कविता : मित्रता का बिगुल बजाएं..
-वीणा भाटिया-

दिन भर आंगन में आते
आवाजें मोहक निकालते
हम इंसानों से होते
हमसी बातें करते पक्षी।
अगर पक्षियों को देखना चाहें
अल सुबह उठ ही जाएं
सुबह से ही शुरू हो जाती
इनकी चीं-चीं काएं-काएं।
राष्ट्रीय पक्षी हो मोर अगर
तो दर्जी भी गौरैया है
बाज है अपना शक्तिशाली
प्यारी लगती सोनचिरैया है।
कठफोड़वा लकड़ी काट कऱ
लकड़हारा कहलाता है
बया हमसा ही बुनती
गिद्ध सफाई कर्मचारी है।
दाना-पानी रख कर
वर्ड हाउस भी बनाएंगे
फल के पेड़ लगा कर
मित्रता का बिगुल बजाएंगे।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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