अंधेरों के बगीचे….
-राजेश गोसाईं-

खिल रहे है चाँद सितारे
अंधेरों के बगीचे में कहीं
झूम रही है कलि कलि
चाँदनी की भी यहीं,
इन मदहोश हवाओं ने
उड़ा दी हैं नींदें भी
के बहार बेचैन है
जमीं पे कहीं,
वो देखो चोटी से अजब नजारे
खिल रहे हैं जमीं पर सितारे
ये आसमां भी झुक रहा है धरती पर
टिमटिम जुगनू के लगे हैं फल यहीं पर,
झिलमिल रोशनी भी
आ रही है घरों से
क्या खूब लग रहे हैं
बाग ये अंधेरों के,
मुस्कुरा रहे हैं अधर
यहाँ मौसम के
दीये जल रहे हैं देखो
पानी में भी यहीं।।
सियासी मियार की रिपोर्ट
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