फिलिस्तीनी मुहब्बत..

जब नहीं था मुमकिन
मैं लाया सौगातें तुम्हारे लिए
महकता रहा तुम्हारा बदन खयालों में
तुम्हारी सूनी आंखों में
पड़े थे कभी मेरे सपने
मुर्दा
मैं चाहता हूं तुमको अब भी
जब सताती है भूख
सूंघ लेता हूं तुम्हारी खुशबूदार जुल्फे
और पोंछ लेता हूं आंसू
दर्द और धूल से भरा चेहरा
खिल उठता है
तुम्हारी हथेलियों के बीच आते ही
लगता है मैं
अभी पैदा ही नहीं हुआ
फिर भी बढ़ रहा हूं उम्र-दर-उम्र
तुम्हारी निगाहों के सामने
सीखता हूं बहुत कुछ
मेरा वजूद
लेता है शक्ल एक इरादे की
और उड़ जाता है सरहदों के पार
तुम हो मेरा असबाब और नकली पासपोर्ट
हंसता हूं
बिन पकड़े सरहद पार कर जाने की खुशी में
हंसता हूं
शान से
क्या पकड़ पायेगी पुलिस कभी हमें?
अगर पकड़ ले
और कुचल डाले मेरी आंखें
फिर भी, न होगा शिकवा या गिला
शर्म धोकर कर देगी मुझे
साफ और नर्म
घबराकर, मेरे जुनून और ताकत से
बंद कर दे मुझे किसी तनहा कोठरी में
लिख दूंगा तुम्हारा नाम
हर कागज पर
ले जाये अगर
फांसी के तख्ते पर
बरसाते कोड़े दनादन
अपनी मर्जी के मुताबिक
सोचूंगा फिर भी
हम हैं दो दीवाने
मौत के दरवाजे पर
तुम्हारा गेहुंआ रंग
है पहले जैसा
मैं और तुम
हैं एक जिस्म, एक जान
कुचल दिया जायेगा जब मेरा सर
ढकेल दिया जायेगा
सीलनन भरे अंधेरे दोजख में
चाहूंगा तुम्हें भूलना तब
और ज्यादा चाहते हुए।।
(रचनकार से साभार प्रकाशित)
सियासी मियार की रिपोर्ट
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