सूरज
गर्मियों के दिनों में
सुबह-सुबह सूरज
अपनी लाल-लाल आंखें निकालकर
ऐसे आ धमकता है
जैसे हमने ले रखा है उससे कर्जा,
और दुपहर होते-होते
इस तरह तांडव मचाने लगता है कि
बिना तकादा किये आज
नहीं लौटने वाला है वह
दरवाजे से
और सर्दियों में छिपा लेता है
खुद को कोहरे की आड़ में इस तरह
जैसे कि नजर मिलते ही
हम मांग न ले फिर से
उससे पैसे उधार।।