काल कोठरी की तीन दीवारें..

होती है जब सुबह
मैं लड़ूंगा आखिरी दम तक
दीवार का
कोई न कोई हिस्सा तो खाली होगा
इस्तेमाल कर सकता हूं जिसे
कागज की तरह
गलीं नहीं
उंगलियां साबुत हैं और भी
आती है आवाज
दीवार के पार से
गुपचुप सन्देश
धागों जैसी हमारी नसें
हमारी नसों जैसी पत्थरों की नसें
हमारा खून उबलता है
बेजान पत्थरों की नसों में
रह रह आते हैं सन्देश
दीवार के पार से
फिर बन्द हुई एक कोठरी
फिर मार दिया गया कोई कैदी
फिर खुलती है एक कोठरी
फिर लाया गया कोई कैदी।।
सियासी मीयार की रिपोर्ट
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