सजा
-नीरज अहलुवालिया-…
मुझको बह जाने में गुरेज नहीं,
तेरी फितरत से भी परहेज नहीं,
आपशारों पे मग़र रुक ना सका,
पानी होने की सजा खूब मिली,
पानी होने की सजा खूब मिली…..
अश्क़ था, दर्द का सुरूर ले कर,
खारे दरियाओं का गुरूर ले कर,
तेरी नजरों से गिर गया लेकिन,
मुझको जख्मों की रजा खूब मिली,
पानी होने की सजा खूब मिली……
धूप को थामे, चल रहा था मै,
साया पाते ही, पिघल गया लेकिन,
ओक से छन के गिर रहा था जब,
मुझको राहों की कजा खूब मिली,
पानी होने की सजा खूब मिली……..
सियासी मियार की रीपोर्ट