सम्पूर्ण रूप से सफल हो।
जान रिक्सन – दिन का शुभारम्भ करने का अच्छा कार्य यही प्रार्थना है कि हमारा एक पल भी व्यर्थ न जाए।
भगवान महावीर – जिस प्रकार शरीर को स्वच्छ रखने के लिये सन जरूरी है उसी तरह अन्तःकरण को शुध्द रखने के लिए प्रार्थना जरूरी है।
टालस्टाय – हमारी प्रार्थना के बारे में लोग जितना कम जानें उतना ही अच्छा है। सच्चा साधक स्तुति या प्रशुंसा की इच्छा नहीं करता न किसी इच्छा के अधीन होता है।
स्वामी रामतीर्थ – प्रतिदिन प्रार्थना करने से अन्तःकरण पवित्र बनता है। स्वभाव में परिवर्तन आता है। हताशा व निराशा समाप्त हो जाती है। मन में शांति व स्फूर्ति प्राप्त