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संस्कृतियों का संगम हैदराबाद..

संस्कृतियों का संगम हैदराबाद..

उत्तर एवं दक्षिण की संस्कृतियों के संगम हैदराबाद शहर में पहुंच कर लगा था जैसे हम नवाबी परम्परा के मूल स्वरूप को सचित्र रूप में देख रहे हों। वहीं रंग-रोगन वही भाषाई लहजे और बातचीती सरस माहौल। कभी इस खुशनुमा शहर को कुतुबशाही परम्परा के पांचवें शासक मोहम्मद कुली कुतुबशाह ने अपनी प्रेमिका भागमती को उपहार स्वरूप भेंट किया था, जब यह भागनगर के नाम से जाना जाता था। समय के साथ वह भागनगर हैदराबाद के नाम से प्रसिध्द हुआ। नवाबी परम्परा के इस शहर में शाही हवेलियां और निजामों की संस्कृति के बीच कीमतों हीरे जवाहरात का रंग उभर कर सामने आया तो कभी नवाबी भोजन का लजीज स्वाद। इसके ऐतिहासिक गोलकोंडा दुर्ग की प्रसिध्दि पार-द्वार तक पहुंची और सालाजार म्युजियम तथा चार मीनार ने इसे उत्तर भारत और दक्षिणांचल के बीच संवाद का अवसर प्रदान किया।

दुर्ग की अनुगूंज:- गोलकोंडा दुर्ग काकातीय राजाओं और कुतुबशाही राजाओं के आधिपत्य में रहा जो एक पहाड़ी पर फैला हुआ है। दुर्ग के द्वार के पार ही खड़े होने पर ताली बजाई जाती है तो उसकी अनुगूंज छठे तल पर सुनाई देती है। कुतुबशाही राजाओं की कई पीढ़ियों ने अपने-अपने समय में इस दुर्ग के निर्माण का कार्य करवाया जिसे देखने पर्यटकों का तांता-सा लगा रहता है। भारत की जागरण यात्रा पर निकले राजस्थान के चार कवियों ने इस दुर्ग को देखने में काफी समय लगाया और वे बड़े करीने से बनाए गए इस दुर्ग पर चर्चा करते रहे। गोलकोंडा हैदराबाद का बाहरी हिस्सा है जहां बेशकीमती हीरे-जवाहरात का बाजार है। कोहिनूर हीरा कल्लूर खान की ही देन था।

चार मीनार:- कभी चार मीनार इमारत को मोहम्मद कुली कुतुबशाह ने बनवाया था जो शहर के बीचोंबीच अपने चार द्वार खोलती हुई खड़ी है, वास्तुकला की अप्रतिम उदाहरण है। यह इमारत अपने शासक का कला प्रेम भी दर्शाती है। चारमीनार के प्रत्येक स्तम्भ की ऊंचाई 48.7 मीटर है। चार स्तम्भों पर बनी यह इमारत पर्यटक से उसका नाम-पता पूछती है और उसे आकर्षित भी करती है।

खुले खजाने:- आज का हैदराबाद स्थापत्य कलाओं का खजाना है जो शहर में कहीं है तो कहीं बिखरा हुआ, किन्तु इस खजाने की खोज सहज ही हो जाती है जब पर्यटक खुले मन से शहर के बीच से गुजरता है। यों विश्व के बड़े खजानों में निजामों के खजानों की अपनी पहचान है। जवाहरात इन खजानों का एक बड़ा नाम है। गोलकोंडा की खानों से निकले नायाब हीरे, पुखराज, पन्ने, मणियां, मोती सभी तो यहां हैं। निजामों के खजानों की धूम सर्वत्र मची है।

चीनी आक्रमण के बाद 1962 में देश की जागरण यात्रा पर निकले राजस्थान के चार कवियों का दल जब हैदराबाद पहुंचा तो लेखक उस दल का प्रमुख कवि था। शहर स्थित मारवाड़ी हिन्दी विद्यालय, मालाणी भवन, विनायक भवन, हिन्दी प्रचार सभा और अन्यत्र हुए उन आयोजनों में हिन्दी कवि और उर्दू शायर एक मंच पर कविताएं- शायरी सुना रहे थे। ऐसा साहित्य समागम पूर्व में कभी नहीं देखा गया था।

यों भी हैदराबाद की अपनी संस्कृति है जिसमें अनेक संस्कृतियां समाहित हैं। बाजारों के बीच चलते रिक्शों में बैठकर गरीबी को समीप से देखा जा सकता है तो होटलों-रेस्तराओं में बैठकर अमीरी की शाम को भी। बुलंदियां छूती शायरी और गूढ़तम गहराइयों में जीती कविताएं इस शहर को नई पहचान देती हैं। शहर के सांस्कृतिक आयोजन मनुष्य की जीवंतता का परिचय देते हैं। हिन्दी की पहली साहित्यिक पत्रिका श्श्कल्पनाश्श् हैदराबाद से ही प्रकाशित हुआ करती थी जिसने हिन्दी साहित्य को अनेक प्रतिभाओं से अवगत कराया था। हैदराबाद के रवीन्द्र भारती सभागार में प्रायः सांस्कृतिक आयोजन होते रहते हैं जो पुरातन और नवीन के समन्वय के रूप में बहुचर्चित हैं। हैदराबाद एक खूबसूरत शहर है जो भावात्मक ऐक्य का राष्ट्रीय उदाहरण है।

सियासी मीयार की रिपोर्ट