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कहानी : सहारा..

कहानी : सहारा..

-अनामिका शाक्य-

राहुल को आज एम.बी.बी.एस. डॉक्टर के रूप में देखकर सावित्री देवी की आँखों में खुशी के आँसू आ गये थे। उसे लग रहा था कि उसके दिल के सारे अरमान सच्चाई में बदल गये हों और उसकी बरसों की प्रतीक्षा आज पूरी होकर खुशियों का राग गाने लगी हो।

सावित्री देवी हमेशा इसी ख्वाब में डूबी रहती कि न जाने कब उसका अपना ही बेटा राहुल डाक्टर बनकर आयेगा जिसे वह अपने गले से लगा लेगी। वर्षों पुराना उसका सपना आज हकीकत में बदलकर उसके सामने खड़ा हो गया था तो अपने बेटे राहुल को देखकर उसके मन में वर्षों पुरानी यादों के पन्ने एक-एक कर पलटने लगे थे।

सावित्री देवी का विवाह एक अच्छे व्यक्ति रामसिंह के साथ हुआ था। सावित्री देवी और रामसिंह का वैवाहिक जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। शादी के कुछ ही वर्षों बाद राहुल का जन्म हुआ। राहुल को वे दोनों बहुत प्यार करते थे। सही मायने में राहुल ही उनके सपनों का संसार था। उन दोनों को दुनिया की सारी खुशियाँ राहुल में ही नजर आती थीं। हर माँ बाप यही चाहता है कि उसके बेटे-बेटी ऊँचे-ऊँचे पदों पर पहुँचें और सफलता के आसमान छू लें।

अचानक ऐसा कुछ हुआ कि सावित्री देवी की खुशियों की दुनिया उजड़ने लगी थी। उसके पति रामसिंह पर गरीबी के बादल तो मड़राने ही लगे थे साथ ही साथ उसे कैंसर भी हो गया था। रामसिंह को जीवन में एक ही शौक लगा था। वह था तम्बाकू खाने का। इस तम्बाकू को खाते-खाते उसे यह पता भी न चला कि तम्बाकू उसे ही खाने लगी है। जब डॉक्टरों ने घोषित कर दिया कि उसे कैंसर हो गया है तो सावित्री देवी पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा था। सावित्री देवी ने रामसिंह के इलाज के लिए क्या नहीं किया? उसने अपने सारे गहने बेच डाले थे और मकान बेचकर किराये के मकान में रहने लगी थी। वह मुम्बई तक अपने पति का इलाज कराने गयी।

गरीबी के कारण सावित्री देवी हार मान गयी थी और अपने पति का इलाज अच्छे डॉक्टरों से नहीं करवा पा रही थी। सावित्री देवी डॉक्टरों के आगे जाकर खूब गिड़गिड़ाती पर वे पत्थर दिल डॉक्टर बिना पैसे के इलाज करने को तैयार न होते। वह रात दिन अपने पति के पास बैठी आँसू बहाती रहती और रामसिंह अपनी और सावित्री देवी की मजबूरियों को समझता रहता। धीरे-धीरे रामसिंह का गाल गलता जा रहा था और रामसिंह को महसूस होने लगा था कि उसका अंतिम समय पास आता जा रहा है। एक दिन उसने सावित्री देवी से कहा, ‘‘सावित्री! मुझे इस बात का बेहद अफसोस है कि मैं तुम्हारा साथ छोड़े जा रहा हूँ…. तुम राहुल का सहारा बनकर उसे खूब पढ़ाना और मेरी अंतिम इच्छा यही है कि तुम उसे डॉक्टर बनाना।’’ यह सुनकर सावित्री देवी एक बार फिर रो पड़ी थी।

रामसिंह ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘अरे सावित्री! आँसू मत बहाओ…. तुम यदि टूट गयीं तो राहुल का क्या होगा…. अभी तक तो तुम राहुल की माँ थीं अब तुम्हें उसका पिता भी बनना है….. मेरा विश्वास है कि मेरा राहुल एक दिन गरीबों का सहारा अवश्य बनेगा….. मुझसे वादा करो सावित्री कि तुम मेरे इस सपने को पूरा करोगी।’’ इतना कहकर रामसिंह की साँसें रुक गयीं और वह इस दुनिया से विदा हो गया।

राहुल जो मात्र दो साल का था क्या समझता इन बातों का मतलब। सावित्री को रामसिंह की मौत के बाद किस कदर गरीबी और बदहाली से जूझना पड़ा था यह तो कोई भुक्तभोगी ही समझ सकता है। राहुल की खातिर उसने क्या-क्या नहीं झेला। उसे नौकरानी बनकर भी काम करना पड़ा था। मात्र बीस साल की उम्र में उसका पति उसे सुहागिन से विधवा बना गया था। वह सुन्दर तो थी ही उसकी जवानी उसकी सुन्दरता में चार चाँद और लगा रही थी। पूरा समाज उसे खा जाने वाले अंदाज में देखता था किन्तु सावित्री देवी कभी अपने पथ से विचलित न हुई। मेहनत-मजदूरी करती हुई वह राहुल को पढ़ाती रही। कभी-कभी तो आलम यह होता कि उसे भूखे ही सो जाना पड़ता था। लोग उस पर ताने कसते, कभी-कभी गालियाँ भी देते पर वह किसी की परवाह न करती हुई दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर निरन्तर अपने काम में लगी रहती और राहुल की पढ़ाई में किसी तरह की कोताही न बरतती। लोग उसका मजाक बनाते और कहने लगते, ‘‘डॉक्टर बनाने चली है….. झोपड़ी में रहकर महल के सपने देख रही है….. लाखों रुपया खर्च होता है डॉक्टर बनने में….. डॉक्टर बनना सरल ही हो तो हर कोई डॉक्टर न बन जाये।’’

सावित्री देवी की मेहनत तब रंग लाने लगी थी जब राहुल मन लगाकर पढ़ने लगा था। खाली समय में वह भी ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई और किताबों के लिए कुछ न कुछ पैसे जुटा लेता था। परीक्षा में जब वह बहुत अच्छे अंकों से पास होता तो बड़े-बड़े पैसे वाले लोगों को उससे जलन होने लगती थी। राहुल का कुशाग्र बुद्धि का निकलना सावित्री देवी के लिए वरदान साबित हुआ था।

आज उसका बेटा शहर का नामी गिरामी डॉक्टर बन गया था। उसके निजी अस्पताल में मरीजों और तीमारदारों का ताँता लगा ही रहता था। न जाने कितने कैंसर के मरीज वह अपने इलाज से ठीक कर चुका था। उसने अपने निजी अस्पताल का नाम सावित्री नर्सिंग होम रखा था जो सावित्री देवी के संघर्षों की कहानी कहता था। उसकी माँ अतीत के पन्नों में उलझी हुई थी तभी राहुल ने उसे पूछ ही लिया, ‘‘माँ क्या सोच रही हो?’’

‘‘अरे कुछ भी तो नहीं!’’ चौंकते हुए सावित्री देवी ने गले लगा लिया और कहा, ‘‘बेटा तूने अपने पिता जी का बरसों पुराना सपना आज साकार कर दिया है।

राहुल ने कहा, ‘‘नहीं माँ उस सपने को साकार करने के पीछे जो मेहनत और जो विश्वास लगें हैं वे सब आपके हैं।…. आपने ही तो मेरा सहारा बनकर मुझे कभी टूटने नहीं दिया और कभी बिखरने नहीं दिया यह सब उसी का परिणाम ही है….. आपके बिना तो मैं इस सहारे की कल्पना भी नहीं कर सकता था।’’

तभी सावित्री देवी बोली, ‘‘बेटा तेरा बापू भी यही चाहता था कि तू डॉक्टर बनकर गरीबों का सहारा बने जिससे किसी और का बाप पैसे के अभाव में इलाज न हो पाने से न मरे।’’

इतना कहते-कहते उसकी आँखें एक बार फिर गीली हो गयी थी।

‘‘माँ! पिता जी चाहते थे वैसा ही होगा…. मैं अपने नर्सिंग होम में आये किसी भी कैंसर के मरीज को पैसे के अभाव में मरने नहीं दूँगा।’’ सावित्री देवी की आँखें खुशी से भर गयी और उन्होंने राहुल को अपने गले लगा लिया।

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