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शिक्षा और शिक्षक पर चिंतन का दिन….

शिक्षा और शिक्षक पर चिंतन का दिन….

-निखिल शर्मा-

गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे हमें इस दुनिया में लेकर आते हैं। इसलिए जीवन में सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही सीखने के लिए गुरु व शिष्य परंपरा चली आ रही है और अभी तक भी जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं और सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करते हैं। अध्यापक को देश का निर्माता कहा जाता है, क्योंकि समाज में बदलाव, विकास में प्रगति, अच्छा जीवन जीने की कला तथा शांति, मैत्री, बंधुत्व विश्व में अच्छे शिक्षकों द्वारा ही संभव हो सका है। शिक्षक, जो बच्चों को पढ़ा सके, जो समाज को नेतृत्व दे सके, जो अच्छा जीवन जीने के लिए वातावरण तैयार कर दे, जो विश्व में मैत्री, शांति और बंधुत्व स्थापित कर दे, उन सभी को ही शिक्षक माना जाता है। अध्यापकों का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व होता है। जो शिक्षक बच्चों को जीवन जीने का सलीका सिखा सके, समाज को नेतृत्व दे सके, ऐसे ही शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम हुए हैं जिन्होंने देश को सीखने व जल्द विकसित होने की भूख पैदा की है।

जवान भारत में लाखों विद्यार्थी ऐसे अच्छे अध्यापकों का इंतजार बेसब्री से कर रहे हैं। शिक्षक के दायरे में केवल बच्चों को किताबी ज्ञान बांटना या फिर सीखने के प्रतिफल को कक्षा कक्ष में उतारना ही नहीं बल्कि विद्यार्थियों में जीवन कौशलों का विकास करते हुए उन्हें आधुनिक जीवन के संघर्ष से अवगत कराना और नशे से बचाना भी शामिल है। अध्यापक दिवस पर अध्यापकों से नई उभरती हुई अपेक्षाएं व चिंताएं भी हैं। नई शिक्षा नीति, नई पाठ्यचर्या एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकास तुरंत व महत्वपूर्ण ध्यान चाहते हैं। यह उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण, विश्व व्यापार संगठन, बहिस्त्रोतीकरण, सूचना एवं संचार तकनीकी, नव शैक्षिक प्रयोग, खुली अधिगम प्रणाली, जीवन कौशलों का विकास आदि विशेषताएं शिक्षकों में विशेष तौर पर अपेक्षित रहेंगी। किसी भी देश के अध्यापक तथा वहां की शिक्षा नीति पर यह निर्भर करता है कि उस देश का विकास मानव विकास में परिवर्तित हो और विद्यालय ही एक ऐसी जगह है, जहां से यह संभव है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 अध्यापकों के मानकों को बढ़ाने एवं वर्तमान स्थिति में परिवर्तन की कल्पना करती है। शिक्षकों से यह अपेक्षा है कि वे पढ़ाने व लेक्चर देने के बजाय फैसिलिटेटर और मैंटर के रूप में कार्य करें। अध्यापक कक्षा कक्ष में इस तरह से सिखाएं कि बच्चों के बीच रचनात्मक, जिज्ञासा, ज्ञान व सूचना की भूख बढ़े। शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रचार व प्रसार एवं बच्चों में इसकी लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों से यह अपेक्षा है कि वे डिजिटल रूप से भी साक्षर हों और कक्षा कक्ष में इंटरनेट व कंप्यूटर के माध्यम से बच्चों को प्रतिदिन पढ़ाएं व सिखाएं ताकि सीखने के मानकों (स्टैंडर्ड) में प्रगति सुनिश्चित की जा सके और अध्यापक बच्चों में समग्र विकास की लौ जगा सकें। यह तभी संभव है जब अध्यापकों की पढऩे व सिखाने में रुचि निरंतर बनी रहे। यह सब करने से ही शिक्षक का सम्मान बरकरार रह सकता है। अध्यापक प्रशिक्षण में अच्छे प्रशिक्षकों की कमी तथा प्रशिक्षण को कक्षा कक्षा से ले जाने से लेकर कक्षा कक्ष में उतारने तक कार्यक्रम की कमी और निगरानी में लचर व्यवस्था हमें नार्वे एवं फिनलैंड जैसे विकसित देशों से पीछे धकेलती है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की रिपोर्ट के अनुसार लक्जमबर्ग में दुनिया में सबसे अधिक वेतन पाने वाले शिक्षक हैं। इसके अतिरिक्त स्विट्जरलैंड, जर्मनी, नॉर्वे, डेनमार्क, अमरीका, मैक्सिको, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड हैं, जहां शिक्षकों को सबसे ज्यादा सैलरी मिलती है और वे अपने आप को सम्मानित महसूस करते हैं। इन देशों के अध्यापकों के पढ़ाने और सिखाने के तरीके भी भिन्न हैं। यहां अध्यापक विद्यालय व कक्षा कक्ष में जाने से पहले पूरी तैयारी करते हैं। अध्यापक को बच्चों से पहले आकर पढ़ाने की तैयारी करनी होती है। इसीलिए उनका आदर सम्मान बरकरार है और हिमाचल के सरकारी स्कूलों से इसकी उम्मीद इंतजार में है। अनुसंधान व ज्ञानरहित अध्यापक का पाठ बच्चों के दिमाग के ऊपर ज्ञान लादने का ही कार्य कर सकता है, उन्हें कुशाग्र बुद्धि वाला नहीं बना सकता। पिछले दो दशकों में पढऩे-पढ़ाने की विभिन्न विधाओं में परिवर्तन आए हैं और अभी भी प्रयास जारी हैं। देश भर में लाखों शिक्षक विभिन्न कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं। क्या वे सभी शिक्षक शिक्षा को बच्चों के व्यावहारिक जीवन में उतारने में कामयाब हो रहे हैं या नहीं? जैसे-जैसे विकास, विज्ञान और तकनीक आगे बढ़े हैं तथा प्रभावित हुए हैं, घर से लेकर विद्यालय तक परिवर्तन ए हैं, इंटरनेट, मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरएक्टिव बोर्ड सरीखी आधुनिक सहूलियतों से कक्षा कक्ष एवं पढ़ाने के तरीकों में परिर्वतन आवश्यक है।

बाहरी परिवर्तन के समकक्ष अपने विद्यालय एवं कक्षा कक्ष, अध्यापकों की सोच, उनके ज्ञान, सूचना, विवेक, सशक्तिकरण व पढ़ाने के मानक स्तरों में भी सकारात्मक बदलाव की अपेक्षा है। ढांचागत विकास के साथ मानव विकास को प्रभावी बनाना आवश्यक है। इसलिए शिक्षक को अपना सशक्तिकरण करना आवश्यक है, नहीं तो वह सरकारी कक्षाओं में ज्यादा देर तक टिक नहीं सकेगा और शिक्षक का सम्मान धूमिल होगा। पांच सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर भारत में शिक्षकों के सम्मान के रूप में प्रत्येक शिक्षण संस्थान में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। प्रत्येक राज्य सरकार प्रति वर्ष अपने उत्कृष्ट अध्यापकों को सम्मानित करती है, ताकि सभी अध्यापक अपने काम की गरिमा को पहचानें और प्रोत्साहित हों। हिमाचल प्रदेश ने शिक्षक पुरस्कार चयन प्रक्रिया में कई सराहनीय बदलाव किए हैं ताकि अच्छे शिक्षक इसमें चयनित हो सकें। शिक्षक दिवस इस चिंतन के लिए एक बेहतर समय है कि शिक्षकों का सम्मान कैसे बरकरार रखा जाए और शैक्षणिक कार्य को कैसे रोचक बनाया जाए।

(लेखक शिक्षाविद है)

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