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बांग्लादेश में उथल-पुथल व हिंदू समाज..

बांग्लादेश में उथल-पुथल व हिंदू समाज..

-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-

पाकिस्तान का गठन 1947 में हुआ था। इसके गठन की मांग करने वाली मुस्लिम लीग थी और उसने इसके गठन का आधार इस्लाम को स्वीकारा गया था। मुस्लिम लीग राजनीतिक दल थी/है और इसकी इस मांग को वैचारिक आधार पर भारत के एटीएम और देसी मूल के मुसलमानों में पहुंचाने और पुख्ता करने का काम जमायत-ए-इस्लामी कर रही थी/है। कांग्रेस मजहब के आधार पर देश के विभाजन का विरोध कर रही थी। यह उचित और तार्किक ही था। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस ने भारत विभाजन के पक्ष में प्रस्ताव पारित कर, पाकिस्तान के गठन का रास्ता साफ कर दिया। परंतु जिस सत्र में कांग्रेस ने भारत के विभाजन का प्रस्ताव पारित किया, उस सत्र में भी उसने मजहब के आधार पर विभाजन का विरोध किया। यह बीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा रहस्य है कि कांग्रेस विभाजन का तो समर्थन करती है और उसके पक्ष में है, लेकिन उसे विभाजन का आधार कारक ‘मजहब’ स्वीकार नहीं है। तब प्रश्न पैदा होता है कि कांग्रेस ने जब विभाजन को स्वीकार किया और वह वास्तव में हुआ भी, तो वह किस आधार पर हुआ। मुस्लिम लीग और जमायत-ए-इस्लामी का तो तब भी यही मानना था और आज भी यही मानना है कि विभाजन मजहब के आधार पर ही हुआ। लेकिन कांग्रेस ने यह विभाजन किस आधार पर किया? यहां यह प्रश्न हो सकता है कि विभाजन कांग्रेस ने नहीं किया, बल्कि ब्रिटेन ने किया। इसलिए इस प्रश्न को संशोधित किया जा सकता है कि जब कांग्रेस ने भारत के विभाजन के लिए प्रस्ताव पारित करके ब्रिटेन सरकार को दिया तो उसने विभाजन का आधार क्या रखा था?

कांग्रेस से यह प्रश्न किसी ने आज तक नहीं पूछा, इसलिए उसने इसका उत्तर भी नहीं दिया। यदि कांग्रेस 14 जून 1947 को ही इस पर विचार करती और इसका उत्तर देती तो आज जो समस्याएं पैदा हो रही हैं, वे शायद न होतीं। इसका उत्तर डा. भीमराव रामजी अंबेडकर ने 1946 में ही दिया था, जब कांग्रेस को छोडक़र बाकी सबको स्पष्ट हो रहा था कि देश का विभाजन निश्चित है। तब अंबेडकर ने कहा था कि यकीनन यह विभाजन मजहब के आधार पर ही हो रहा है, जो इसको नहीं देख और समझ रहा, वह अंग्रेजी की कहावत के अनुसार ‘फूल्ज पाराडाईज’ में रह रहा है। लेकिन दुर्भाग्य इस बात का था कि जो ‘फूल्ज पाराडाईज’ में रह रहे थे, वही भारत के भाग्य का निर्णय कर रहे थे। अंबेडकर जब समझ गए कि विभाजन तो होगा और वह मजहब के आधार पर ही होगा तो उन्होंने इसके लिए शांतिपूर्ण तरीके से प्रक्रिया भी सुझाई थी। उनका कहना था कि भारत और नए बनने वाले देश पाकिस्तान में से हिंदू, सिख और मुसलमानों को स्थानांतरित कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने यूरोप के कुछ देशों के उदाहरण भी दिए कि किस प्रकार वहां जब मजहब के आधार पर विभाजन हुए तो मुसलमान और ईसाई मजहब के लोगों की शांतिपूर्ण ढंग से अदला-बदली की गई थी। पंडित जवाहर लाल नेहरु, अंबेडकर की यह बात सुनने के लिए भी तैयार नहीं थे। उन्हें अंबेडकर से वैसे ही चिढ़ थी क्योंकि अंबेडकर, नेहरु की बौद्धिक क्षमता पर सदा सवाल उठाते थे। दूसरे नेहरु यह स्वीकार करने को तैयार ही नहीं थे कि कांग्रेस मजहब के आधार पर देश का विभाजन स्वीकार कर रही है। लेकिन वह किस आधार पर देश का विभाजन स्वीकार कर रही है, इसका उत्तर देने को भी नेहरु तैयार नहीं थे। लेकिन इसका उत्तर भी अंबेडकर ने ही दिया है। उन्होंने यह उत्तर 1947 से कई साल पहले दिया था। अंबेडकर का यह आकलन कांग्रेस की विचारधारा, उसकी कार्यपद्धति के गहरे अध्ययन से ही निकला था। अंबेडकर का मत था कि कांग्रेस देश की आजादी के लिए नहीं लड़ रही, बल्कि देश की सत्ता प्राप्ति के लिए लड़ रही है।

नेहरु के चिंतन को देखने के बाद महात्मा गांधी की भी कुछ ऐसी ही राय बनी होगी। यही कारण था कि अंग्रेजों के चले जाने के बाद गांधी ने कहा था कि कांग्रेस को तुरंत भंग कर देना चाहिए। जो लोग अब देश की सत्ता हासिल करना चाहते हैं, उन्हें नए राजनीतिक दल बना कर लोगों के पास जाना चाहिए। कांग्रेस की विरासत पर किसी एक दल का दावा नहीं हो सकता। लेकिन नेहरु ने गांधी जी की इस राय को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। इस पृष्ठभूमि में एक ही निष्कर्ष निकलता है कि नेहरु ने देश का विभाजन केवल जल्दी सत्ता प्राप्त करने के लालच में स्वीकार कर लिया। मुस्लिम लीग को कम से कम यह श्रेय तो दिया जा सकता है कि वह पाखंडी नहीं थी। लेकिन कांग्रेस का आचरण पाखंड से ज्यादा नहीं था। विभाजन मजहब के आधार पर हो रहा था, कांग्रेस विभाजन के समर्थन में भी उतर आई थी, लेकिन यह नहीं मान मान रही थी कि विभाजन मजहब के आधार पर हो रहा था। कांग्रेस के इसी पाखंड में से वे सभी समस्याएं उत्पन्न हुईं जिनका सामना 1947 से लेकर अभी तक करना पड़ रहा है। आठ सौ साल से अरब, तुर्क व मुगल हुक्मरान भारत को इस्लाम पंथ और शिया पंथ में मतांतरित करने के काम में लगे हुए थे। लेकिन बहुत थोड़ी जनसंख्या को ही मतांतरित कर सके। पूरे भारत को मतांतरित करना संभव नहीं था। इसके बाद रणनीति बदली गई। भारत के एक हिस्से की पूर्वी पाकिस्तान व पश्चिमी पाकिस्तान के नाम से घेराबंदी कर दी गई। पाकिस्तान को इस्लामी राष्ट्र घोषित कर दिया गया। पाकिस्तान को लगता था कि इस घेरे में फंसे हिंदू-सिखों को अब इस्लाम में मतांतरित करने में कोई बाधा नहीं आ सकती। लेकिन उनकी इस चाल को वहां के हिंदू-सिखों ने ही असफल कर दिया। वे वहां की घेराबंदी में रहने की बजाय भाग कर भारत आने लगे। अधिकांश हिंदू-सिख पश्चिमी पंजाब से भाग आए लेकिन कुछ लोग विवशताओं के चलते वहां से नहीं आ सके। पश्चिमी पाकिस्तान ने उनकी घेराबंदी कर उन्हें मुसलमान बनाना शुरू कर दिया। अब वहां हिंदू-सिखों की संख्या गिनती की रह गई है। भारत का दूसरा हिस्सा जिसको भारत से अलग कर उसकी घेराबंदी की गई थी, वह पूर्वी बंगाल था। पूर्वी बंगाल और असम के सिलहट को मिला कर पूर्वी पाकिस्तान के नाम से एक अलग घेरा बनाया गया। उसको राजनीतिक लिहाज से पश्चिमी पाकिस्तान के साथ ही रखा गया, जबकि उसका पश्चिमी पाकिस्तान से कुछ संबंध नहीं था।

इसलिए जल्दी ही वह पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के नाम से जाना जाने लगा। इस घेरे को भी इस्लामी देश घोषित कर यहां के हिंदुओं को इस्लाम में मतांतरित किया जाने लगा। कभी इस राजनीतिक घेरे में 22 फीसदी हिंदू-बौद्ध थे लेकिन आज उनकी संख्या सात-आठ प्रतिशत बची है। कुछ भाग कर भारत आ गए हैं या अभी भी आ रहे हैं। जब 1971 में पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के नाम से अलग हो गया, तो बहुत से विद्वान यह सोच कर प्रसन्न थे कि यह हिस्सा पाकिस्तान के घेरे से मुक्त हो गया है और यहां हिंदू-बौद्ध आराम से रह सकेंगे। लेकिन चार साल बाद 1975 में बांग्लादेश में उस समय के प्रधानमंत्री और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की पूरे परिवार सहित हत्या कर दी गई और देश को इस्लामी देश घोषित कर दिया। उनकी पुत्री शेख हसीना इसलिए बच गई थीं, क्योंकि उस समय वे देश में नहीं थीं। लेकिन 2024 में उनकी उसी बेटी को बांग्लादेश की सेना ने पैंतालीस मिनट के अंदर-अंदर देश छोडऩे के लिए आदेश दिया। वे भाग कर हिंदुस्तान पहुंची, लेकिन उनके पिता ऐसा नहीं कर सके थे। अलबत्ता अब उनके पिता बंगबंधु की प्रतिमाएं केवल तोड़ी नहीं जा रहीं, बल्कि उन पर पेशाब किया जा रहा है। हिंदू समुदाय फिर संकट में है। 1947 में हुए विभाजन की विभीषिका अब तक हिंदू समाज भुगत रहा है। बांग्लादेश में हिंसा को रोकने के लिए इंतजाम करने होंगे।

(वरिष्ठ स्तंभकार)

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