बैठे हैं सब मौन….
-सत्यवान ‘सौरभ’-

नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव।
संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव।।
हम खतरे में जी रहे, बैठी सिर पर मौत।
बेवजह ही हम बने, इक-दूजे की सौत।।
जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार।
खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार।।
थोड़ा-सा जो कद बढ़ा, भूल गए वो जात।
झुग्गी कहती महल से, तेरी क्या औकात।।
मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन।
दामन थामे फ़ोन का, बैठे हैं सब मौन।।
हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज समाज।
रक्त रंगे अखबार हम, देख रहे हैं आज।।
कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच।
झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच।।
योगी भोगी हो गए, संत चले बाजार।
अबलाएं मठ लोक से, रह-रह करे पुकार।।
दफ्तर,थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ।
नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ।।
मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार।
सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार।।
(सत्यवान सौरभ के चर्चित दोहा संग्रह तितली है खामोश से )
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