स्कूल के वे दिन..

स्कूल के वे दिन
जब होता था
कंधोँ पर बस्ता
नन्हीँ अंगुलियाँ
उखेरती थी अक्षर
स्कूल न जाने की
जब भी करता जिद
माँ मानती समझाती
स्कूल छोडने आती
घर पर मेरी ही चलती
एक अकेला बेटा था
हर जिद पूरी होती
ये आंखेँ कभी नहीँ रोती
लेकिन आज वो स्कूल
और स्कूल के वे दिन
दोनोँ बन गये है अतीत
समय के आगे हुये चीत
यादोँ के गुलदस्ते मेँ
यादोँ के फूल बनकर रह गये
अब माँ बूढी हो गयी
उनकी लाठी बन गया मैँ
जो कभी मेरी अंगुली
पकडती
आज मैँ उनकी अंगुली
पकडता हूँ
समय बदला लेकिन
दृश्य आज फिर दोहराया
फर्क इतना आ गया
माँ की जगह मैँ और
मेरी जगह माँ आ गयी।।
सियासी मीयर की रिपोर्ट
Siyasi Miyar | News & information Portal Latest News & Information Portal