धर्मांतरित लोगों को एससी दर्जा देने पर विचार के लिए आयोग बनाने के केंद्र के फैसले को चुनौती..
नई दिल्ली, । उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर सरकार के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसके तहत उन लोगों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने के विषय पर गौर करने के लिए पूर्व प्रधान न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया है जो दावा करते हैं कि वे मूलत: अनुसूचित जाति से हैं लेकिन उन्होंने ईसाई या इस्लाम धर्म अपना लिया है।
संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (समय-समय पर संशोधित) में कहा गया है कि हिंदू या सिख धर्म या बौद्ध धर्म के अलावा कोई अन्य धर्म मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है।
वकील प्रताप बाबूराव पंडित द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि वह महार समुदाय से संबंधित हैं और अनुसूचित जाति के ईसाई हैं। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि केंद्र सरकार ने वर्षों तक कई आयोगों का गठन किया है और एक नए आयोग के गठन से उच्चतम न्यायालय में इस मुद्दे की सुनवाई में और देरी होगी।
उच्चतम न्यायालय में पहले से ही कई याचिकाएं हैं जो 2004 में दायर की गई थीं।
याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता परेशान है क्योंकि मुख्य रिट याचिका (सिविल) संख्या 180/2004 और संबंधित याचिकाएं 18 वर्षों से लंबित हैं। याचिकाकर्ता को आशंका है कि यदि वर्तमान आयोग को अनुमति दी जाती है, तो मुख्य याचिका पर सुनवाई में देरी हो सकती है जिससे अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अपूरणीय क्षति हो सकती है, जिन्हें पिछले 72 साल से अनुसूचित जाति के विशेषाधिकार से वंचित रखा गया है।’’
वकील फ्रैंकलिन सीजर थॉमस के जरिए दायर याचिका में कहा गया है, इसका असर प्रभावित समुदाय के मौलिक अधिकारों पर भी पड़ रहा है एवं अनुच्छेद 21 के अनुसार त्वरित न्याय देना अनिवार्य है।
सियासी मियार की रिपोर्ट