Friday , September 20 2024

अनूपा हर्बोला की लघुकथाएँ..

अनूपा हर्बोला की लघुकथाएँ..

फिर से नामकरण……….
“लता एक थाली में ज़रा चावल तो भर कर ला”, उसकी बुआ सास बोली।
“अभी लाती हूं”।
वो थाली में चावल भर कर लाती है…….
“ये लो बुआजी पर किस लिए चाहिए ये चावल आप को”।
“अरे! भूल गई क्या,बहू को नया नाम देना है”।
“ले मुन्ना लिख इसका नया नाम इसमें”, वो चावल भरी थाली लता के बेटे की तरफ सरका देती है।”
“मेरा नाम है ना आभा जोशी” लता की बहू धीमी आवाज़ में बोली।
“अरे, वो तो तेरा मायके का नाम है, आज से वो ख़तम ,आज जो तुझे नाम मिलेगा वह आज से तेरा नाम होगा “बुआ बोली।
“पर…”
“पर वर कुछ नहीं, सबका बदला जाता है,मेरा ,तेरी सास का और उसकी सास का, सभी को शादी के बाद नया नाम मिला” बुआ बोली।
“पर मेरे सर्टिफिकेट में मेरा नाम आभा जोशी है” बहू ने बोला।
“एक एफेडेविट बन जायेगा, और हो गया नाम बदली”….बुआ ने कहा।
“पर…”
“फिर पर”, बुआ बोली।
“बुआ जी मैं नाम को आभा जोशी लोहनी कर लेती हूं ये भी तो नया नाम है”, बहू ने फिर कोशिश की ।
“नहीं तेरा नाम आज से काव्या लोहनी है, कमल के नाम से मिलता हुआ। क से कमल, क से काव्या देख, मैचिंग मैचिंग” बुआ बोली।
नई बहू का चेहरा देख कर सास जान जाती है कि आभा (नई बहू) खुश नहीं है।
“बुआ आज के समय में कोई नहीं बदलता है नाम, ये पुराने दिनों की बात है, जब औरतें घर पर रहती थी,पर आज के समय में लड़कियां नौकरी करती हैं, कितनी परेशानी होती है नए नाम के चक्कर में ,कोई नहीं देता नया नाम बहू को अब” लता बोली।
“सही सीख दे रही है तू अपनी बहू को मेरी बात काट कर” गुस्से में बुआ बोली।
“अरे बुआजी, गुस्सा काहे हो रही हो, ज़माने की बात कर रही हूं मैं”।
“जो करना है करो “बोलकर बुआ पीछे सरक जाती है।
आभा आँखों आँखों में अपनी सास को धन्यवाद बोलती है, दोनों सास बहू एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते हैं।
कमल चावल की थाली में “आभा जोशी “लिख देता है….

सियासी मियार की रीपोर्ट