Sunday , November 23 2025

आईना साफ था धुंधला हुआ रहता था मैं…

आईना साफ था धुंधला हुआ रहता था मैं…

-अंजुम सलीमी-

आईना साफ था धुंधला हुआ रहता था मैं
अपनी सोहबत में भी घबराया हुआ रहता था मैं,
अपना चेहरा मुझे कतबे की तरह लगता था
अपने ही जिस्म में दफनाया हुआ रहता था मैं,
जिस मोहब्बत की जरूरत थी मेरे लोगों को
उस मोहब्बत से भी बाज आया हुआ रहता था मैं,
तू नहीं आता था जिस रोज टहलने के लिए
शाख के हाथ पे कुम्लाया हुआ रहता था मैं,
दूसरे लोग बताते थे के मैं कैसा हूं
अपने बारे ही में बहकाया हुआ रहता था मैं।।

सियासी मियार की सियासी