अनंत प्रेम दो..
-अर्जुन सिंह नेगी-

मैं अधीर हूं
शांत करो
अनंत प्रेम दो
हृदय मे धरो
स्वप्न मे तुम रहो
जीवन मे तुम रहो,
मेरी जिव्हा
मेरे नेत्र
मेरे हाथ
और कलम बनो
मेरी कविताओं में
गीतों में
तुम ही रहो
छंद बनो, बंध बनो
अलंकार और श्रृंगार बनो
सजाओ मेरी रचनाएं
मेरे गीत, गजलें
और मेरा प्रेम,
चमको सितारों की तरह
छाओ घटाओं की तरह
बसा लो
नयनों के काजल में
छुपा लो
अपने आंचल में
बिंदिया, झुमके, कंगन
मुझसे अपना श्रृंगार करो
अधरों की लाली बनाकर
समीप ला दो
अपने मन मंदिर में
मेरी मूरत सजा दो,
मैं तरसता हूं
पागल बरसता हूं
मेरी बूंदों से स्नान करो
मेरी भावनाओं का
सम्मान करो
तुम देवी हो
कल्याण करो,
दूसरी किसी युक्ति से
नहीं युक्त हो सकता हूं
बस तुम्हारे सान्निध्य से
मैं मुक्त हो सकता हूं
तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाकर
मेरे सब पाप धुल जाएंगे
तुम्हारे हृदय में समाकर
मुझे दोनों लोक मिल जाएंगे
मेरे प्रति उदारता दिखाओ
हृदय में बसाकर
विशालता दिखाओ
छुपा लो दुनिया से
कोई पहचान ना सके
हम एक हो जाएं
प्रेम में खो जाएं।।
(रचनाकार डाॅट काॅम से साभार प्रकाशित)
अनंत प्रेम दो
-अर्जुन सिंह नेगी-
मैं अधीर हूं
शांत करो
अनंत प्रेम दो
हृदय मे धरो
स्वप्न मे तुम रहो
जीवन मे तुम रहो,
मेरी जिव्हा
मेरे नेत्र
मेरे हाथ
और कलम बनो
मेरी कविताओं में
गीतों में
तुम ही रहो
छंद बनो, बंध बनो
अलंकार और श्रृंगार बनो
सजाओ मेरी रचनाएं
मेरे गीत, गजलें
और मेरा प्रेम,
चमको सितारों की तरह
छाओ घटाओं की तरह
बसा लो
नयनों के काजल में
छुपा लो
अपने आंचल में
बिंदिया, झुमके, कंगन
मुझसे अपना श्रृंगार करो
अधरों की लाली बनाकर
समीप ला दो
अपने मन मंदिर में
मेरी मूरत सजा दो,
मैं तरसता हूं
पागल बरसता हूं
मेरी बूंदों से स्नान करो
मेरी भावनाओं का
सम्मान करो
तुम देवी हो
कल्याण करो,
दूसरी किसी युक्ति से
नहीं युक्त हो सकता हूं
बस तुम्हारे सान्निध्य से
मैं मुक्त हो सकता हूं
तुम्हारे हाथों का स्पर्श पाकर
मेरे सब पाप धुल जाएंगे
तुम्हारे हृदय में समाकर
मुझे दोनों लोक मिल जाएंगे
मेरे प्रति उदारता दिखाओ
हृदय में बसाकर
विशालता दिखाओ
छुपा लो दुनिया से
कोई पहचान ना सके
हम एक हो जाएं
प्रेम में खो जाएं।।
(रचनाकार डाॅट काॅम से साभार प्रकाशित)
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