यह है भारत का इकलौता शिव मंदिर, ऊंचाई के बाद भी कभी जमीन पर नहीं पड़ती इसकी छाया
इस साल 22 जुलाई 2024 यानी आज से सावन का महीना शुरू हो चुका है। इस पूरे महीने में लोग भगवान शिव की अराधना करते हैं। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए मंदिरों में अभिषेक भी करते हैं। वहीं कुछ लोगों को सावन में अलग-अलग शिव मंदिरों को एक्सप्लोर करना अच्छा लगता है। अगर आप भी महादेव के पक्के भक्त हैं और इस साल किसी अनोखे शिव मंदिर में दर्शन के लिए जाना चाहते हैं, तो आज हम आपको तमिलनाडु में स्थित शिव मंदिर के बारे में बताएंगे। यह थंजावुर में बना बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर को देखकर यहां आने वाले लोग हैरान रह जाते हैं। तो चलिए बताते हैं बृहदेश्वर मंदिर से जुड़े दिलचस्प तथ्यों के बारे में।
जमीन पर नहीं पड़ती मंदिर की छाया
यह मंदिर एक कारण से बहुत मशहूर है। कहते हैं, इतना ऊंचा होने के बाद भी इस मंदिर की परछाई कभी जमीन पर नहीं पड़ती। इस ऑप्टीकल इल्यूजन की बजह मंदिर की संरचना का डिजाइन है। यहां पत्थर कुछ इस तरह से लगाए गए हैं, जिसके कारण मंदिर की परछाई जमीन तक आते-आते रुक जाती है।
20 टन का लिंगम
बृहदेश्वर मंदिर में स्थित लिंगम एक बड़ा पत्थर है, जो भगवान शिव की दिव्य शक्ति का प्रतीक है। जानकर हैरत होगी कि यह लिंगम पत्थर के एक ही टुकड़े से बना है और इसका वजन 20 टन है। इसी वजह से इसे भारत के सबसे बड़े लिंगम में से एक माना जाता है।
भरतनाट्यम की 81 मुद्राओं
बृहदेश्वर मंदिर की बाहरी दीवारें देखने लायक हैं। यहां पर जटिल नक्काशी की गई है जो “भरतनाट्यम की 81 मुद्राओं” को दर्शाती है। बता दें कि भरतनाट्यम दक्षिण भारत का एक शास्त्रीय नृत्य है।
प्राकृतिक रंगों से सजी दीवारें
मंदिर की दीवारों पर सजी पेंटिंग फूलों, मसालों और पत्तियों से बने प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके बनाई गई हैं। इन इको फ्रेंडली रंगों का स्पर्श मंदिर की भव्यता और सांस्कृतिक महत्व को और भी बढ़ा देता है।
चौंकाने वाला है गुंबद
बृहदेश्वर मंदिर का चौंकाने वाला पहलू इसका विशाल गुंबद है, जिसका वजन 80 टन है। यह पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है और इसके निर्माण में किसी भी आधुनिक इंजीनियरिंग उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
निर्माण में नहीं हुआ सीमेंट और मिट्टी का प्रयोग
आधुनिक इमारतों के विपरीत, बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण में किसी सीमेंट, मिट्टी या बाइंडिंग एजेंट का उपयोग नहीं किया गया था। इसके बजाय, मंदिर को आपस में जुड़े हुए पत्थरों से तैयार किया गया है।
यह है भारत का इकलौता शिव मंदिर, ऊंचाई के बाद भी कभी जमीन पर नहीं पड़ती इसकी छाया
इस साल 22 जुलाई 2024 यानी आज से सावन का महीना शुरू हो चुका है। इस पूरे महीने में लोग भगवान शिव की अराधना करते हैं। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए मंदिरों में अभिषेक भी करते हैं। वहीं कुछ लोगों को सावन में अलग-अलग शिव मंदिरों को एक्सप्लोर करना अच्छा लगता है। अगर आप भी महादेव के पक्के भक्त हैं और इस साल किसी अनोखे शिव मंदिर में दर्शन के लिए जाना चाहते हैं, तो आज हम आपको तमिलनाडु में स्थित शिव मंदिर के बारे में बताएंगे। यह थंजावुर में बना बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर को देखकर यहां आने वाले लोग हैरान रह जाते हैं। तो चलिए बताते हैं बृहदेश्वर मंदिर से जुड़े दिलचस्प तथ्यों के बारे में।
जमीन पर नहीं पड़ती मंदिर की छाया
यह मंदिर एक कारण से बहुत मशहूर है। कहते हैं, इतना ऊंचा होने के बाद भी इस मंदिर की परछाई कभी जमीन पर नहीं पड़ती। इस ऑप्टीकल इल्यूजन की बजह मंदिर की संरचना का डिजाइन है। यहां पत्थर कुछ इस तरह से लगाए गए हैं, जिसके कारण मंदिर की परछाई जमीन तक आते-आते रुक जाती है।
20 टन का लिंगम
बृहदेश्वर मंदिर में स्थित लिंगम एक बड़ा पत्थर है, जो भगवान शिव की दिव्य शक्ति का प्रतीक है। जानकर हैरत होगी कि यह लिंगम पत्थर के एक ही टुकड़े से बना है और इसका वजन 20 टन है। इसी वजह से इसे भारत के सबसे बड़े लिंगम में से एक माना जाता है।
भरतनाट्यम की 81 मुद्राओं
बृहदेश्वर मंदिर की बाहरी दीवारें देखने लायक हैं। यहां पर जटिल नक्काशी की गई है जो “भरतनाट्यम की 81 मुद्राओं” को दर्शाती है। बता दें कि भरतनाट्यम दक्षिण भारत का एक शास्त्रीय नृत्य है।
प्राकृतिक रंगों से सजी दीवारें
मंदिर की दीवारों पर सजी पेंटिंग फूलों, मसालों और पत्तियों से बने प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके बनाई गई हैं। इन इको फ्रेंडली रंगों का स्पर्श मंदिर की भव्यता और सांस्कृतिक महत्व को और भी बढ़ा देता है।
चौंकाने वाला है गुंबद
बृहदेश्वर मंदिर का चौंकाने वाला पहलू इसका विशाल गुंबद है, जिसका वजन 80 टन है। यह पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है और इसके निर्माण में किसी भी आधुनिक इंजीनियरिंग उपकरण का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
निर्माण में नहीं हुआ सीमेंट और मिट्टी का प्रयोग
आधुनिक इमारतों के विपरीत, बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण में किसी सीमेंट, मिट्टी या बाइंडिंग एजेंट का उपयोग नहीं किया गया था। इसके बजाय, मंदिर को आपस में जुड़े हुए पत्थरों से तैयार किया गया है।
सियासी मियार की रीपोर्ट