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पुस्तक समीक्षा : सुधा मूर्ति, काॅमन येट अनकाॅमन…

पुस्तक समीक्षा : सुधा मूर्ति, काॅमन येट अनकाॅमन…

हम सबकी जिंदगी में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो साधारण लगते हुए भी असाधारण होते हैं। प्रख्यात लेखिका और इंफोसिस फाउंडेशन की चेयर पर्सन सुधा मूर्ति ने अपने जीवन में आए ऐसे 14 अविस्मरणीय किरदारों की कहानियां अपनी किताब ‘साधारण, फिर भी असाधारण’ में प्रस्तुत की हैं, जो अंग्रेजी में लिखी उनकी किताब ‘कॉमन येट अनकॉमन’ का हिंदी अनुवाद है। हर कहानी अपने आप में अनूठी है और इतनी सरल भाषा में लिखी गई है कि सीधे दिल में उतर जाती है। इनको पढ़ते हुए अनायास ही हिंदी की नामचीन साहित्यकार महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों की याद आ जाती है। महादेवी के रेखाचित्रों में हालांकि उनकी केंद्रीय उपस्थिति रहती है, जबकि बकौल सुधा मूर्ति, वे नलिनी नामक पात्र के रूप में इस किताब के हर अध्याय के अंदर और बाहर झांकती हुई दिखाई देती हैं। कभी एक छोटी बच्ची के रूप में, कभी एक नवयुवती के रूप में तो कभी एक विवाहित स्त्री के रूप में।

यह कहानियां इतनी सजीव लगती हैं जैसे हम उन्हें जी रहे हों। चाहे वह बड़बोले बंडल बिंदु हों, अनाड़ी दुकानदार जयंत हों, जलनखोर जानकी, जिद्दी गंगा, सबकी मदद के लिए तत्पर रहने वाली हेमा हो, पार्वती और बाणभट्ट का स्तब्ध कर देने वाला प्रेम हो, कंजूस जीवराज, सुपर शेफ अंबा हों या किसी फिल्मकार की कल्पना को भी मात देने वाली अविश्वसनीय लगती शारदा की प्रेम कहानी, हर पात्र अपने आप में अद्वितीय है। अद्भुत तो यह है कि ‘लंच बॉक्स नलिनी’ नामक अध्याय में लेखिका ने अपना व्यक्तिचित्र भी इतने मजेदार लहजे में खींचा है कि पढ़कर दंग रह जाना पड़ता है। लेखिका की हास्यवृत्ति (सेंस ऑफ ह्यूमर) का अंदाजा उनके इसी कथन से लगाया जा सकता है कि ‘मजाक करने का सबसे अच्छा तरीका है कि किसी और का नहीं, बल्कि अपना मजाक उड़ाया जाए।’

प्राय: हर व्यक्ति को इस तरह की विशिष्टताओं वाले पात्र अपने जीवन में मिलते हैं, पर वर्षों के कालखंड में फैले उनके अनुभवों को चंद शब्दों में समेटना सबके बस की बात नहीं होती। लेखिका ने यह काम इतने सजीव ढंग से किया है कि उनकी लेखनी की दाद देनी पड़ती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि किताब का यह हिंदी अनुवाद कहीं से भी अनुवाद जैसा नहीं लगता और पाठक को मूल कृति पढ़ने जैसा ही आस्वाद मिलता है। इसके लिए किताब की अनुवादक यामिनी रामपल्लीवार बधाई की पात्र हैं। किताब का प्रकाशन पेंगुइन स्वदेश ने किया है।

-हेमधर शर्मा

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