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जन्माष्टमी पर्व (26 अगस्त) पर विशेष: कलियुग में श्रीराम एवं श्रीकृष्ण भगवन्नाम से मोक्ष..

जन्माष्टमी पर्व (26 अगस्त) पर विशेष: कलियुग में श्रीराम एवं श्रीकृष्ण भगवन्नाम से मोक्ष..

-डॉ.नरेन्द्रकुमार मेहता-

मानस शिरोमणि एवं विद्यावाचस्पति
कहा कहौं छबि आजकी भले बने हो नाथ।
तुलसी मस्तक तब नवै धनुष-बान लो हाथ। ।
एक सच्चे भक्त का स्मरण करते ही भगवान की भक्तवत्सलता को शब्दों में वर्णन करना बड़ा ही कठिन कार्य है। भगवान् श्रीकृष्ण ने गोस्वामी तुलसीदासजी की भक्ति देखकर अपने स्वरूप प्रतिमा को धनुष-बाण हाथों में पकड़े भगवान श्रीराम की प्रतिमा में परिवतर्तित कर दिया। गोस्वामी तुलासीदासजी सरीखे भक्त दुर्लभ होते हैं जो एकनिष्ठ भी हों एवं साथ ही साथ अन्य भगवत्-स्वरूपों के प्रति पूर्ण श्रद्धा विश्वास सम्पन्न हो। संक्षिप्त में कह सकते हैं कि भगवान् के अवतारों में श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों ही समान एवं एक ही हैं। इनमें कोई किसी से न बड़ा है न तो छोटा ही है। हम जिस श्रद्धा आस्था और विश्वास से स्मरण करते हैं वे वैसे ही भक्त की मनोकामना पूर्ण करने हेतु दौड़ पड़ते हैं।
भगवान् दोनों रूपों में सदैव वचन निभाते हैं फिर भेद बुद्धि का क्या काम? सच्चे भक्त के हृदय में पहले तो भेदभाव आता ही नहीं है और यदि आ भी जाता है तो प्रभु अपनी माया एवं कृपा पूर्वक तत्काल उसका भ्रम निवारण कर देते है। ऐसा ही गोस्वामी तुलसीदासजी के समक्ष मथुरा में भगवान् कृष्ण की सुन्दर छवि एवं मनोहर प्रतिमा ने दर्शन दिये तथा उन्हें अपना श्रीराम के रूप में एक साथ दर्शन दे ही दिये भगवान् राम एवं भगवान् कृष्ण दोनों अवतारों को परस्पर देखने पर उनमें प्रायः समानताएं ही दिखाई देती हैं। दोनों ने ही भक्त की शरणागत वत्सलता सिद्ध की है। भगवान राम ने कहा –
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम। ।
वाल्मीकिरामायण 6-18-33
जो एक बार भी शरण में आकर ‘‘मैं तुम्हारा हूँ’’ ऐसा कहकर मुझसे रक्षा की प्रार्थना करता है, उसे में समस्त प्राणियों से अभय कर देता हूँ। यह मेरा सदा के लिये व्रत है। यहीं बात श्रीकृष्ण ने गीता में कहीं है –
सर्वधर्मान्पिरित्यज्य मामेकं शरणा व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः। ।
अर्थात् सम्पूर्ण धर्मो के आश्रय (अर्थात् क्या करना है, क्या नहीं करना, इस विचार) का त्याग करके एक मात्र मेरी शरण में आ जा मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा शोक मत कर। श्रीमद् भगवद्गीता 18-66
दोनांे ही श्रीराम एवं श्रीकृष्ण सदैव वचन ही नहीं निभाते हैं अपितु भक्त की रक्षा भी करते हैं। अतः इन दोनों भगवान् के अवतारों में अनेक समानताएं प्राप्त होती है।
दोनो अवतारों में समानताएं
ऽ समानता का विषय श्रीराम श्रीकृष्ण
ऽ वंश सूर्यवंश चन्द्रवंश
ऽ कुल इक्ष्वाकु वृष्णि
ऽ पिता श्रीदशरथ श्रीवासुदेव
ऽ माता कौसल्या देवकी
ऽ कुलगुरू महर्षि वसिष्ठ महर्षि गर्ग
ऽ शिक्षण गुरू महर्षि वसिष्ठ सांदीपनि
ऽ मुख्य शक्ति श्री सीता राधा रूक्मिणी आदि
ऽ पुत्र लव, कुश प्रद्युम्न, साम्ब आदि
ऽ मुख्य उपदेश पात्र लक्ष्मण, हनुमान अर्जुन, उद्धव
ऽ आदि चरित्र कवि वाल्मीकि वेद व्यास
ऽ अवतार मुख्य उद्द्ेश्य राक्षसों एवं रावण बध कंस वध
ऽ उपाधि मर्यादा पुरूषोत्तम लीला पुरूषोत्तम
ऽ कलाएँ ’ बारह सोलह
ऽ युग त्रेता द्वापर
ऽ उपस्थिति समय युगान्त युगान्त
ऽ जन्मतिथि चैत्र शुक्ल 9 भाद्रकृष्ण 8
ऽ जन्म का वार सोमवार बुधवार
ऽ जन्म का नक्षत्र पुनर्वसु 4 रोहिणी 3
ऽ जन्म लग्न कर्क वृष
ऽ जन्मराशि कर्क वृष
ऽ जन्म का समय मध्यान्ह 12 बजे रात्रि 12 बजे
ऽ जन्म स्थान दशरथजी का महल कंस का कारागृह
ऽ जन्म भूमि अयोध्या मथुरा
ऽ रंग नीलश्यामल नीलश्यामल
ऽ वर्ण क्षत्रिय क्षत्रिय
ऽ शासन अयोध्या द्वारका
ऽ लीला संवरण सरयु तट पीपल वृक्ष के नीचे
’ भगवान् श्रीकृष्ण के 16 कलाओं के अवतार थे अतः श्रीराम की तुलना में न्यून समझना हमारी अज्ञानता होगी।

वस्तुतः भगवान् के किसी भी अवतार में चेतना के उतने ही अंश (कलाएँ) प्रकट होते हैं जितने की आवश्यकता होती है। स्थितियाँ जितनी अधिक विषम होती है, उतनी कलाओं सहित भगवान् का अवतार होता है ऐसा मात्र अभिव्यक्ति में होता है अवतार की सामर्थ्य समान रहती है। त्रेतायुग में धर्मरूप वृषभ के तीन पैर पवित्रता, दया तथा सत्य थे जबकि द्वापर में उसके मात्र दया, सत्य नामक दो ही पैर शेष रहे थे। त्रेतायुग की अपेक्षा द्वापर युग में समाज किस रूप में पतित हो चुका था, इसका सांगोपांग वर्णन महर्षि वाल्मीकि रामायण तथा महाभारत में स्पष्ट देखा जा सकता है। ये ही कारण था कि भगवान् श्रीकृष्ण को श्रीराम की 12 के स्थान पर 16 अधिक कलाए अभिव्यक्त करना नितांत आवश्यक था।
अंत में हमें दोनों श्रीराम एवं श्रीकृष्ण भगवान् की एकरूपता का षोडश नाम महामंत्र का कलियुग में नाम स्मरण कर मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग प्राप्त कर सकते है।
षोडश नाम – महामंत्र
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। ।

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