परिवर्तन…
-आभा खरे-

सुना था परिवर्तन
संसार का नियम है
फिर क्यों?
मेरे मन का मौसम
ठहर सा गया है
फिर क्यों रुके हुए हैं?
वो सारे पल
जिनमे तुम हो!!
उस रात जब तुम
चांदनी बटोरने
आये थे मेरी छत पर
और समेट ली थी
बूंद-बूंद चांदनी
तुमने मेरे आंचल में ..!
वो रात बुन रही थी
सपनों की रुपहली चिलमन
जिसके उस पार
हमारे चारों तरफ
किसी नर्म सफेद
बिछौने की तरह
बिखरे थे मोगरे के फूल
जिसकी भीनी-भीनी खुश्बू मे
हमारा रोम-रोम सुवासित
हो उठा था …!
कि तभी!
दूर कहीं
कोई मस्त मलंग
गाने लगा था
प्रेम गीत
जिसकी मधुर धुन
हम तुम मिलकर
गुनगुना रहे थे …!!
आज भी
वो रात
वो चांदनी
वो मोगरे
वो धुन
सब कुछ तो
वहीं ठहरे हुए हैं
फिर क्यों न मैं मान लूं?
कि
ठहराव ही संसार का नियम है…!!!
सियासी मियार की रीपोर्ट
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