विनेश, तुम चैंपियन हो
बिटिया विनेश! तुम ही भारत का ‘गोल्ड’ हो, गौरव और प्रेरणा हो। तुम वाकई योद्धा हो, कुश्ती का आक्रामक जज्बा हो। तुम ही देश का सम्मान और सरताज हो। क्या हुआ, यदि तुम ओलंपिक पदक हासिल नहीं कर पाईं? स्वर्ण और रजत पदक तो स्मृति-चिह्न और खेल के प्रतीक हैं। तुम तो ‘चैम्पियन ऑफ चैम्पियंस’ हो। देश के प्रधानमंत्री ने भी इन्हीं शब्दों में तुम्हारे हुनर को बयां किया है। वह भी पीडि़त और व्यथित हैं। तुम असली चैम्पियन हो, क्योंकि तुमने चार बार की विश्व चैम्पियन एवं टोक्यो ओलंपिक चैम्पियन यूई सुसाकी को चित्त किया है। वह 82 मुकाबलों से अजेय खिलाड़ी थीं। तुमने एक ही दिन में तीन कुश्तियां लड़ीं और यूक्रेन, क्यूबा की महिला पहलवानों को भी पटखनी देकर फाइनल तक पहुंचीं। विनेश! तुम बेमिसाल हो और अभूतपूर्व पहलवान हो, जो मुकाबले के फाइनल दौर में पहुंचीं। तुम्हारी उपलब्धियां ऐतिहासिक हैं और दुनिया के मानस पर अंकित हैं। तुम वाकई अद्वितीय हो। बेशक ओलंपिक खेलों का महाकुंभ है, लेकिन उसके नियम अमानवीय और अतार्किक हैं। यदि विनेश फोगाट का वजन 50 किलोग्राम से 100 ग्राम अधिक हो गया था, तो अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति उसे ‘फाइनल कुश्ती’ के अयोग्य करार दे सकती थी। बेशक नियम तो नियम हैं और भारत भी उनके उल्लंघन का पक्षधर नहीं है, लेकिन विनेश ने तय वजन की परिधि में रहकर ही तीन कुश्तियां लड़ीं और जीतीं। इन उपलब्धियों को कैसे छीना जा सकता है? उनके सम्मानस्वरूप रजत पदक से भी वंचित कैसे किया जा सकता है? यह तो एक किस्म की तानाशाही हुई। क्या ओलंपिक खेल भी ‘एकाधिकारवादी’ हो सकते हैं? रजत पदक की उपलब्धि तक विनेश का वजन लिया गया, तो 49.9 किग्रा था। अधिकतम सीमा 50 किग्रा. के भीतर ही था। ओलंपिक की ज्यूरी ने ही हर बार उन्हें ‘विजेता’ घोषित किया। फिर अयोग्यता का सवाल कहां पैदा होता है? छह बार के विश्व चैम्पियन पहलवान एवं ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता अमरीकी पहलवान जॉर्डन ब्यूरोज ने भी यही सवाल उठाते हुए मांग की है कि विनेश को कमोबेश रजत पदक जरूर दिया जाए। कई कुश्ती विशेषज्ञों और पहलवानों ने भी ऐसे ही आग्रह किए हैं।
सभी विशेषज्ञ गलत हों और ओलंपिक समिति ही सही हो, यह कैसे संभव है? प्रिय विनेश! तुमने ओलंपिक के मंच पर जिस तरह जीत का परचम लहराया है, देश उन दृश्यों का साक्षी रहा है। देश में जश्न और उत्साह का माहौल था। एक बेहद सुंदर सपना साकार होने वाला था कि अचानक सब कुछ धराशायी हो गया, टूट कर बिखर गया। करीब 144 करोड़ की आबादी वाला देश एकदम स्तब्ध हो गया। सन्निपात की सी स्थिति आ गई। मात्र 100 ग्राम के वजन ने करोड़ों की उम्मीदों, उनके सपनों और उनकी खुशियों को एकदम कुचल दिया। बेशक यह असहनीय पीड़ा और व्यथा है, लेकिन विनेश बिटिया! तुम यकीन करना कि हम निराश, हताश, कुंठित नहीं हैं, पराजित भी नहीं हुए हैं। शायद खेल पंचाट न्यायालय का विवेक जाग जाए और वह कोई असंभावित फैसला सुना दे! बहरहाल यह देश अपनी चैम्पियन बेटी के साथ खड़ा है। हालांकि हम साजिश या ओलंपिक के बहिष्कार की नकारात्मक राजनीति और प्रचारवाद के खिलाफ हैं। विनेश को भी ये प्रवृत्तियां स्वीकार्य नहीं होंगी, लेकिन कुछ बुनियादी सवाल तो हैं कि अचानक वनज बढक़र 49.9 किग्रा. से 52.7 किग्रा. कैसे हो गया? क्या डाइट में कुछ लापरवाही हुई? या हेवी डाइट दे दी गई? क्या विनेश की निजी टीम ने ध्यान नहीं दिया अथवा विनेश ने ही डाइट ज्यादा ले ली? बेशक विनेश ने रात भर वजन घटाने की कई कोशिशें कीं। खून तक निकाला गया, बाल काटने पड़े, सॉना बाथ लिया, लेकिन वजन अचानक ठहर गया और अयोग्यता का आधार बना दिया। पुराने पहलवान बताते हैं कि वजन जहां रुक जाता है, तो पसीना आना भी बंद हो जाता है। विनेश के लिए भी ऐसी ही स्थितियां बन गईं। इन सवालों और कथित लापरवाहियों की जांच तो जरूर की जानी चाहिए और सभी जवाब देश के सामने रखे जाने चाहिए। फिलहाल विनेश अपनी लड़ाई को पूरा करे, लेकिन देश की इच्छा है कि वह कुछ अंतराल के बाद अगले सफर पर निकलने का मन जरूर बनाएं। विनेश कई पीढिय़ों की प्रेरणा हैं, वे साकार रहनी चाहिए। बाद में आई खबरों के अनुसार विनेश ने कुश्ती से संन्यास ले लिया है। अब वह कुश्ती के मुकाबलों में दिखाई नहीं देंगी। यह देखा जाना चाहिए कि कहीं हताश होकर उन्होंने यह फैसला तो नहीं लिया है?
बिटिया विनेश! तुम ही भारत का ‘गोल्ड’ हो, गौरव और प्रेरणा हो। तुम वाकई योद्धा हो, कुश्ती का आक्रामक जज्बा हो। तुम ही देश का सम्मान और सरताज हो। क्या हुआ, यदि तुम ओलंपिक पदक हासिल नहीं कर पाईं? स्वर्ण और रजत पदक तो स्मृति-चिह्न और खेल के प्रतीक हैं। तुम तो ‘चैम्पियन ऑफ चैम्पियंस’ हो। देश के प्रधानमंत्री ने भी इन्हीं शब्दों में तुम्हारे हुनर को बयां किया है। वह भी पीडि़त और व्यथित हैं। तुम असली चैम्पियन हो, क्योंकि तुमने चार बार की विश्व चैम्पियन एवं टोक्यो ओलंपिक चैम्पियन यूई सुसाकी को चित्त किया है। वह 82 मुकाबलों से अजेय खिलाड़ी थीं। तुमने एक ही दिन में तीन कुश्तियां लड़ीं और यूक्रेन, क्यूबा की महिला पहलवानों को भी पटखनी देकर फाइनल तक पहुंचीं। विनेश! तुम बेमिसाल हो और अभूतपूर्व पहलवान हो, जो मुकाबले के फाइनल दौर में पहुंचीं। तुम्हारी उपलब्धियां ऐतिहासिक हैं और दुनिया के मानस पर अंकित हैं। तुम वाकई अद्वितीय हो। बेशक ओलंपिक खेलों का महाकुंभ है, लेकिन उसके नियम अमानवीय और अतार्किक हैं। यदि विनेश फोगाट का वजन 50 किलोग्राम से 100 ग्राम अधिक हो गया था, तो अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति उसे ‘फाइनल कुश्ती’ के अयोग्य करार दे सकती थी। बेशक नियम तो नियम हैं और भारत भी उनके उल्लंघन का पक्षधर नहीं है, लेकिन विनेश ने तय वजन की परिधि में रहकर ही तीन कुश्तियां लड़ीं और जीतीं। इन उपलब्धियों को कैसे छीना जा सकता है? उनके सम्मानस्वरूप रजत पदक से भी वंचित कैसे किया जा सकता है? यह तो एक किस्म की तानाशाही हुई। क्या ओलंपिक खेल भी ‘एकाधिकारवादी’ हो सकते हैं? रजत पदक की उपलब्धि तक विनेश का वजन लिया गया, तो 49.9 किग्रा था। अधिकतम सीमा 50 किग्रा. के भीतर ही था। ओलंपिक की ज्यूरी ने ही हर बार उन्हें ‘विजेता’ घोषित किया। फिर अयोग्यता का सवाल कहां पैदा होता है? छह बार के विश्व चैम्पियन पहलवान एवं ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता अमरीकी पहलवान जॉर्डन ब्यूरोज ने भी यही सवाल उठाते हुए मांग की है कि विनेश को कमोबेश रजत पदक जरूर दिया जाए। कई कुश्ती विशेषज्ञों और पहलवानों ने भी ऐसे ही आग्रह किए हैं।
सभी विशेषज्ञ गलत हों और ओलंपिक समिति ही सही हो, यह कैसे संभव है? प्रिय विनेश! तुमने ओलंपिक के मंच पर जिस तरह जीत का परचम लहराया है, देश उन दृश्यों का साक्षी रहा है। देश में जश्न और उत्साह का माहौल था। एक बेहद सुंदर सपना साकार होने वाला था कि अचानक सब कुछ धराशायी हो गया, टूट कर बिखर गया। करीब 144 करोड़ की आबादी वाला देश एकदम स्तब्ध हो गया। सन्निपात की सी स्थिति आ गई। मात्र 100 ग्राम के वजन ने करोड़ों की उम्मीदों, उनके सपनों और उनकी खुशियों को एकदम कुचल दिया। बेशक यह असहनीय पीड़ा और व्यथा है, लेकिन विनेश बिटिया! तुम यकीन करना कि हम निराश, हताश, कुंठित नहीं हैं, पराजित भी नहीं हुए हैं। शायद खेल पंचाट न्यायालय का विवेक जाग जाए और वह कोई असंभावित फैसला सुना दे! बहरहाल यह देश अपनी चैम्पियन बेटी के साथ खड़ा है। हालांकि हम साजिश या ओलंपिक के बहिष्कार की नकारात्मक राजनीति और प्रचारवाद के खिलाफ हैं। विनेश को भी ये प्रवृत्तियां स्वीकार्य नहीं होंगी, लेकिन कुछ बुनियादी सवाल तो हैं कि अचानक वनज बढक़र 49.9 किग्रा. से 52.7 किग्रा. कैसे हो गया? क्या डाइट में कुछ लापरवाही हुई? या हेवी डाइट दे दी गई? क्या विनेश की निजी टीम ने ध्यान नहीं दिया अथवा विनेश ने ही डाइट ज्यादा ले ली? बेशक विनेश ने रात भर वजन घटाने की कई कोशिशें कीं। खून तक निकाला गया, बाल काटने पड़े, सॉना बाथ लिया, लेकिन वजन अचानक ठहर गया और अयोग्यता का आधार बना दिया। पुराने पहलवान बताते हैं कि वजन जहां रुक जाता है, तो पसीना आना भी बंद हो जाता है। विनेश के लिए भी ऐसी ही स्थितियां बन गईं। इन सवालों और कथित लापरवाहियों की जांच तो जरूर की जानी चाहिए और सभी जवाब देश के सामने रखे जाने चाहिए। फिलहाल विनेश अपनी लड़ाई को पूरा करे, लेकिन देश की इच्छा है कि वह कुछ अंतराल के बाद अगले सफर पर निकलने का मन जरूर बनाएं। विनेश कई पीढिय़ों की प्रेरणा हैं, वे साकार रहनी चाहिए। बाद में आई खबरों के अनुसार विनेश ने कुश्ती से संन्यास ले लिया है। अब वह कुश्ती के मुकाबलों में दिखाई नहीं देंगी। यह देखा जाना चाहिए कि कहीं हताश होकर उन्होंने यह फैसला तो नहीं लिया है?
सियासी मियार की रीपोर्ट