कविता: पुकारना
-नवीन रांगियाल-

जिसे पुकारा
वह खो गया
पुकारना
गुम हो जाना है
मैंने कहा सफ़र
सड़कें गुम हो गईं
नदी कहा
मैं डूब गया पानी में
मैं बहुत ऊपर तक उठ गया
जब मैंने कहा पहाड़
रंग कहा
मैं सिमट आया आँखों में
मैंने एक बार कहा था दिल
बहुत सारे घाव लिए खड़े थे चाक़ू
प्यार कहने पर
तुम चली गईं
मैंने कहा तुम्हारी याद
गुम हो गया मैं
मैंने सुना एक बार नाम तुम्हारा
लेकिन पुकारा नहीं
मैं नाम को तुम्हारे देखता हूँ
बस देखता ही रहता हूँ।।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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